Book Title: Shatrunjay Kalpa Vrutti Part 02
Author(s): Shubhshil Gani, Mahabhadrasagar, Kapurchand R Varaiya
Publisher: Shraman Sthaviralay Aradhana Trust
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परमत्थो नाणाइसओ, नजइ लद्धयं तु तं नाणं; लद्धं जं संचिज्जइ तह, नजइ नाणओ सव्वं. ॥११०॥ नाणत्तो किरिया य, किरियत्ता य दंसण विसोही; नाणं जिणोवइठें, मुक्खंगे साहूगं लहइ. ॥१११॥ ___ एयं तं नाणवरं, सो वच्चइ जेण लद्धेण; सेसाइ कुनाणाई, मुक्खपहं ताइ नासंति. ॥११२॥
आभट्ठो य न देइ, हरइ मुहं अन्नओ पलोएइ, खीणमि भंडमुल्लो, किं काहीअ अन्न जम्मंमि? ॥११३।। सित्तुंजंमि चडंतो, दाणं जो देई अत्थिओ पुरिसो; एयारिसो य लोए, दाणवई दुल्लहो होइ. ॥११४॥ पढमो जो य मणुस्सो, संसारी दुक्खीओ दरिदो य; बीयो य सया सुहिओ, माणुस जम्मेय सग्गोयं. ॥११५।।
मा हवउ तस्स पावं, सारावली पुत्तयं लिहंतस्स; लहउ य जसो कित्ती, अइरेणं साहु सक्कारं. ॥११६॥
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TILAH FAIT
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