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अमणशूल
श्रमण सूक्त
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एव करेन्ति सबुद्धा
पण्डिया पवियक्खणा। विणियट्टन्ति भोगेसु जहा से पुरिसोत्तमो।।
(दस. २ . ११)
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सम्बुद्ध पण्डित और प्रविचक्षण पुरुष ऐसा ही करते है। वे भोगो से वैसे ही दूर हो जाते है जैसे पुरुषोत्तम स्थ नेमि हुए।
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