Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
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वार ‘दशवैकालिक सूत्र' वाचतां, सावध औषध आदि करता पोताना अति प्रमादी गुरुने जोई तेओ उद्वेग पाम्या, अने पछी शुद्ध क्रियानिधि, नवांगी वृत्तिकार-जैन आगमसाहित्यनां नव अंगो उपर प्रमाणभूत संस्कृत टीकाओ रचनार-अभयदेवसूरि (विक्रमना बारमा शतकनो पूर्वार्ध) पासे जई शास्त्राध्ययन कर्यु अने एमना शिष्य थया, तथा ‘पिंडविशुद्धि प्रकरण', 'सार्ध शतक' आदि संख्याबंध ग्रन्थो रच्या.* जिनवल्लभसूरिए जे चैत्यो बंधाव्यां एने ‘विधिचैत्य' नाम आपी एमां शास्त्रविरुद्ध कार्य थाय नहि ए प्रकारना श्लोको तेमणे कोतराव्या.+ नेमिचन्द्रने पोताना अनुभव अने अवलोकनने परिणामे जे कहेवानुं हतुं एने आ
* ‘खरतर गच्छ पट्टावली संग्रह' (सं. जिनविजयजी), पृ. १०-२४. + सामाजिक इतिहासनी दृष्टिए रसप्रद एवा, एमांना बे श्लोक नीचे प्रमाणे छे
अत्रोत्सूत्रजनक्रमो न च न च स्नात्रं रजन्यां सदा साधूनां ममताश्रयो न च न च स्त्रीणां प्रवेशो निशि । जातिज्ञातिकदाग्रहो न च न च श्राद्धेषु ताम्बूलमि
त्याज्ञाऽत्रेयमनिश्रिते विधिकृते श्रीजैनचैत्यालये ॥ (अर्थात् अनिश्राए विधिपूर्वक थयेला आ जैन चैत्यमां एवी आज्ञा छे के एमां उत्सूत्र जनोनो संचार नथी, एमां रात्रे स्नात्र-नान नथी, साधुओए एमां ममतापूर्वक रहेवानुं नथी, एमां राने स्त्रीओने प्रवेश नथी, एमां जाति अने ज्ञातिनो कदाग्रह नथी, अने एमां श्रावकोए तांबूल खावानुं नथी.)
इह न खलु निषेध : कस्यचिद् वन्दनादौ श्रुतविधिबहुमानी त्वत्र सर्वोऽधिकारी । त्रिचतुरजनदृष्ट्या चात्र चैत्यार्थवृद्धि
व्ययविनिमयरक्षाचैत्यकृत्यादि कार्यम् ॥ ( अर्थात् अहीं कोईने पण वंदनादिनो निषेध नथी, शास्त्रविधिने मान आपनार सौ कोईनो अहीं अधिकार छे, आ चैत्यना धननी वृद्धि व्यय विनिमय रक्षा तथा धार्मिक कार्यों त्रणचार जणनी नजर नीचे करवानां छे.)
'षष्टिशतक 'नी १६१मी गाथामां 'विधिमार्गरत भव्य ' जनो माटे पोते ए रचना करी होवार्नु नेमिचन्द्रे का छे ते आ साथे सरखाववा जेवू छे.