Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 8
________________ . उद्यापनका मण्डप बीकानेरके बड़े उपाश्रयमें सजाया गया था। मण्डपकी सजावट अत्यन्त रमणीय एवं दर्शनीय थी। जो सजन सजावटकी ओर निहारता वही आश्चर्य-चकित हो जाता था। उसकी मनोभावना अत्यन्त निर्मल बन जाती थी, उसके विचार में विकास हो जाता था। जो सजन एक बार दर्शन कर लेता, वह प्रतिदिन आये बिना नहीं रहता था। इस तरहकी मण्डप-रचना बीकानेरमें शायद ही किसी समय हुई होगी। हम ऊपर लिख आये हैं कि, श्रीमान्ने अपने न्यायोपार्जित धनको खर्चकर नाना प्रकारकी सोनेचाँदीकी उत्तमोत्तम चीजें बनवायीं, वे सब चीजें इस परम रमणीय शोभायमान मण्डपमें स्थापित की गई। ... अट्ठाई महोत्सव आरंभ होनेके पहले आपने कलकत्ता एवं अनेक शहरोंके सजनोंको आमन्त्रण भेजा था। अतएव सब जगहके बड़े-बड़े धनी लोग इस सुअवसर पर पधारने लगे। उनके आतिथ्य-सत्कारके लिये आपने बड़ाही सुप्रबन्ध किया था। जितने सजन आये हुए थे उन सबकी सुश्रुषाकेलिये आप हरसमय उपस्थित रहा करते थे / “सेवा करना परम धर्म है" इस मन्त्रको आपने बालावस्थासेही सीख लिया था। आपने इस बातका भी ज्ञान कर लिया था कि, फिर ऐसा सुअवसर स्वामी भाइयोंकी सेवा का कब मिलेगा ? इसलिये आप अत्यन्त हर्षान्वित होकर तन मन और धनसे स्वामी भाइयोंकी सेवा करते थे। आपके इस असाधारण आतिथ्य-सत्कार को देखकर आये हुए सर्व सजनोंको अपार आनन्द होता था। .. प्रिय पाठको! आतिथ्य-सत्कार महज़ मामूली काम नहीं। इस कामके करनेवाले विरलेही सजन होते हैं। लाखों करोड़ों रुपैया पालमें होने पर भी इस कामको करने में असमर्थ रहते हैं शास्त्रकारोंने भी सर्व गुणोंमें इसी गुणको प्रधान बतलाया है। कहा भी है, कि “सर्वस्याभ्यागतो गुरु" अर्थात् अतिथी-महिमान सब किसीको पूजनीय होता है। अतएव सौ काम छोड़कर भी अतिथीका P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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