Book Title: Selections in Arddhamagadhi For SSC Examinations
Author(s): Venus Book Stall
Publisher: Venus Book Stall

Previous | Next

Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावेंतेण अहिट्ठिया जक्खेण, असमंजसाई विल िपयत्ता । कहः कह वि नीया मंदिरं । तं तहाविहं दळूण विसण्णचित्तेण राइणा वाहराविया गारुडिया भोइयभट्टचट्टाइणो त्ति । तओं समाढत्ता धन्वंतरिविन्भमेहिं वेज्जेहिं चउप्पगारा किरिया । न जाओ विसेसो । पुणो वि जंततंतरक्खामंडलाइणो । ते वि ऊसरभूमि-- निहिय व्व बीया जाया निष्फल त्ति । अवि य -- इय जाहे विग्गुत्ता सब्बे विज्जाइणो तओ जक्खो ।। जंपइ पत्तम्मि ठिओ 'एया ए निदिओ साहू ॥ तो जइ णवरं तस्सेव देह मुंचामि नन्नहा मोक्खो'। रण्णा वि ' जीवउ' त्ति य पडिवन्नं जक्खवयणं तु॥. तओ समासत्थसरीरा सव्वालंकारविभूसिया गहियविवाहोव-- मरणा सहिसहिया महाविभूईए गया महरिसिणो समीवं । पायवडणपच्चुट्टियाए य विण्णत्तमणाए सह महल्लिएहिं । 'महरिसि गिण्हसु मज्झ सयंवराए करं करेणं' ति । मुणिणा भणियं ।। भद्दे, अलं एयाए संकहाए वुहजणपरिनिंदियाए । अवि य - इत्थीहि समं वासं पि जे न इच्छति एगवसहीए । कह ते निययकरहिं रमणीण करे गहिस्संति ॥ सिद्धिवहुबद्धरागा असुईपुण्णासु कह णु जुवईसु ।। रज्जति महामुणिणो गेवेज्जयवालिदेवे ब्च ।' तओ विमणदुम्मणा परियणाणुगम्ममाणा गया पिउसमीवं । - उत्तराध्ययन, सुखबोधा टीका ( वलद १९३७), पृ. १७३-७५६ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50