Book Title: Shantinath Puran
Author(s): Sakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
Publisher: Vitrag Vani Trust

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Page 212
________________ FF PF F चक्र (पहियों) वाले शुभ रथ संचार कर रहे थे । उनके उपरान्त नीलमणि के समतुल्य कर्कोट-मणि से निर्मित रथ गमन कर रहे थे, उनका अनुसरण करते हुए पद्मराग मणियों से निर्मित अद्भुत रथ संचरण कर रहे थे। भगवान के जन्मकल्याणक के लिए सप्तम् रेखा में मोर की-सी ग्रीवा के इन्द्रनील मणियों से निर्मित | रथ गमन कर रहे थे । इस प्रकार देव-देवियों से पूर्ण, मणियों की कान्ति से व्याप्त, दिव्य, शुभ महारथ | सप्त रेखाओं में संचरण कर रहे थे । वे रथ ध्वजा, छत्र, चमर तथा पुण्यमालाओं से सुशोभित थे एवं इन्द्र को वे महान् अर्जित पुण्य के फल से ही प्राप्त हुए थे । अनेक प्रकार के गुंजित वादित्रों के घोषों से व्याप्त एवं व्योम को आच्छादित कर गमन करते हुए वे निर्मल रथ व्योम रूपी समुद्र में जलपोत के सदृश शोभामयान हो रहे थे ॥१८०॥ रथ के पश्चात् क्रमानुसार अश्वों की सेना थी । अग्रिम पंक्ति में सुन्दर को धारण करनेवाले चमर आदि से सुशोभित क्षीरसागर की लहरों के समतुल्य श्वेतवर्णी अश्व संचरण कर रहे थे । उनके उपरान्त उदय होते हुए सूर्य के सदृश सुन्दर एवं उच्च अश्व जा रहे थे, फिर गोरोचन वर्ण के एवं उनका अनुसरण करते हुए मरकतमणि की कान्तिवाले अश्व गमन कर रहे थे। उनके पश्चात् नीलकमल के सदृश, तत्पश्चात् जवा पुष्प के समतुल्य एवं तदुपरान्त सप्तम् पंक्ति में इन्द्रनील मणि के सदृश अश्व संचरण कर रहे थे । वे अश्व दिव्य रूपवान थे, मणिमालाओं तथा पुष्पमालाओं से विभूषित थे, विविध वर्ण के अनुसार सप्त रेखाओं में संचरण कर रहे थे, उनकी काया सुवर्ण धूलि से धूसरित हो रही थी; मृदंग, तुरही आदि विशालकाय वाद्यों के उद्घोष से वे व्याप्त थे, उन पर रत्नों के आसन बने हुए थे जिसमें आरूढ़ देवकुमार उन्हें संचालित कर रहे थे । वे शुभ थे, उत्तम थे, चन्चल थे एवं व्योम-रूपी समुद्र में तरगों के समतुल्य प्रतीत होते थे । अश्वों के उपरान्त गज सेना थी । प्रथम रेखा में बक (बगुले) के समतुल्य श्वेत, विशालकाय एवं सुदीर्घ गज थे, द्वितीय रेखा में उदय होते हुए सूर्य के सदृश वर्णवाले गज थे, तृतीय रेखा में सुवर्ण के वर्ण के गज थे, चतुर्थ रेखा में सरसों के पुष्प के वर्ण के गज थे, पंचम् रेखा में विराटकाय दन्तवाले नीलकमल के सदृश नीलवर्णी गज थे, षष्ठ रेखा में जैत पुष्प के सदृश गज थे एवं सप्तम रेखा में अन्जन पर्वत के सदृश कृष्णकाय गज थे । इस प्रकार इन महान् गजराजों का शुभ समूह संचरण कर रहा था । गजों की प्रत्येक रेखा के अन्तराल में शंख, मृदंग, तुरही, नगाड़े आदि देवों के वाद्य मधुर स्वरों से झंकृत होते जा रहे थे ॥१९०॥ गजराजों के गण्डस्थल से मद झर रहा था । गरजते 4 Fb EF १९९

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