Book Title: Setu Sansarthi Muktino
Author(s): Krupabodhvijay, Sanyambodhivijay
Publisher: Jainam Parivar

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Page 9
________________ रसे रखनाने प्रामाए प्रोताना ज्ञानका नाश् चीत धओझ होदा था भोर छाप अहेले प्रामा नुहाउने सामने पाठक पाठवली आउजाउने अ संघाना आसनना संभाझनना अनु आर्य ने सा अन्नुझाने लाभ अपना टेभेड आस्थापना प्रभुना इदेपद्वान पहा तरत प्रथम छानामा बायो प्रत्तु महजार उघायिक प्रथम देशना औषधालाह, सपाट और उद‌धित जननादी वस्तुझे जाडी हरेक प्रभु प्रथम हे नामांश्र शासन स्थापना गणधर स्थापना उन्हें हो भने संघ शासन संदाजन गराइकोने सौंपे छे पक्षी प्रलु ভव अनेकने होता आया के परंतु से दधाने तैयार हुद्द्यानी न्याजहारी गणाघर सेवा दिन्स्योन सोंपालक होते छे आ दिन्सको जही राते आसन संभाजवा असावा सनम तैयार करनेला होद हो जघा समोवडीया भेदा राज्जिधा होदा छता ज्धा महादिनया नम्र नानामोदानी मदाने जागुणादेछे जिद्यान एकमात्मा प्रेम तेल ५० तर अद84 मोजे कच्छे तो जघान गणधर को पा बहुलब पद्मी नूरसंत सबकि मोजे भदो-प्रतुता भ० ४८ ध्वजगर शासन कपातु नधा तम योग्यता होड दिनु वगर शाপढून उनभर खावा तोडाले विद्यागन Gryone জभुপ 2xअनम क हुक ज्ञान ने साधाय संपन्नता होय छ आमा हुडा सब र्पशा दोष काले न्यूनता आवेधे खारते अनंत दयावेदन आउछे छता सूर्य अहा Byan zim राहूना ग्रहणक ग्रसने सो सूर्य पाई छेदन के हुदैछ ढालने नष्ट्र मझे तेम प्रभुशासन Parn अवाधित सकाउ रहेक आये हो रहे छे रहेको साप्रलाद छे प्रतुतो उसने 25 जलादिततन्त्र‌ाननो उसने हगनद्वारा प्राद दिखत लादिन धरतेस आओर ना बुदन पद्धतिनो

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