Book Title: Shantinath Puran
Author(s): Sakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
Publisher: Vitrag Vani Trust

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Page 211
________________ एक कोटि अड़सठ लक्ष वृषभ थे, तृतीय में इससे द्विगुणित अर्थात् तीन कोटि छत्तीस लक्ष वृषभ थे, चतुर्थ इससे द्विगुणित अर्थात् छः कोटि बहत्तर लक्ष वृषभ थे, पंचम में इससे द्विगुणित अर्थात् तेरह कोटि चवालीस लक्ष वृषभ थे, षष्ठ में छब्बीस कोटि अठासी लक्ष वृषभ थे एवं सप्तम् में तिरेपन कोटि छिहत्तर लक्ष वृषभ थे । इस प्रकार वृषभों की सप्त सेनाओं में कुल एक अरब छः कोटि अड़सठ लक्ष वृषभ थे । इसी प्रकार सौधर्म स्वर्ग के इन्द्र की सेना में रथ, अश्व आदि समस्त सेनाओं की संख्या वृषभों की संख्या के समान थी। भगवान के जन्म कल्याणक के महोत्सव में सर्वप्रथम अग्रगण्य पंक्ति में शंख अथवा श्री ति ना थ शां कुन्द पुष्प के सदृश श्वेत मनोहर वृषभ गमन कर रहे थे । उनका अनुसरण करतीं हुई वृषभों की द्वितीय शां सेना पद- संचलन कर रही थी, उसमें मणि एवं सुवर्ण से शोभायमान जवा पुष्प के सदृश 'रक्तवर्णी वृषभ गमन कर रहे थे, उनके उपरांत नीलकमल के सदृश नीलवर्णी वृषभ महोत्सव के संग चले रहे थे । उसके पश्चात् अत्यन्त दिव्य रूप को धारण करनेवाले मरकत मणि के सदृश वर्णवाले वृषभों की सेना संचलन कर रही थी, उनका अनुसरण कर रही थी सुवर्णवर्णी वृषभों की सेना एवं तदुपरान्त अन्जन के सदृश कृष्णकाय वृषभों की सेना पद-संचरण कर रही थी, जो कि अपनी कान्ति से दैदीप्यमान हो रही थी । उसका अनुसरण कर रही थी सप्तम् रेखा में व्योम को दैदीप्यमान करती हुई अशोक पुष्प के सदृश पु वर्णवाले शुभ वृषभों की सेना गमन कर रही थी । वृषभों की प्रत्येक सेना के मध्य में तुरई आदि विविध प्रकार के वाद्य महासागर की गर्जना के समतुल्य घोष करते चले जा रहे थे। समस्त वृषभ मनोहर थे; घण्टा - किंकिणी- चमर मणि एवं पुष्पहार (माला) आदि से सुशोभित थे एवं दिव्य रूप को धारण करनेवाले थे ॥ १७० ॥ वृषभों की सुन्दर पीठिका पर देवकुमार आरूढ़ थे एवं जन्म-कल्याणक में इस प्रकार चलते हुए वे वृषभ पर्वतों के सदृश शोभायमान हो रहे थे। वृषभों की सेना का अनुसरण करती हुई प्रथम रेखा में मनोहर श्वेत रथ थे, जो कुन्द पुष्प के समतुल्य श्वेत थे, चन्द्रमा के सदृश स्वच्छ थे एवं श्वेत छत्र आदि से विभूषित थे । उनके उपरान्त वैडूर्यमणि से निर्मित चतुष्चक्री (चार पहियोंवाले) रथ थे, जो मन्दार पुष्पों के सदृश थे, नयनाभिराम थे एवं उपमा रहित थे । उनके पश्चात् सुवर्ण के बड़े-बड़े छत्र, ध्वजा, चमर आदि से सुशोभित तपाए हुए सुवर्ण से निर्मित विशाल एवं उच्च रथ गमन कर रहे थे । तदनन्तर गम्भीर शब्द करते हुए, दूब के पत्ते की कान्ति को जीतते हुए, मरकत मणियों से निर्मित अनेक रा ण ना थ पु रा 6 ण १९८

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