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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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( ११
अजयं आसमाणे उ
पाणभूयाइ हिसई। वधई पावय कम्म त से होइ कडुय फल।।
(दस ४ ३)
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अयतनापूर्वक बैठने वाला श्रमण त्रस और स्थावर जीवो की हिंसा करता है। उससे पाप-कर्म का वध होता है। वह उसके लिए कटु फल वाला होता हे।
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