Book Title: Shatrunjay Kalpa Vrutti Part 02
Author(s): Shubhshil Gani, Mahabhadrasagar, Kapurchand R Varaiya
Publisher: Shraman Sthaviralay Aradhana Trust
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गयरागो होऊणं, आरुढो पव्वयस्स सिहरंमि; साहूहिं पुंडरीओ, एकोत्तर पंचकोडीहिं. ॥४०॥ चित्तस्स पुण्णिमाए, मासखमणेण केवलं नाणं उप्पन्ने सव्वेसिं, पढमयरं पुंडरीयस्स. ॥४१॥
केवलिमहिमं दटुं, पुंडरीए सुरगणेहिं कीरते; उप्पन्न नाणरयणा, केवली जाया तओ सव्वे. ॥४२॥
मुक्ख सुहसंपत्ता, सित्तुंज गिरिस्स मत्थए सव्वे; पुंडरीओ साहूविय, सिद्धो बुद्धो य कयउण्णो. ।।४३॥
देवेहिं कया महिमा, सिद्धिं पत्ताण सव्वसाहूणं; पुंडरीय केवलिस्स च, सरीरपूया कया विहिणा॥४४।।
पूया काऊण तओ, देवा वच्चंति अप्पणो ठाणे; पुंडरीयकेवलिस्स वि, भरहेण कयं तो जिणभवणं. ॥४५।।
नवनवइ पुव्वाइं, विहरंतो आगओ सित्तुंजे; उसभो देवेहिं समं, समोसढो पढमतित्थंमि. ॥४६॥ अवसप्पिणीए अहवयं, पढमो तित्थंकरो अ भविआणं; तित्थं च पुंडरीयं, पढमयरं सव्वतित्थाणं. ॥४७।। देवेहि इमं फुडं, जिणेण परिसागएणं भवियाणं; पुण्णो एस नगवरो, नामेण पुंडरीओत्ति. ॥४८॥ से अढेणं पुजो, सिद्धिंपत्ताण केवलीणं तो; उच्छूढा खीरोदे, तेण सुराणं तु सेत्तुंजे. ॥४९॥ नमी विनमी वेअड्ढे, विजाहर चक्कवट्टि नरवईणो; सिद्धिं गया सेत्तुंजे, केवलिणो दोहि कोडीहिं. ॥५०॥ इक्खागवंससंभव, भरहो रामो अ दसरहसुया य; उप्पन्ननाणविहवा, पुंडरीए सिद्धिं संपत्ता. ॥५१॥ पज्जुन्न संब सहिआ, अद्भुट्ठाउ कुमार कोडीओ; पुंडरीए सिद्धिगया, केवलनाणे समुप्पन्ने. ॥५२॥ पंडुसुया पंचजिणा, दविड नरिंदाण पंचकोडीओ; सिद्धिगया सेत्तुंजे, होऊण केवली सव्वे. ॥५३॥
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