Book Title: Shantinath Puran
Author(s): Sakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
Publisher: Vitrag Vani Trust

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Page 202
________________ . 4 Fb FFF के द्वारा मान्य होगा तथा समस्त भोंगों का स्थान साम्राज्य प्राप्त करेगा स्वर्ग से आते हुए विमान के दर्शन से देवों के द्वारा पूज्य वह तीर्थंकर भगवान धर्मतीर्थ की प्रवृत्ति करने हेतु स्वर्ग से आकर अवतार लेगा। नागेन्द्र का भवन देखने से उसके समस्त संसार को प्रगट करनेवाला अवधिज्ञान होगा तथा इहलोक एवं परलोक दोनों लोक सम्बन्धी हित-अहित के ज्ञान में वह निपुण होगा । रत्नराशि के देखने से वह तीर्थंकर अनन्त गुणों की खानि होगा तथा विश्वविश्रुत नर-रत्न होगा । निर्धूम अग्नि के देखने से वह तीर्थंकर भगवान अपने शुक्लध्यान रूपी अग्नि से कर्म रूपी ईंधन के प्रचण्ड समूह को भस्मीभूत करने में अवश्य समर्थ होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं । अन्त में तूने जो मुख में गजराज को प्रवेश करते हुए देखा है, उसका फल यह है कि तेरे गर्भ में श्री शान्तिनाथ तीर्थंकर ने अवतार ले लिया है।' सुन्दर मुखाकृतिवाले वह महादेवी इस प्रकार स्वप्नों का फल सुनकर बहुत सन्तुष्ट हुईं, उनकी देह रोमांचित हो आयी तथा उन्हें अपार आनन्द की अनुभूति हुई ॥५०॥ उसी समय स्वर्ग में अपने-आप घण्टों का महानाद होने लगा तथा बिना किसी के झंकृत किए (बजाने) ही देवों के बड़े नगाड़े (अनदह वाद्य) स्वयमेव बजने लगे । उसी समय कल्पवृक्षों से बहुत-से पुष्यों की वर्षा होने लगी तथा शीतलमन्द-सुगन्धित-कोमल तथा प्रियकर वायु प्रवाहित होने लगी। भगवान के गर्भावतरण के प्रभाव से इन्द्रों के आसन प्रकम्पित हो उठे तथा उनके मुकुट स्वयं ही कुछ नत हो गए । इन समस्त आश्चर्यों को अवलोक कर देवों ने अवधिज्ञान से भगवान का गर्भावतरण ज्ञात कर लिया तथा गर्भ कल्याणक का उत्सव मनाने के लिए वे प्रस्तुत हुए । भगवान के गर्भावतरण के प्रभाव से ज्योतिर्लोक में भी तमल सिंहनाद हुआ तथा पर्व वर्णित समस्त आश्चर्य प्रकट हुए । व्यन्तर देवों के विमानों (स्थानों) में भी स्वयंमेव भेरीनाद होने लगा तथा स्वर्ग में जो-जो आश्चर्य हुए थे, वे सब यहाँ भी होने लगे । भवनवासी देवों के भवनों में भी स्वयमेव शंखध्वनि होने लगी तथा पूर्वोक्त सम्पूर्ण आश्चर्य यहाँ || १८९ भी स्वयमेव होने लगे । तदननतर समस्त इन्द्रगण आदि को संग लेकर सौधर्म इन्द्र आए । प्रत्येक इन्द्र के संग उनकी अपनी-अपनी सतरंगिणी (७ प्रकार की) सेना थी। वे अपने-अपने वाहनों पर आ रहे थे। तुरई आदि अनेक प्रकार के वाद्यों की ध्वनि से सर्व दिशाएँ गुन्जायमान हो रहीं थीं । नृत्य-गीतों में वे सब निमग्न थे । भगवान का गर्भ-कल्याणक उत्सव मनाने की उनकी आकांक्षा थी । वे समस्त देवगण उत्सव 44

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