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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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अजय चिट्ठमाणो उ
पाणभूयाइ हिसई। बधई पावय कम्म त से होइ कडुय फल ।।
(दस ४ २)
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अयतनापूर्वक खडा होने वाला श्रमण त्रस ओर स्थावर जीवो की हिंसा करता है। उससे पाप-कर्म का वध होता है। वह उसके लिए कटु फल वाला होता है।
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