Book Title: Shantinath Purana Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur View full book textPage 8
________________ प्रधान सम्पादकीय जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौनारायण, नौ प्रति नारायण और नौ बलभद्र, इन्हें त्रेसठ शलाका पुरुष कहते हैं । जैसे भगवान ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर थे और उनके पुत्र भरत प्रथम चक्रवर्ती थे। जैन और हिन्दु पुराणों के अनुसार इन्हीं भरत चक्रवर्ती के नाम से यह देश भारत कहलाया। प्रायः ये त्रेसठ शलाका पुरुष भिन्न भिन्न ही होते हैं । किन्तु चौबीस तीर्थंकरों में से तीन तीर्थंकर चक्रवर्ती भी हुए हैं । वे तीन तीर्थंकर हैं सोलहवें शान्तिनाथ, सतरहवें कुन्थुनाथ और अठारहवें अरहनाथ । इन तीनों का ही जन्म स्थान हस्तिनापुर था जो आज उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित है। यह नगर बहुत प्राचीन है । बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के समय में यहां कौरव पाण्डवों की राजधानी थी। भगवान ऋषभदेव के समय में यहां राजा सोम श्रेयांस का राज्य था । उन्होंने ही भगवान् ऋषभदेव को इक्षुरस का अाहारदान देकर मुनिदान की प्रवृत्ति को प्रारम्भ किया। इस तरह दीक्षा धारण करने से एक वर्ष के पश्चात् भगवान ऋषभदेव ने हस्तिनापुर में ही वैसाख शुक्ला तृतीया के दिन आहार ग्रहण किया था। ___इन त्रेसठ शलाका पुरुषों का चरित आचार्य जिनसेन ने अपने महापुराण में रचने का उपक्रम किया था। किन्तु वे केवल प्रथम तीर्थंकर और प्रथम चक्रवर्ती का ही वर्णन करके स्वर्गवासी हुए । तब उनके शिष्य प्राचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण में शेष शलाका पुरुषों का कथन संक्षेप में किया और उन्हीं के अनुसरण पर श्वेताम्बर परम्परा में आचार्य हेमचन्द्र ने अपना त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित निबद्ध किया। कविवर असग ने वि० स० ६१० में अपना महावीर चरित रचा था और उसके पश्चात् श्री शान्तिनाथ पुराण रचा है क्योंकि उसकी प्रशस्ति के अन्तिम श्लोक में उसका उल्लेख है । प्राचार्य गुणभद्र ने भी अपना उत्तरपुराण इसी समय के लगभग रचा था अतः असग के द्वारा उसके अनुसरण की विशेष सम्भावना नहीं है । जैन परम्परा के चरित ग्रन्थों में उस चरित के नायक के वर्तमान जीवन को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता जितना महत्त्व उसके पूर्व जन्मों को दिया जाता है । इसका कारण यही प्रतीत होता है कि ग्रन्थकार यह दिखलाना चाहते हैं कि जीव किस तरह अनेक जन्मों में उत्थान और पतन का पात्र बनता हुअा अन्त में अपना सर्वोच्चपद प्राप्त करता है । तीर्थकर ने तीर्थंकर बनकर क्या किया, इसकी अपेक्षा तीर्थंकर बनता कैसे है यह दिखलाना उन्हें विशेष रुचिकर प्रतीत होता है । तीर्थङ्कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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