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बीच में आलंभिया में समवसरण, ऋषिभद्र श्रमणोपासक की बात का समर्थन, कौशाम्बी में मृगावती और चण्डप्रद्योत की रानियों की दीक्षा, विदेह की तरफ विहार । वर्षावास वैशाली में ।
२१वाँ वर्ष (वि० पू० ४९२ - ४९१ ) वर्षाकाल के बाद मिथिला की तरफ प्रयाण, वहाँ से काकन्दी, श्रावस्ती हो कर पश्चिम के जनपदों में विहार । अहिच्छत्र, राजपुर, काम्पिल्य, पोलासपुर आदि नगरों में समवसरण, काकन्दी में धन्य, सुनक्षत्र आदि की दीक्षायें, काम्पिल्य में कुण्डकौलिक और पोलासपुर में सद्दालपुत्र का निर्ग्रन्थ-प्रवचन - स्वीकार । वर्षावास वाणिज्यग्राम में |
२२वाँ वर्ष (वि० पू० ४९१ - ४९० ) मगधभूमि की तरफ विहार, राजगृह में महाशतक का श्रावकधर्म स्वीकार । पार्श्वपत्यों के प्रश्नोत्तर और महावीर की सर्वज्ञता का स्वीकार । वर्षावास राजगृह में ।
२३वाँ वर्ष (वि० पू० ४९० - ४८९ ) -- पश्चिम दिशा में विहार | कचंगला में स्कन्धक कात्यायन को प्रतिबोध, श्रावस्ती में नन्दीनीपिता और सालिहीपिता का श्राद्धधर्म स्वीकार । वर्षावास वाणिज्यग्राम में ।
२४वाँ वर्ष (वि० पू० ४८९ - ४८८ ) - ब्राह्मण के बहुसाल चैत्य में समवसरण, जमालि का शिष्यपरिवार के साथ भगवान् से पृथक् होना, वत्सभूमि की तरफ विहार | चन्द्र सूर्य का अवतरण । मगध की तरफ प्रयाण । राजगृह में समवसरण । पाश्र्वापत्यों की देशना का समर्थन । अभयकुमार आदि का अनशन । वर्षावास राजगृह में ।
२५वाँ वर्ष (वि० पू० ४८८ - ४८७ ) चम्पा की तरफ विहार । चम्पा में श्रेणिकपौत्र पद्म, महापद्मादि दस राजकुमार तथा जिनपालितादि अनेक गृहस्थों की दीक्षायें । पालितादि गृहस्थों का श्राद्धधर्मस्वीकार । वहाँ से विदेहमिथिला की तरफ विहार । काकन्दी में क्षेमक, धृतिधर आदि की दीक्षायें, वर्षावास मिथिला में ।
२६वाँ वर्ष (वि० पू० ४८७-४८६ ) अंगदेश की तरफ प्रयाण, चम्पा में श्रेणिक की काली आदि दस विधवा रानियों की दीक्षायें । पुनः
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