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पं० श्री कल्याणविजयजी गणि
पंन्यास श्री कल्याणविजयजी महाराज का जन्म सिरोही राज्य के लास गाँव में (कैलासनगर) पिता किसनाजी जागीरवाल और माता कदनाबाई के परिवार में वि० सं० १९४४, श्रावण कृष्णा अमावास्या के दिन मृगशीर्ष नक्षत्र में हुआ । उनका नाम रखा गया कस्तूरचन्द ।
कस्तूरचन्द से पहले एक पुत्र अल्प आयु में मर चुका था । उस जमाने में मारवाड़ में संतान यदि जिन्दा न रहते हो तो जब उसका जन्म होता तब उसे तराजू में तोला जाता । कस्तूरचन्द को भी तोला गया । इसलिए उसे तोलाराम नाम से भी पुकारा जाने लगा ।
उनके पिताजी को उनके पुरखें सिरोही राजपरिवार के पुरोहित होने से जागीर मिली थी । उस जागीर के अनेक हिस्से हो जाने से छोटा सा हिस्सा उनके हाथ लगा था ।
वि० सं० १९५५ में पिता-माता की मृत्यु हो जाने से तेरह वर्ष के कस्तूर और आठ वर्ष के हेमचन्द्र ने माता-पिता का शिरछत्र गँवा दिया । उन दिनों छप्पन के दुष्काल का भयावह सिकंजा कसा हुआ था । आथिक स्थिति तनिक भी अच्छी नहीं थी । आखिर चाचा ने ज़मीन बेच दी । कस्तूरचन्द को माता-पिता के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था । क्या करना, क्या नहीं करना, कुछ भी सूझ नहीं रहा था । तब पडोस की महिला को लगा : 'इसे अभी स्थान बदलाव की जरुरत है । उसकी बहन पास के देलंदर गाँव में रहती थी । वहाँ कस्तूर को भिजवा दिया । एक सेठ के वहाँ उसे नोकरी भी मिल गयी । नया वातावरण उसे रास आ गया ।
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