Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ आदर-सत्कार करना चाहिये। जो मनुष्य सेवा-गुण जानकर उसका पूर्णरूपसे पालन करता है, वही मनुष्य इस संसारमें, मनुष्य रूपेण समझा जाता है, जिसने सेवा-धर्म नहीं सीखा है. वह मनुष्य नहीं किन्तु पशू है / हम पहले ही कह आये है, कि श्रीमान्ने बालावस्थासे ही इस मन्त्रकी शिक्षा प्राप्त करली थी। अतएव आप सुचारुरूपसे सेवाभावका आशय जानते थे। इस गुणके वास्तविक तत्वको जानने वाले अपनी जैन समाजमें आप जैसे पुरुष विरले ही हैं। ___ अट्ठाई-महोत्सव श्रीचिंतामणजीके मन्दिरमें बड़े समारोहके साथ आरंभ किया गया। क्रमशः आठोंदिन विविध प्रकार की पूजायें पढ़ाई गई। इस अवसरपर ओसियांसे आई हुई जैन संगीत मण्डलीने बड़ीही अच्छी प्रभु-भक्ति की। यह मण्डली प्रतिदिन पूजा एवं जागरणके समय उपस्थित रहा करती थी,और बड़े उत्साह पूर्वक नृत्य-गान स्तुति करती रहती थी, श्रीमानने जिस तरह अत्यन्त प्रेमसे इस मण्डलीकों आमंत्रित किया था। उसी तरह मण्डलीने भी पूरे प्रेमसे प्रभुभक्ति करके समाजके दर्शकोंको अत्यन्त प्रसन्न किया। इस तरह आनन्द-मङ्गल पूर्वक आठों दिन बड़ी शान्तिसे व्यतीत हुऐ॥ __इसके बाद जल-यात्रा एवं स्वामी-वत्सल करनेके लिये बड़ी भारी तैयारी की गई। चिंतामणिजीके मन्दिरसे सवारी निकलना आरम्भ हुई। सवारीकी सजावट अत्यन्त शोभायभान थी, मार्गके चारों ओर सवारीका ही दृश्य दिखता था। सवारीकी सजावट और मण्डलियों के नृत्य-गान स्तुति आदिसे सारे शहर में अपूर्व आनन्द-मङ्गल छाया हुआ था। मार्गके चारों ओर बड़े-बड़े विषाल भवन-मकनोंके नीचे. ऊपर नर-नारियोंका अपूर्व मुंड जमा हुआ था। सब कोई सवारीकी ओर चातककी तरह टक-टकी लगाये हुए देख रहे थे / इस समय सब किसीके मुखसे यही शब्द सुनाई देता था। "आजतक अपने बीकानेरमें इस तरहकी सजावटसे सुशोभित सवारी कभी नहीं निकली थी।" सब कोई सवारी की ओर बार-बार देखकर अत्यन्त प्रसन्न P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 445