Book Title: Selections in Arddhamagadhi For SSC Examinations
Author(s): Venus Book Stall
Publisher: Venus Book Stall
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Secondary School Certificate Examination Board (Bombay State) SELECTIONS in ARDHAMAGADHI FOR THE S.S. C. EXAMINATION ( 1955 to 1957) PRICE ANNAS TWELVE For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Not to be used in any except Standard XI of a Secondary School. SELECTIONS in ARDHAMAGADHI FOR THE S. S. C. EXAMINATION ( 1955 to 1957 ) PRICE: ANNAS TWELVE PUBLISHED BY VENUS.BOOK STALL : POONA 2 For and on behalf of the S. S. C. Examination Board, Bombay State, Poona. For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir First Edition : March 1954 Reprint: August 1954 Published by S. K. Padhye, Venus Book Stall, Appa Balwant Chowk, Poona 2, for end on behalf of the S, S, C. Examination Board, Bombay State, Poona. Printed by Y. G. Joshi, Anand Mudranalaya. 196/46 Sadashiv, Poone z For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org CONTENTS PROSE 1 अज्जचंदणा कहाणयं 2 दोमुहो 3 मायंगरिसी 4 अणणुओगो 5 अभयदानं 6 सव्वकामियं पडणं 7 वक्कलचीरि-कहाणयं 8 सागडियस्स उद He POETRY 1 एलयं 2 सीयाहरणं 3 चत्तारि पुत्ता 4 सिलामेह - विवाहो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 5 पाइय - भासा 6 सुभासियाई For Private And Personal Use Only 1 5 8 25712 19 23 25 28 32 36 38 40 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. अज्जचंदणा-कहाणयं । चंपाए दहिवाहणो राया। लो य अईव विसयपसत्तो, न पेच्छइ पाइके, न मग्गइ लिहणियं, न संमाणेइ महासामंते, न निजुंजइ हत्थीसु हथिवेजे, न पेच्छइ आसे, न जुंजइ आसमहए, न चोएइ महासवइणो, न निझुंजइ जाणसालिए, किं बहुणा रात्तिदिया अंतेउरगओ चिट्ठइ । तओ पाइका इओ तओ गंतूण वित्तिकाले आगच्छति । सामंता विनियनियठाणेसु रजसिरिमणुहवंता चिटुंति । मंतिणो वि जाया उबेहापरा । कडप्पयापुण्गेहि किंचि निव्वहइ । - इओ य कोसंबीए सयाणीओ राया । तेण नायं जहा पमत्तो सो । अओ तग्गहणं समओ वट्टइ । तओ नावाकडएणं गओ एगराईए । नट्ठो दहिवाहणो पाणे गहाय । विलुत्ता नयरी सयाणीएण । जग्गहो घुट्ठो । तओ एगेण गोहेण दहिवाहणरण्णो भजा धारिणी, तीसे धूया वसुमई, दो वि गहियाओ । सो गोहो अन्नेसि कहेइ 'एसा मे भजा भविस्तइ । एयं च दारियं विक्किणिस्सामि। तओ धारिणी सीलभंगभया, धूयाए का गई भविस्सइ त्ति संखोभेणं मया । तओ तं वसुमई सम्ममणुचरिउमाढत्तो गोहो । संपत्तो कोसंबि, उडविया हट्टे । धणवाहसेट्टिणा गहिया जहाइच्छिएण दाणेणं । नीया घरं । समप्पिया मूलाए नियभारियाए 'एसा ते धूया, सम्ममणुचरियव्वा । जइ ता एईए पुग्विल्लगा मोइस्सति तेहि सह पीई होउ ति पेसइस्लामि, नो चेव अम्ह धूया व एस' त्ति । पडिवनं मूलाए । तओ सा जहा निय For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ... २. ... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पियराणं तहा विणयं करेइ । एवं वचइ कालो । परियणस्स वि अणुकूला । तओ तीए बीयं पि नामं जायं चंदण त्ति, सवेसिं सीयल त्ति काऊ । I अन्नया मूला उपि ओलोयणगया चिट्ठर । सेट्ठी य हट्टाहिंतो गेहमागओ | चंदणाए झत्ति आसणं दिवणं । पायसेोयं काउमाढत्ता । तीसे य महंतो के पन्भारो, सो पायसोहणायासेण विलुलिओ भूमिं पत्तो । तेणोगासेज य पायसोयजलं पलोहं । तओ सेट्टिणा लीलालडीए समुक्खिता केसा ॥ दिट्टो एल वइयरो मूलाए । चितियमणाए 'अहो, विणङ्कं कजं । जइ सेट्ठी एवं भजं करेइ तओ अहं घत्तिया चेत्र भविस्सामि ' । ईलाए कुविया चंदाए उवरि । जाव कोमलो वाही ताव तिमिच्छामि । गओ सेट्ठी । मूलाए वि चंदणाए मुंडावियं सीतं । ईसा वसेण दिण्णाई पासु नियलाई । छूडा उचरिए । दिग्णं तालयं । भणिओ परियणो 'जो सेडिगो साहर तस्साहं पाणहरं दंडं निश्वत्तेमि' । विगाले आगओ सेट्ठी । पुच्छर ' कहिं चंदणा' । मूला भगइ न याणामि, मन्ने रमइ कहिं पि' | बीयदिणे भोयणवेलाए पुच्छइ 'चंदना न दीसइ' । को विन साहइ । तइयदिणे सेट्ठी निब्बंधेण पुच्छइ । एगाए थेरीए भणियं ' सेट्ठि मम विरं जीवंतीए, ता वरं मया, मासा सुमाणुला मरउ ' त्ति सिट्टो सव्ववुत्तंतो । अमुगत्थ उचरिए अच्छइ । तइयदिणं भुक्खियतिसियाए । सेट्ठी न लहइ कुंचियं । भग्गं तालयं । पेच्छइ रुयमाणी । भणियं सेट्टिणा ' पुत्ति, मा रुयह' । महाणसे गओ तीए भोयणकए । न किंचि तत्थ दिट्ठं । दिट्ठा पज्जुसिया कुम्मासा । ते य सुष्पको पक्खिधिय समविया तीसे । सयं पुण गओ लोहारघरे 1 ६ For Private And Personal Use Only Page #8 --------------------------------------------------------------------------  Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ४... चंदणं सीहासणोवविट्ठ आभरियविभूसियं सकं देवे य सुवण्णं च निवडियं । भगवओ पारणयं सोउं समागओ सयाणीओ राया, मिगावई य देवी । अंबाडिया दुट्ठसेट्टिणी । भणियं रण्णा 'एयं सुवणं कस्स भविस्सइ.'। भणियं सक्केण 'जस्स चंदणा देइ । भाणयमणाए 'एयं तायस्स होउ । मनिय रण्णा । सकेण भणिया मिगावई 'तुह भगिणीपई दहिवाहणो । एसा य तस्स दुहिया, ता तुज्झ भागिणेई । ता एयं तुम संरक्खाहि, मा दुट्टसेट्टिणी विणासेइ, जओ एसा भगवओ पढमसिस्सिणी भविस्सइ उप्पण्णणाणस्स । बहुमनियं मिगावईए रण्णा य सक्कवयणं । तत्थ सुहंसुहेणं सा अच्छइ। उप्पने य भगवओ सिस्सगणे समाप्पिया पहाणरायकन्नगाहिं सह य पव्वाविया भगवया । छत्तीसाए अजियासाहस्सीणं जाया पवत्तिणी। अविग्धं विहरिऊणं उप्पाडिय केवलनाणं गया मोक्खं ति । -कथाकोषप्रकरण (बंबई १९४९), पृ० ७०-७१. २. दोमुहो। अत्थि इहेव भारहे वासे कंपिल्लं नाम पुरं। तत्थ हरिकुलवंसुष्भवो जओ नाम राया, तस्स गुणमाला नाम भारिया । सो य तीए सह रज्जसिरिमणुहवंतो गमेइ कालं । अन्नया अत्थाणमंडवट्ठिएण पुच्छिओ दूओ । 'किं नत्थि ममं जं अन्नराईणमत्थि'। दूएण भणियं 'देव, वित्तसभा तुम्ह नत्थि'। तओ राइणा आणत्ता थवइणो, जहा- लहुं चित्तसभं करेह । आएसाणंतरं For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२] समाढत्ता। तत्थ धरणी खन्नमाणीए कम्मकरहिं पंचमदिणे सवरयणमओ जलणो व्व तेयसा जलंतो दिट्ठो महामउडो। सहरिसेहिं सिट्ठो जयराइणो । तेण वि परितुट्ठमणेणं गंदीतूररवपुचयं उत्तारिओ भूमिविवराओ। पुइया थवइमाइणो जहारिहं वत्थमाईहिं । थेवकालेण निम्मिया उत्तुंगसिहरा चित्तसभा । सोहणदिणे य कओ चित्तसभाए पवेसो। आरोविओ मंगलतूरसद्देण अप्पणो उत्तमंगे मउडो । तप्पभावेण दोवयणो सो राया जाओ । लोएण य तस्स ' दोमुह ' त्ति नाम कयं । अइकंतो कोइ कालो । तस्स य राइणो सत्त तणया जाया । " दुहिया मे णस्थि' त्ति गुणमाला अद्धिई करेइ । मयणाभिहाणस्स, जक्खस्स इच्छइ उवाइयं । अन्नया पारियायमंजरीउवलंभसुविणयसूइया जाया तीसे दुहिया । कयं च वद्धावणयं । दिण्णं जक्खस्स उवाइयं । कयं च तीए नाम 'मयणमंजरि' त्ति । कमेण जाया जोव्वणस्था। इओ य उज्जेणीए चंडपज्जोओ राया। तस्स दूएण साहियं, जहा — दोमुहो राया जाओ'। पज्जोएण भणियं । ' कहं ' । दूएण भणियं । ' तस्स एरिसो मउडो अत्थि, तम्मि आरोविए दो मुहाणि हवंति' । मउडस्सुवरि लोभो जाओ । दूयं दोमुहराइणो पेसइ । ' एयं मउडरयणं मम पेसेहि । अह न पेससि तो जुज्झसज्जो होहि'। दोमुहराइणा दूओ भणिओ पज्जोयसंतिओ । 'जइ मम जं मग्गियं देह तो अहमवि मउडं देमि'। दूएण भणियं । ' किं मग्गह ' राइणा भणियं । 'देह नलागेरी हत्थी अग्गिंभीरू तहा रहवरो य । जाया य सिवादेवी लेहारियलोहजंघो य ।' For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एयं-पज्जोयस्स रज्जसारं । पडिगओ दूओ उज्जणि । साहियं पज्जोयस्स दोमुहसंतियं 'पडिवयणं । कुद्धो अईव पज्जोओ चलिओ चउरंगवलेण । दोन्नि लक्खा मयगलाणं दोन्नि सयसहस्सा रहाणं पंच अजुयाणि ' हयाणं सत्त कोडीओ पयाइजणाणं । अणवरयपयाणेहिं संपत्तो पंचालजणवयसंधि । इयरो वि दोमुहराया चउरंगवलसमग्गो नीहरिओ नयराओ । गओ पडिसंमुहं पज्जोयस्स पंचालविसय· संधीए । रइओ गरुडब्बूहो पज्जोएण, सायरब्बूहो दोमुहेण । 'तओ कमेण संपलग्गं दोण्ह वि बलाण जुझं। सो मउडरयण प्पहावेण अजेओ दोमुहराया। भग्गं पज्जोयस्स बलं । बंधिऊण “पज्जोओ पवेसिमो नयरं । दिण्णं चलणे कडयं । सुहेण तत्थ 'पज्जोयराइणो वच्चइ कालो। अन्नया दिवा तेण मयणमंजरी । जाओ गाढो अणुराओ । तओ कामग्गिणा डज्झमाणस्स चिंतासंतावमयस्स वोलीणा कह वि राई । पच्चूसे स गओ अत्थाणं । दिट्टो परिमिलाणमुहसरीरो दोमुहराइणा । पुच्छिओ सरीरपउत्ति । न देह पडिवयणं । सासंकेण य गाढयरं पुट्ठो। तओ दीहं नीससिऊण जंपियं पज्जोएण। 'मयणवलगस्ल नरवर वाहिविवत्थस्स तह य मत्तस्त। कुवियस्स मरंतस्त य लज्जा दूरुज्झिया होई ॥ ता जइ इच्छसि मम कुसलं पयच्छ तो मयणमंजरि एयं। नियधूयं मे नरवर :न देसि पविसामि जलणं' ति ॥ For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ७... तो दोमुहेण निच्छयं नाऊण दिण्णा । सोहणदिणमुहुत्ते कयं पाणिग्गहणं | कइवयदिणेहिं पूइऊण विसज्जिओ, गओ उजोणि पजोओ। अन्नया आगओ इंदमहूसवो । दोमुहराइणा आइट्ठा नायरजणा । 'उभेह इंदकेउं । तओ मंगलनंदीमहारवेण धवलधयवडाडोयखिखिणीजालालंकिओ अवलंबियवरमल्लदामो मणिरयणमालाभूसिओ नाणाविहपलंबमाणफलनिवचिंचइओ उन्मिओ इंदकेऊ । तओ नच्चंति नट्टियाओ। गिज्जति सुकइरइया कव्वबंधा | नचंति नरसंघाया। दंसंति दिटिमोहणाई इंदयालाई इंदयालिणो । दिज्जति तंबोला । खिप्पंति कुंकुमकप्पूरजलच्छडा । दिज्जति महादाणाई । वज्जति मुइंगाइआउज्जाई । एवं महापमोएण गया सत्त वासरा । आगया पुण्णिमा । पूइओ महाविच्छड्डेण कुसुमवत्थाईहिं दोमुहराइणा इंदकेऊ महातूररवेण । अन्नम्मि दिणे पडिओ मेइणीए । दिट्ठो राइणा अमेज्झमुत्तदुग्गंधे निवडिओ । जणेण परिलुप्पमाणो य दळूण वितियं । - धिरत्यु विज्जुरेह व्व चंचलाणं परिणामविरसाणं रिद्धीणं'। एयं चिंतयंतो संबुद्धो पत्तेयबुद्धो जाओ । पंचमुट्ठियं लोयं काऊण पन्वइओ । उत्तं च जो इंदकेउं सुअलंकियं तं दट्टुं पडतं पविलुप्पमाणं । रिद्धिं अरिद्धिं समुपहियाणं पंचालराया वि समिक्खे धम्मं ।। -उत्तराध्ययन, सुखबोधा टीका, - (वलद १९३७ ) पृ. १३५-६. - For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ८ ... ३. मायंगरिसी। महुराए नयरीए संखो नाम राया । सो य तिवग्गसारं जिणधम्माणुट्ठाणं परं जीवलोगसुहमणुभविऊण पच्छा निविण्णकामभोगो तहाविहाणं थेराणमंतिए निक्खंतो कालक्कमेण य जाओ गीयत्थो । पुहइमंडलं च भमंतो पत्तो हत्थिणाउरं । तत्थ भिक्खानिमित्तं पविट्ठो, समुयाणेतो य पत्तो एगं रत्थं । सा य किरउण्हा जलंतमुम्मुरसमाणा, उण्हकाले न सकइ कोइ ताए वोलेउं । जो तत्थ अयाणंतो पविसइ सो उप्फंदइ विणस्सइ य । तीसे य पुण नामं चेव हुयवहरत्था । तेण साहुणा आसन्नगवक्खसंठिओ पुच्छिओ सोमदेवाभिहाणो पुरोहिओ। 'किमेएण मग्गेण वचामि'। तेण य 'एएण हुयवहपहेण गच्छंतस्स डंभमाणं पेच्छिस्सामो' ति चिंतिऊण भणियं-' वच्चसु' । पयट्टो मुणी इरिओवउत्तो । पुरोहिओ वि उवरितलारूढो अतुरियमुवउत्तं सणियं सणियं वोलंतं मुर्णि पेच्छिऊण गओ तेण मग्गेण जाव हिमफाससरिसो जाओ पहो । तओ चिंतियमणेण । 'अहो, मए पावकम्मेण असुहसंकप्पेण पावकम्ममणुट्टियं, दट्टव्यो य एस महप्पा जस्स तव. सत्तीए एसो अग्गिसंकासो हिमफरिससरिसो पहो जाओ'। गओ से समीवं, पणमिओ भावसारं, निवेइयं नियदुचरियं । मुणिणा वि दाइयं संसारासारत्तणं, परूविओ कसायविवागो, कहिओ जिणधम्माणुट्ठाणफलविसेसो, पसंसियं निव्याणसुहं, सव्वहा वित्थरेण संसिओ सम्मत्तमूलो साहुधम्मो । तओ तकालाणुरूवनिव्वत्तियासेसकायव्यो जायसंवेगाइसओ सोमदेवपुरोहिओ गंतूण तस्स समीवं निक्खंतो । गहिया सिक्खा, पालेइ सामण्णं, परं ' उत्तमजाई अहं ' ति वहेइ जाइगारवं, करेइ य For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ९... रूवाइमयं । न उण परिहावेइ, जहा - णत्थि किंपि संसारे अवलेवकारणं, जओ सुभा य असुभा य परिणामा सव्वे वि कम्माणुभावेण परावत्तमाणा चेवेत्थ जीवाणं । भणियं च सुरो वि कुकुरो होइ रंको राया वि जायए । दिओ वि होइ मायंगो संसारे कम्मदोसओ ॥ अन्नं च। न सा जाई न सा जोणी न तं ठाणं न तं कुलं । न जाया न मुया जत्थ सब्वे जीवा अणंतसो । एवमाइअभावियपरमत्थो सो जाइमयाइथद्धो कालक्कमेणे मओ समाणो पत्तो तियसालयं । मुणिओ पुन्वभववुत्तंतो, णिव्वत्तियतियसकायव्वो य सह तियसरामार्हि भोगे भुंजिउं पयत्तो । एवं च भोगासत्तस्स वोलीणाणि णेगाणि पलिओवमाणि । ठिइक्खएण य तओ चुओ संतो गंगाए तीरे बलकोट्टाभिहाणस्स हरिएसाहिवस्स गोरीए भारियाए कुच्छिसि उववन्नो। सा य कुसुमियं वसंतसिरिसमद्धासियं चूयं दळूण पडिबुद्धा । सुमिणपाढयाण सिटुं । तेहिं वि समाइट्ठो पहाणपुत्तजम्मो । कमेण पसूया दारयं ति । अवि य जाईमयावलेवा मायंगकुलम्मि एस उववन्नो । सोहग्गरूवरहिओ णियवंधूणं पि हसणिज्जो ॥ पइट्टियं च से नाम बलो त्ति। वहृतो सब्वत्थ भंडणरओ विसपायवो विव जाओ सन्धोर्स उव्वयकारी । अन्नया पत्ते वसंतूसवे पाणभोयणणञ्चणपराण बंधूण मज्झाओ डिभरूवेहिं सह भंडणं करतो निच्छूढो । पासहिओ य ताणि For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०. पेच्छइ कीलंताणि । थेववेलाए य आगओ ताण मज्झेण विसहरो । ' सप्पो सप्पो ' त्ति वाहरिओ तेहेिं, वावाइओ य सो मायंगेहिं । पच्छा तह च्चिय आगओ दीवओ । सो ' अटुट्टो 'सि न वावाइओ । तओ तं पेच्छिऊण चिंतियं बलेण 'अहो, निययदोसेहि पाणिणो आवयाण मंदिरं भवंति जेणं ' सविसो ' ति णिययभरण वावाइओ सप्पो, इयरो वि' निव्विसो ' ति मुको। नियगुणदोसेहिंतो संपयविवयाओं होति पुरिसाणं । ता उज्झिऊण दोसे एहि पि गुणे पयासेमि || ' एवं भावेमाणो तक्खणसंजायजाइसंभरणो । सुमरियविमाणवासो जाईमयदारुणत्तं च ॥ भावेतो संविग्गो धम्मं सोऊण साहुमूलम्मि । णिग्विण्णभवपवंचो मायंगमहरिसी जाओ || महियसाहुकिरिओ छुट्टट्टमद्स म दुवालसमद्धमासमासवउमासखमणेहिं सोसियसरीरो कमेण विहरमाणो संपत्तो पासजिणजम्मोवसोहियं तियसनयरिसच्छहं वाणारासें । आवासिओ मुणिजणपसत्थे तिंडुगाभिहाणे उज्जाणे । तत्थ गंडीर्तिडगो नाम जक्खो परिवसइ । सो य असरिसगुणावज्जिओ तं चैव महरिसिं पज्जुवासेंतो चिट्ठर । तत्थ य कोसलियराइणो धूया भद्दाभिहाणा नाणाविपरियणाणुगम्ममाणा, खज्जभोजगंधमलविलेवणपडलधरीहिं चेडीहिं सह गया जक्वाययणं, पूइऊण य जक्खपडिमं पाहणं कुणंती दिट्ठो मलमइलियसव्वंगो जुण्णमलिणोवगरणो पणदूरूवलावण्णो अइसहतवसोसियसरीरो मुणी । तं च दट्ठूण मूढत्तणओ निच्छूढमणाए । 'पावा एसा जा महारीसें निंदेह ' त्ति For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावेंतेण अहिट्ठिया जक्खेण, असमंजसाई विल िपयत्ता । कहः कह वि नीया मंदिरं । तं तहाविहं दळूण विसण्णचित्तेण राइणा वाहराविया गारुडिया भोइयभट्टचट्टाइणो त्ति । तओं समाढत्ता धन्वंतरिविन्भमेहिं वेज्जेहिं चउप्पगारा किरिया । न जाओ विसेसो । पुणो वि जंततंतरक्खामंडलाइणो । ते वि ऊसरभूमि-- निहिय व्व बीया जाया निष्फल त्ति । अवि य -- इय जाहे विग्गुत्ता सब्बे विज्जाइणो तओ जक्खो ।। जंपइ पत्तम्मि ठिओ 'एया ए निदिओ साहू ॥ तो जइ णवरं तस्सेव देह मुंचामि नन्नहा मोक्खो'। रण्णा वि ' जीवउ' त्ति य पडिवन्नं जक्खवयणं तु॥. तओ समासत्थसरीरा सव्वालंकारविभूसिया गहियविवाहोव-- मरणा सहिसहिया महाविभूईए गया महरिसिणो समीवं । पायवडणपच्चुट्टियाए य विण्णत्तमणाए सह महल्लिएहिं । 'महरिसि गिण्हसु मज्झ सयंवराए करं करेणं' ति । मुणिणा भणियं ।। भद्दे, अलं एयाए संकहाए वुहजणपरिनिंदियाए । अवि य - इत्थीहि समं वासं पि जे न इच्छति एगवसहीए । कह ते निययकरहिं रमणीण करे गहिस्संति ॥ सिद्धिवहुबद्धरागा असुईपुण्णासु कह णु जुवईसु ।। रज्जति महामुणिणो गेवेज्जयवालिदेवे ब्च ।' तओ विमणदुम्मणा परियणाणुगम्ममाणा गया पिउसमीवं । - उत्तराध्ययन, सुखबोधा टीका ( वलद १९३७), पृ. १७३-७५६ For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... १२ ... ४. अणणुओगो। एका नागरमहिला भत्तारे मए गामे पवुत्था कट्ठाइसयंगाहलाभाओ। तीसे य पुत्तो खुड्डलओ, सो वटुंतो मायरं पुच्छइ ‘कर्हि मे पिय' त्ति । सा भणइ 'मओ'। सो भणइ 'सो केणोवाएण जीवियाइओ'। सा भणइ 'ओलग्गाए । सो भणइ ‘ता हैं ओलग्गामि' । सा भणइ 'न-याणसि तुमं ओलग्गिउं'। सो भणइ 'कहं पुण ओलग्गिज्जा'। सा भणइ 'विणएण'। सो भणइ 'केरिसो विणओ जो भए कायवो' ति। सा आह्र दिवो जोहारिज्जइ जं जं सो भणइ तं च कायब्वं । पडियासूरेयव्वं न कयाइ वि पाणचाए वि ॥ तओ सो 'आम' ति भणित्ता पट्टिओ नगराभिमुहो । झाडंतरमह लुक्के पेच्छइ आगरिसिएहिं धणुहेहिं । वाहे ते दळूणं महया सद्देण जोकारे ॥ तओ हरिणेसु पलाइएसु तेहिं सो बद्धो, पिट्टिओ, सम्भावे कहिए मुक्को, भणिओ हिं जइ पेच्छसि एरिसयं पुणो वि तो सणियगं निलुकंतो। ओयरिओ वच्चेज्जसु तुसिणीओ निन्नदेसेण ॥ सो ' एवं होउ' त्ति पट्टिओ नगराभिमुहो । तत्थ य पुरओ रयगा वत्थाणि धोवंति । हरइ य दिवसे दिवसे तेसिं वत्थाणि कोइ चोरोति । तो खड्डासिंगसुं तेहि तया थाणयं दिण्णं ।। For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सो वि य तहेव खड्डाएँ एंतओ तेहिं रयगचूडेहिं । दिट्ठो गहिओ बद्धो कहिए मुक्को य सम्भावे ॥ भणिओ य हियट्टाए जइया दीसइ इमेरिसं तइया । होउ ह सुद्धं खारो पडउ य ' एवं ' ति भणिऊण || पुणो नगराभिमुहो पट्टिओ। पेच्छइ य मंगलसएहि वप्पिणं करिसगेहि वुप्पंतं । भणियं च तहा बद्धो मुक्को कहिए य परमत्थे । भाणिओ य भणेज्जसु एरिसम्मि भांडं भरेह एयस्स । बहुयं च होउ एयं पुणो पुणो एरिसं तुम्हें ॥ 'एवं होउ' त्ति पुणो पट्ठिओ। पेच्छइ नगरदुवारे मयगं नीणिजमाणमिइ भणिए । बद्धो, कहिए मुक्को, भणिओ य भणिजए एवं ।। एएण एरिसेणं कजेणं होउ मे विओगो त्ति । मा एरिसयं कजं पावेजह अन्नजम्मे वि ॥ तओ ‘एवं' भणिऊण नगररच्छाए हत्थिक्खंधवरगयं दळूण वहूवरं विभूईए । गच्छंतं झडिकाहलसद्देणं सो तयं भणइ ।। एएण एरिसेणं कजेणं होउ मे विओगो त्ति । मा एरिसयं कजं पावेजह अन्नजम्मे वि ।। बद्धो कहिए मुक्को भाणिओ य हियट्टयाएँ सो तेहिं । मूढ भणेज्जसु एवं 'दिणे दिणे होउ भे एयं ॥ For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .... १४... सो ' एवं ' ति भणित्ता पुणो पट्टिओ। अन्नया रायउत्तं नियलियं पेच्छिऊणाह जावेह चंदसूरा तवंति गयणंगणे गुणविसाले । ताव तुह एरिसं होउ जमहं नियच्छामि ॥ बद्धो मुक्को भाणिओ य 'एरिसे भण्णए इमं मूढ' । 'तुम्ह इमं अजं चिय विहडउ, किं कालखेवेण' । ताहे ' एवं ' ति भणिऊण पट्टिओ। पेच्छइ य दोण्ह सुबहुयकालविरुद्धाण नरवरिंदरणं । साहुपुरिसेहि सद्धिं नरघट्ट कीरमाणं सो ॥ सो भणइ 'तुम्भ एयं विहडउ किंचि कालेण। इय सो कहिंचि जीओ एगस्सोलग्गओ जाओ ॥ अन्नया दुभिक्खे तस्स तस्सामिणो भज्जाए अंबिलजाओ सिद्धिल्लिओ । सो य से तस्सामी ओलग्गओ गओ। सो तीए भणिओ, गच्छाहि, भोइयं भणाहि, 'एहि जाव अंबिलजाओ न सीयलीहोहिइ ' त्ति । सो गओ । तेण रणो अत्थाइयाए तहेव महया सद्देण सो हकारिओ, विलक्खो य जाओ। घरगएण य अंबाडिओ, भणिओ य ' एरिसे कजे सणियं कण्णमूले ठाइऊणं विभाए कहिज्जइ'। तओ से अन्नया घरं पलितं, भोइणीए पट्टविओ 'भोइयं हकारेहि । सो गओ, पत्थावे लद्धे चिराओ कण्णे कहेइ 'एवं च', जाव सो आगच्छइ ताव घरवासो झामिओ । तत्थ वि अंबाडिओ । भणिओ य 'एरिसे जाहे चेव धूममेत्तं पि होइ ताहे लहुं चेव उदयं उवार दिज्जइ जाव कंजियं' ति । एवं अन्नया For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोइओ पावारयं ओढिऊण अगुरुणा धूवेइ, धूमो निग्गओ, तेण से उद्गतकदुद्धाइ संनिहियं अपेच्छंतेण कोसीए कंजिगा सिरए से उकिरिया जहा तहा विज्झायओ ति। एवं जो अन्नम्मि वत्तब्वे अन्नं कहेइ तस्स अणणुओगो होइ । -विशेषावश्यक, कोट्याचार्यवृत्ति (रतलाम १९३६), पृ. ४०८-९. ५. अभयदाणं। अस्थि इहेव बंभउरं नयरं, कुसद्धओ राया, कमलुया महादेवी, तारावलिप्पमुहाओ अन्नदेवीओ । अन्नया य राया वायायणोवविट्ठो समं कमलुयापमुहाहिं चउहिं अग्गमहिसीहिं अक्खजूयविणोएण चिट्ठइ, जाव अणेयकसाधायदूमियदेहो बद्धो पयडरज्जूए दंडवासिएण आणीओ तकरो। भणियं च णेण 'देव, कयमणेण परदव्वावहरणं ति। राइणा भाणियं वावाएहि एयं' । पयहाविओ दंडवासिएण वज्झभूमि । तओ पाणवल्लहयाए अवलोइऊण दाणवयणेण दिसाओ अकंदियमणेण 'अहो, पढमचोरकारी असंपत्तमणोरहो वावाइज्जामि अहन्नो' त्ति । एयमायण्णिऊण सोगियाओ देवीओ । विण्णत्तो ताहि राया 'अज्जउत्त, मा असंपत्तमणोरझे वावाइज्जउ, अज्जउत्तपसाएण करेमो किं पि एयस्स। अणुमयं राइणा, भणियं 'करेह तओ एगीए मोयाविऊण अभंगाविओ सहस्सपागेण, महाविओ सप्पओयं, पहावाविओ गंधोयगाईहि, दिण्णं खोमजुयलं । लग्गा दससहस्सा । भणिओ य तीए 'एत्तियगो मे विहवो' त्ति । For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... १६ ... __ अन्नाए कराविओ आसवपाणं, भक्खाविओ विलंके, विलिंपाविओ जक्खकद्दमेणं, दिण्णं कडिसुत्तयं । परिच्चाओ वीसं सहस्साई । भणिओ य तीए 'एत्तियगो मे विहवो' त्ति । ___ अन्नाए भुंजाविओ कामियं, पायाविओ दक्खापाणगाई, भूसाविओ दिव्वाहरणेहि, दिण्णं तंबोलं । लग्गो एत्थ लक्खो। भणिओ य तीए 'एत्तियगो मे विहवो' त्ति । ___ मउलिया कमलुया, भणिया नरिंदेण 'न देसि तुमं किंचि'। तीए भणियं 'अजउत्त, नत्थ मे विहवो एयस्स सुंदरयरदाणे'। राइणा भणियं जीक्लोयसारभूया मे तुमं, पहवास ममं पाणाणं पि, ता कहं नत्थि' । तीए भणियं । 'अजउत्त, महापसाओ । जइ एवं, ता देमि किंचि अहं अजउत्ताणुमईए'। राइणा भणियं 'एवं करेहि' । भणिओ य तीए चोरो 'भद्द, दिट्ठो तए अकजबीयतरुकुसुमुग्गमो' । तेण भणियं । 'सामिणि, सुठ्ठ दिट्ठो, अओ चेव संजायपच्छायावो विरओ अहं जावजीवमेवाकज्जायरणस्स'। देवीए भणियं 'जइ एवं, ता दिण्णं मए इमस्स अभयं'। राइणा भणियं 'सुदिपणं' ति । हरिसिओ चोरो, मोइयं सुंदरयरं ति । परितुट्ठा कमलुया। हसियं सेसदेवीहि । महादेवीए भणियं । 'किमिमिणा हसिएण, एयं चेव पुच्छह , किमेत्थ सुंदरयरं' ति । पुच्छिओ चोरो । भणियं च णेण 'मरणभयाहिभूएण न नार्थ मए सेसं ति न-याणामि विसेसं। संपयं पुण सुहिओ म्हि' । एवमेयं ति पडिवनं सेसदेवीहिं । -समराइचकहा, नवमो भवो, पृ० ७८५-८७. - For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. सव्वकामियं पडणं । तओ अहं अहाउयं अणुपालिऊण चुओ समाणो इहेव विजए सुसुमारे रण्णे सुंसुमारागिरिम्म हत्थित्ताए उववन्नो, संपत्तो य कलभगावत्थं । एत्थंतरम्मि य इयरो वि नरयाओ उव्यट्टिऊण तम्मि चेव गिरिवरे सुगपक्खित्ताए उववन्नो त्ति । अइकंतो य सिसुभावं । दिट्ठो अहं तेण तम्मि चेव गिरिवरे सहावरमणीएसु नलवणेलु करेणुसंघायपरिगओ सलीलं परिभमंतो त्ति । तओ मं ठूण पुव्वभवब्भासाओ उकडकम्मोदयाओ य समुप्पन्नो ममोवरि वेरपरिणामो । चिंतियं च तेणं । कहं पुण एस कुंजरो इमाओ भोगसुहाओ वंचियबो त्ति । उवाए गवेसिउमारद्धो । ___ अन्नया लीलारई नाम विज्जाहरो, सो मियंकसेणस्स विज्जाहरस्स भइणि चंदलेहाभिहाणिं अवहरिऊण तब्भएणेवागओ तमुद्देसं । भणिओ य तेण सो सुगो । ' अहं एत्थ गिरिनिगुंजे चिट्ठामि, आगमिस्सइ य एत्थ एगो विज्जाहरो, तओ न तुमए तस्स अहं साहियव्यो । गओ य सो ममं साहियव्वो। तओ ते किंचि पडिरूवभुवयारं करिस्सामि । एवं कए सुट्ठ मे उवकयं' ति जंपिऊणमोइण्णो वियडतडाभोगसंठियं गिरिनिगुंजं । इयरो वि तम्मि चेवुद्देसे नारंगपायवसाहागए नीडे चिट्ठइ, जाव आगंतूण गओ मियंकसेणो । एत्थंतरम्मि य करेणुपरिगओ अहं आगओ तमुद्देसं । तओ में दट्टण चिंतियं सुगेण । अस्थि इयाणि अवसरो मे समीहियस्स । तओ नियडिबहुलेण सजायाए सहाभिमंतिऊण मम सवणगोयरे भणियं । 'सुंदरि, सुयं भए भयवओ वसिट्टमहरिसिस्स समीवे जहा इहं सुसुमारपव्वए For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... १८... सम्वकामियं नाम पडणमत्थि । जो जं अभिलसिऊण पडइ, सो तक्खणेण चेव तं पावइ ' त्ति । तओ मए पुच्छियं 'भयवं, कहिं पुण तमुद्देसं । तेण साहियं जहा 'इमस्स सालतरुवरस्स वामपासेणं' ति । 'ता अलं इमिणा तिरियभावेण । एहि, विज्जाहरपणिहाणं काऊणं तर्हि निवडामो' । पडिस्सुयं च से इमं जायाए । गयाइं तमुद्देसं, कओ पणिही, निवडियाई गिरिनिगुंजे । साहियं लीलारइणो । समुप्पइओ य सह चंदलेहाए गयणयलमलंकरतो लीलारई । दिट्टो य अम्हहिं। समुप्पन्ना मे चिंता । ' अहो, सव्वकामियपडणाणुभावो, जमेयं 'सुगमिहुणयं कयविज्जाहरपणिहाणमिह निवाडिऊण तक्खणा चेव विज्जाहरमिहुणयं जायं । ता अलं अम्हाणं पि इमिणा तिरियभावेण । तओ देवपणिहिं काऊण निवडामो एत्थ अम्हे वि' त्ति । एवं च संपहारिऊण पणिहिं काऊण निवाडिया तत्थ अम्हे । एत्थंतरम्मि य उप्पइयं सुयमिहुणयं, न लक्खियमम्हहिं । तओ संचुणियंगोवंगो अहं किलेसमणुहविऊणं अकामनिज्जराए कम्म खविऊण उववन्नो कुसुमसेहराभिहाणे वंतरभोम्मनयरे वंतरोत्ति,। तत्थ य उदारे भोए भुंजामि जाव, इयरो वि सुयत्ताए मरिऊण रयणप्पभाए चेव पुढवीए लोहियामुहाभिहाणे नरए समुप्पन्नो नारगो त्ति। -समराइचकहा, बीओ भवो, पृ० ८६-८८. For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९ ... ७. वक्कलचीरि-कहाणयं । तओ कृणिओ पुच्छइ । ' कह वा भयवं, बालकुमारं रज्जे टाऊण पसन्नचंदो राया पव्वइओ, सोउमिच्छं । तओ भणइ 16 पोयणपुरे सोमचंदो राया । धारिणी देवी । सा कयाइ तस्स रण्णो ओलोयणगयस्स केसे रयंती पलियं दट्ठूण भणइ 'सामि, दूओ आगओ 'ति । रण्णा दिट्ठी वियारिया, नेय परसर अपुग्वं जणं । तओ भइ 'देवि, दिव्वं ते चक्खुं ' । तीए पलियं दंसियं 'धम्मदूओ एसो 'ति । तं च दट्ठूण परुण्णो राया । उत्तरीएण य से अंसूणि घरेमाणी देवी भणइ जइ लज्जह बुडत्तणेण, निवारिज्जिहि जणो ' । तओ भगइ 'देवि, न एवं कुमारो बालो असमत्थो पयापालणे होज्ज त्ति मे मंतुं जायं । पुव्वपुरिसाणुचिणेण यमग्गेण न गओ हं ति णे विचारो । तुमं पसन्नचंदं संरक्खमाणी अच्छसु ' त्ति । सा निच्छिया गमणे । t 3 तओ पुत्तस्स रज्जं दाऊण धारदेवीसहिओ दिसापोक्खियतावसत्ताए दिक्खिओ चिरसुन्ने आसमपए डिओ | देवीए य पुव्वाहुओ भो परिवडूद, पसन्नचंदस् य चारपुरिसेहिं निवेइओ । पुण्णसमए य पसूया कुमारं वक्कलेसु ठविभत्ति वक्कलचीरी । देवी सूइयारोगेण मया, वणमहिसीदुद्धेण य कुमारो वद्धाविज्जइ । धाई. वि थोवेण कालेन कालगया | काढणेण वहइ रिसी वक्कलचीरिं । परिवडिओ य आलिहिऊण दंसिओ चित्तगारेहिं सो पसन्नचंदस्स/ तेण सिणेहेण गणियादारियाओ रिसिरूविणीओ 'खंडमयमोययविविफलेहिं णं लोह ' त्ति पट्टवियाओ । ताओ य णं फलेहिं For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... २० ... महुरेहि, महुरेहि य वयणेहि, सुकुमारपीणुन्नयथणपीलणेहि य लोभेति । सो कयसमवाओ गमणेण जाव उवगओ तावसभंडगं संठवेउं, ताव रुक्खाहिरूढेहिं चारपुरिसेहि सण्णा दिण्णा ‘रिसी आगओ' त्ति । ताओ दुयमवर्कताओ। सो तासि पडिवीहिमणुगच्छमाणो अन्नओ गओ । सो अडवीए परिम्भमंतो रहगयं पुरिसं दळूण 'ताय, अभिवादयामि' त्ति भणंतो रहिएण पुच्छिओ 'कुमार, कत्थ गंतव्वं ' । सो भणइ 'पोयणपुरं नाम आसमपर्य। तस्स वि पुरिसस्स तत्थेव गंतव्वं । तेण भणियं 'समगं वच्चामो'। रहिणो भारियं 'तायं' ति आलवइ । तीए भणियं को इमो उवयारो'। रहिणा भणियं 'सुंदरि, इथिविरहिए नूणं एस आसमपए वड्डिओ न-याणइ विसेसं, न से कुप्पियन्वं'। तुरगे य भणइ 'किं इमे मिगा वाहिज्जति'। सारहिणा भणियं 'कुमार, एए एयम्मि चेव कज्जे उवउज्जति, न इत्थ दोसो' । तेण वि से मोदगा दिण्णा । सो भणइ 'पोयणासमवासीहि मे रिसिकुमारहिं एयारिसाणि चेव फलाणि दत्तपुब्वाणि ' त्ति। वञ्चंताण य से एकेण चोरेण सह जुझं जायं। रहिणा गाढप्पहारो कओ, सिक्खागुणपरितोसिओ भणइ अस्थि विउलं धणं, तं गिण्हसु सूर' त्ति । तेहिं तिहि वि जणेहिं रहो भरिओ। कमेण पत्तो पोयणपुरं नयरं, मोलं गाहाय विसज्जिओ 'उडयं मग्गसु' ति। सो भमंतो गणियाघरे ‘ताय, अभिवादेमि, देहि इमेण मोल्लेण उडयं' ति । गणियाए भाणिओ दिज्जइ, निवेसह ' त्ति। तीए य कासवओ सद्दाविओ । तओ अणिच्छतस्स कयं नहपरिकम्मं । अवणीयवकलो य वत्थाभरणभूसिओ गणियादारियाए पाणिं गिहाविओ । 'मा इमं रिसिवेसं अवणेहि ' त्ति जपमाणो For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... २१ ... ताहि भण्णइ 'जे उडयत्थी इहमागच्छंति तोर्स एरिसो उवयारो कीरइ' । तओ य गणियाओ उवगायमाणीओ वहूवरं चिट्ठति । जो य कुमारोवलोभणनिमित्तं रिसिवेसेण जणो पेसिओ सो आगओ कहेइ 'कुमारो अडविमइगओ, अम्हेहिं रिसिस्स भएण न तिण्णो सद्दावेउं'। तओ राया विसण्णमाणसो भणइ 'अहो अकज्ज, न य पिउसमीवे जाओ, न इहं, न नज्जइ कि पत्तो होहिइ' त्ति चिंतापरो अच्छइ । सुणइ य मुयंगसई, तं च से सुइपहदूमणं जायं । भणइ य 'मए दुक्खिए को मन्ने सुहिओ गंधव्वेण रमइ' त्ति। गणियाए पहिएण जणेण कहियं । सा आगया, पायवडिया रायं पसन्नचंदं विण्णवेइ 'देव, निमित्तसंदेसो मे, जो तावसरूवो तरुणो गिहमागच्छेज्जा ता तस्स समागमेव दारियं देजासि, सो उत्तमपुरिसो, तं संसिया विउलसोक्खभागिणी होहिइति। सो जहा भणिओ नेमित्तिणा अज्ज में गिहमागओ। तं च संदेसं पमाणं करेंतीए दत्ता से मया दारिया, तन्निमित्तं उस्सवो, न य णायं 'कुमारो पणट्ठो'। एत्थ मे अवराहं मरिसेह' ति । रण्णा संदिट्ठा मणुस्सा जेहिं आसमे दिट्ठपुवो कुमारो, तेहि य गएहिं पञ्चभिजाणिओ, निवेदियं च पियं । रण्णा परमपीइमुबहतेण वहुसहिओ सगिहमुवणीओ । सरिसकुलरूवजोवणगुणाण य रायकन्नगाणं पाणिं गिहाविओ, कयरज्जसंविभागो य जहासुहमभिरमइ । रहिओ चोरदत्तं दवं विकिणंतो रायपुरिसहि 'चोरो' त्ति गहिओ । वक्कलचीरिणा मोइओ पसन्नचंदविदियं ति । सोमचंदो वि आसमे कुमारं अपस्समाणो सोगसागरावगाढो, पसन्नचंदपेसिएहिं नगरगयं वकलचीरिं निवेदितेहि कह वि For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... २२ ... संठविओ, पुत्तमणुसरंतो अंधो जाओ। रिसीहि साणुकंपेहिं कयफलसंविभागो तत्थेव आसमे निवसइ । गएसु य बारससु वासेसु कुमारो अद्धरत्ते पडिबुद्धो पियरं चिंतेउमारद्धो । 'किह मन्ने ताओ मया निग्विणेण विरहिओ अच्छइ' त्ति पियदसणसमूसुगो पसनचंदसमी गंतूण पायवडिओ विण्णवेइ 'देव, विसज्जेह मं, उत्कंठिओ हं तायस्स। तेण भणिओ 'समगं वञ्चामो' | गया य आसमपयं, निवेइयं च रिसिणो 'पसन्नचंदो पणमइ ' त्ति । चलणावगओ य णेण पाणिणा परामुट्ठो 'पुत्त, निरामओ सि' त्ति । वक्कलचीरि पुण अवयासिय चिरकालधरियं से बाहं मुयंतस्स उम्मिल्लाणि नयणाणि, पस्सइ य दो वि जणे परमतुट्ठो, पुच्छइ य सम्बकालकुसलं । वक्कल वीरी य कुमारो अइगओ उडयं, 'पस्लामि ताव तायस्स भंडयं अपेहिज्जमाणं केरिसं जायं ति। तं च उत्तरीयंतेण पडिलेहिउमारद्धो जई विव पायकेसरियाए । 'कत्थ मण्णे मया एरिसं करणं कयपुवं' ति विविहमणुसरंतस्स तयावरणखएण जायं जाईसरणं । सुमरइ तं देवमाणुसभवे य सामण्णं पुराकयं, संभरिऊण वेरग्गमग्गमोइण्णो विसुज्झमाणपरिणामो य केवली जाओ निग्गओ य । पकहिओ य धम्मं जिणप्पणीयं पिउणो पसन्नचंदस्स य रणो। ते दो वि लद्धसम्मत्ता पणया सिरेहिं केवलिणो ‘सुठ्ठ ते दंसिओ मग्गो' त्ति । वक्कलचीरी पत्तेयबुद्धो गओ पियरं गहेऊण महावीरवद्धमाणसामिणो पासं । पसन्नचंदो नियगपुरं । जिणो य भयवं सगणो विहरमाणो पोयणपुरे मणोरमे उज्जाणे समोसरिओ । पसन्नचंदो वकलचीरिवयणजणियवेरग्गो परम For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... २३ ... मणहरतित्थयरभासियामयवढिउच्छाहो बालं ठविऊण पव्वइओ। पुत्तं रज्जे -वसुदेवहिंडी, भा० १ ( भावनगर १९३०), पृ० १७-२०. ८. सागडियस्स उदंतं । अस्थि कोइ कम्हिइ गामेल्लओ गहवई परिवसइ । सो य अन्नया कयाई सगडं धण्णभरियं काऊणं, सगडे य तित्तिरि पंजरगयं बंधित्ता पट्ठिओ नयरं । नयरगओ य गंधियपुत्तेहिं दीसइ । सो य तेहिं पुच्छिओ ‘किं एयं ते पंजरए' त्ति । तेण लवियं 'तित्तिरि' त्ति । तओ तेहिं लावयं किं इमा सगडतित्तिरी विकायइ' । तेण लवियं ' आमं, विकायइ ' । तेहिं भणिओ 'कित्तिएण लब्भइ ' । सागडिएण भणियं 'काहावणेणं' ति । तओ तेहिं काहावणो दिण्णो, सगडं तित्तिरं च घेत्तुं पयत्ता । तओ तेण सागडिएणं भण्णइ ' कीस एयं सगडं नेह ' त्ति । तेहिं भणियं 'मोल्लेण लइययं' ति । तओ ताणं ववहारो जाओ , जिओ सो सागडिओ , हिओ य से सगडो तित्तिरीए समं । सो सागडिओ हियसगडोवगरणो जोगखेमनिमित्तं आणिएल्लियं बइल्लं घेत्तूणं विक्कोसमाणो गंतुं पयत्तो, अन्नेण कुलपुत्तएणं दीसइ, पुच्छिओ य ‘कीस विकासास' । तेण लवियं ' सामि, एवं च एवं च अइसंधिओ हं' । तओ तेण साणुकंपेण भणिओ ' वच्च ताणं चेव गेहं , एवं च एवं च भणाहि' त्ति । तओ सो For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... २४... तं वयणं सोऊण गओ , गंतूण य तेण भणिया । 'सामि , तुम्भहिं मम भंडभरिओ सगडो हिओ, ता इमं पि बइल्लं गेण्हह । मम पुण तप्पणादुपालियं देह, जं घेतूण वच्चामि त्ति । न य अहं जस्स व तस्स व हत्थेणं सत्तुयादुपालियं गेण्हामि, जा तुज्झ घरिणी पाणेहि वि पिययरी सव्वालंकारभूसिया तीए दायब्वा, तओ मे परा तुट्ठी भविस्सइ, जीवलोगभंतरं व अप्पाणं मानस्सामि'। तो तेहिं सक्खी आहूया , भणियं च ' एवं होउ' त्ति । तओ ताणं पुत्तमाया सत्तुयादुपालियं घेत्तूण निग्गया, तेण सा हत्थे गहिया, घेत्तूण य तं पट्टिओ । तेहिं पि भणिओ 'किमयं करोस। तेण भणियं सत्तुदुपालियं नेमि । तओ ताणं सद्देण महाजणो संगहिओ , पुच्छिया 'किमयं । ति । तो तेहिं जहावत्तं सध्वं परिकहियं । समागयजणेण य मज्झत्थेणं होऊण ववहारनिच्छओ सुओ । पराजिया य ते गंधियपुत्ता । सो य किलेसेण तं महिलियं मोयाविओ, सगडो अत्थेण सुबहुएण सह परिदिण्णो । -वसुदेवहिँडी, भा० १ (भावनगर १९३०), पृ० ५७-५८. For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... २५ ... १. एलयं। जहाएसं समुद्दिस्स कोइ पोसेज्ज एलयं । ओयणं जवसं देज्जा पोसेज्जा वि सयंगणे ॥१॥ तओ से पुढे परिवूढे जायमेए महोदरे। पीणिए विउले देहे आएसं परिकंखए ।॥ २ ॥ जाव न एइ आएसे ताव जीवइ सो दुही । अह पत्तम्मि आएसे सीसं छेत्तूण भुज्जइ ॥ ३ ॥ जहा से खलु उरन्भे आएसाए समीहिए । एवं वाले अहम्मिटे ईहई नरयाउयं ॥ ४ ॥ हिंसे बाले मुसावाई अद्धाणंसि विलोवए । अन्नदत्तहरे तेणे माई कंणुहरे सढे ।। ५ ॥ इत्थीविसयागद्धे य महारंभपरिग्गहे । भुंजमाणे सुरं मंसं परिवूढे परंदमे ॥ ६ ॥ अयककरभोई य तुंडिल्ले चियलोहिए । आउयं नरए कंखे जहाएसं व एलए ॥ ७ ॥ आसणं सयणं जाणं वित्तं कामे य भुंजिया । दुस्साहडं धणं हिचा बहुं संचिणिया रयं ॥ ८ ॥ तओ कम्मगुरू जंतू पच्चुप्पन्नपरायणे । अय व्व आगयाएसे मरणंतम्मि सोयइ ॥ ९ ॥ तओ आउपरिक्खीणे चुया देहा विहिंसगा । आसुरीयं दिसं बाला गच्छंति अवसा तमं ॥१०॥ For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... २६ ... जहा कागिणिए हेउं सहस्सं हारए नरो। अपच्छे अंबगं भोच्चा राया रज्जं तु हारए ॥ ११ ॥ एवं माणुस्सगा कामा देवकामाण अंतिए । सहस्सगुणिया भुज्जो आउं कामा य दिविया ॥ १२ ॥ अणेगवासानउया जा सा पण्णवओ ठिई। जाणि जीयति दुम्मेहा ऊणवाससयाउए ।॥ १३ ॥ जहा य तिणि वणिया मूलं घेत्तूण निग्गया। एगोऽस्थ लहई लाभं एगो मूलेण आगओ ॥ १४॥ एगो मूलं पि हारित्ता आगओ तत्थ वाणिओ । ववहारे उवमा एसा एवं धम्भे वियाणह ॥ १५ ॥ माणुसत्तं भवे मूलं लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं नरगतिरिक्खत्तणं धुवं ।। १६ ॥ दुहओ गई बालस्स आवई वहमूलिया । देवत्तं माणुसत्तं च जं जिए लोलयासढे ॥ १७ ॥ तओ जिए सई होइ दुविहं दोग्गइं गए। दुल्लहा तस्स उम्मग्गा अद्धाए सुइरादवि ॥ १८ ॥ एवं जियं सपेहाए तुलिया बालं च पंडियं । मूलियं ते पवेसंति माणुसिं जोणिमेति जे ।। १९ ॥ वेमायाहिं सिक्खाहि जे नरा गिहिसुब्वया । उवेति माणुसं जोणि कम्मसञ्चा हु पाणिणो ॥ २० ॥ जेसिं तु विउला सिक्खा मूलियं ते अइच्छिया। सीलवंता सवीसेसा अदीणा जंति देवयं ॥ २१ ॥ For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... २७ ... एवमद्दीणवं भिक्चु आगारिं च वियाणिया । कहं णु जिच्चमेलिक्वं जिच्चमाणे न संविदे ॥ २२ ॥ जहा कुसग्गे उद्गं समुद्देण समं मिणे । एवं माणुस्सगा कामा देवकामाण अंतिए ॥ २३ ॥ कुसग्गमेत्ता इमे कामा संनिरुद्धम्मि आउए । कस्स हेउं पुराकाउं जोगक्खेमं न संविदे ॥ २४ ॥ इह कामाणियहस्स अत्तट्टे अवरज्झइ । सोच्चा नेयाउयं मग्गं जं भुज्जो परिभस्सइ । ॥ २५ ॥ इह कामनियट्टस्स अत्तटे नावरज्झइ । पूइदेहनिरोहेणं भवे देवे त्ति मे सुयं ।। २६ ।। इड्डी जुई जसो वण्णो आउं सुहमणुत्तरं । भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु तत्थ से उववज्जइ ॥ २७ ॥ बालस्स पस्स बालत्तं अहम्मं पडिवज्जिया। चिच्चा धम्मं अहम्मिट्टे नरए उववज्जइ ॥ २८ ।। धीरस्स पस्स धीरत्तं सञ्चधम्माणुवत्तिणो । चिच्चा अधम्मं धम्मिट्टे देवेसु उववज्जइ ॥ २९ ॥ तुलियाण बालभावं अबालं चेव पंडिए । चइऊण बालभावं अबालं सेवई मुणि ।। ३०॥ त्ति बेमि ॥ -उत्तरज्झयण, ७. For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... २८ ... २. सीयाहरणं। सा तत्थ रुवइ भवणे चंदणहा विगलियंसुसलिलोहा । विलिहियनहकक्खोरू विमुक्ककेसी य रयमइला ॥१॥ खरदूसणेण दिट्ठा मलिया नालणि व्व गयवरिंदेण । भणिया य साहसु तुमं केणेयं पाविया दुक्खं ॥ २ ॥ भणइ तओ चंदणहा गया य पुत्तं गधेसणट्ठाए । नवरं पेच्छामि वणे छिन्नसिरं तं महिं पडियं ॥३॥ मारेऊण मह सुयं केण वि पावेण सूरहासं तं । गहियं च सिद्धविज्ज खेयरपुज्जं महाखग्गं ॥४॥ अहमवि तं पुत्तसिरं अंके ठविऊण सोगतवियंगी । बहुला व जह विवच्छा रुयामि रणे विगलियंसू ॥ ५ ॥ ताव च्चिय तेण अहं दुट्टेणं पुत्तवेरिएण पहू। अवगृहिया रुयंती धणियं कज्जेण केणं पि ॥६॥ अहयं अणिच्छमाणी दंतेसु नहेलु तेण पावेणं । एयारिसं अवत्थं एगागी पाविया रणे ॥७॥ तत्तो वि रक्खिया है परभवजणिएण पुण्णजोएणं । अविखंडियचारित्ता कह वि इहं आगया सामी ॥ ८॥ विज्जाहराण राया भाया मे रावणो तिखण्डवई । दूसण तुमं पि भत्ता तहवि इमं पाविया दुक्खं ॥ ९॥ सुणिऊण तीऍ वयणं सोगाऊरियमणो तहिं गंतुं । खरदूसणो विवन्नं पेच्छइ पुत्तं महीपडियं ॥ १० ॥ For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... २९ ... पडियागओ खणेणं निययघरं रोसपूरियामरिलो । चोद्दसहि सहस्सेहिं संनद्धो पवरजोहाणं ॥ ११ ॥ एयंतरम्मि तो सो भणिओ चित्तप्पभेण मंतीणं । लंकाहिवस्स दूयं पेसेहि इमेण अत्थेण ॥ १२ ॥ अह रावणस्स दूयं सिग्धं खरदूसणो विसज्जेउं । बाहपगलंतनेत्तो रुयइ य सुयसोगमावन्नो ॥ १३ ॥ दूएणं परिकहिए जाव च्चिय रावणो चिरावेइ । चोद्दसहि सहस्सेहिं जोहाणं दूसणो चलिओ ॥ १४ ॥ दूसणबलस्स गयणे सीया सुणिऊण तूरनिग्धोसं । किं किं ति उल्लवंती सीया रामं समल्लीणा ॥ १५ ॥ मा भाहि चंदवयणे एए हंसा नहेण वच्चंता। मुंचंति मुहनिणायं अप्पेहि धणुं पणासेमि ॥ १६ ॥ ताव य आसन्नत्थं विविहाउहसंकुलं महासेन्नं । दिटुं समोत्थरंतं गयणयले मेहवंदं व ॥ १७ ॥ चिंतेइ रामदेवो किं वा नंदीसरं सुरा एए । गंतॄण पडिनियत्ता निययट्ठाणाइ वच्चंति ॥ १८ ॥ वंसत्थलम्मि छेत्तुं अहवा जो सो विवाइओ रणे । वेरपडिमुंचणत्थे तस्स इमे आगया बंधू ॥ १९ ॥ नूणं दुस्सीलाए तीए गंतूण दुट्ठमाहिलाए । सिटुं च जहावत्तं तेण इमे आगया इहई ।। २० ॥ परिचिंतिऊण एवं रामो चावे सकंकडे दिट्ठी । देतो य लक्खणेणं भणिओ वयणं निसामेहि ॥ २१ ॥ For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org *** ३० ... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संतेण मए राहव न य जुत्तं तुज्झ जुज्झिउं एत्तो । रक्ख इमं जणयसुयं अरीण समुहो अहं जामि ॥ २२ ॥ जंबेल सीहनायं वेरियपरिवेदिओ विमुंचे हं । तंवेल तुमं राहव एज्जसु सिग्घं णिरुत्तेणं ॥ २३ ॥ एव भणिऊण तो सो संनद्धो गहियपहरणावरणो । अह जुज्झिउं पवतो समयं चिय रक्खसभ डेहिं ॥ २४ ॥ लच्छीहरस्स उचरिं निसायरा विविहसत्थसंघायं । मुंचति पञ्चयस्स व धारानिवहं पशवाहा ॥ २५ ॥ रयणियरकरविमुक्कं मउहनिवहं रणे निवारेडं । जमदंडसरिसवेगे मुंबइ लच्छीहरो बाणे ॥ २६ ॥ वरमउडमंडियाइं जलं तमणिरयणकुंडलवराई । लक्खणसरछिन्नाई पडंति कमलाई व सिराई ॥ २७ ॥ निवडंति गयतुरंगा जोहा य रहा य विलुलियधओहा । संचुण्णियंगमंगा घोररखं चेव कुणमाणा ॥ २८ ॥ एयंतरम्मि पत्तो पुप्फविमाणट्ठिओ य दहवयणो । हंतुं समुज्जयमणो संबुक्करि घणकसाओ || २९ ॥ अesहोमुहं नियंतो पेच्छर मोहस्स कारिणी सीया । सव्वंगसुंदरंगी सुरवइमहिलं व रूवेणं ॥ ३० ॥ मालवियंगो एकमणो दहमुहो विचिंतेइ | किं मज्झ कीरइ इहं रज्जेण इमाऍ रहियस्स ।। ३१ ।। परिरचिंतिऊण एवं ताहे अवलोयणाएँ विज्जाए । जाणइ ताण दहमुहो नामं चरियं च गोत्तं च ॥ ३२ ॥ For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुएसु समं समरे जुज्झइ जो एस लक्खणो हवइ । रामो सीयाएँ समं एसो वि हु चिट्टई रण्णे ॥ ३३ ॥ तं मोत्तूण रणमुहे सीहरवं लक्खणस्स सरसरिसं। सिग्धं हरामि सीया रामस्स वि वंचणं काउं ॥ ३४ ॥ मारिहिइ दो वि एए अवस्स खरदूसणो बलसमग्गो । परिचिंतिऊण एवं सीहरवं कुणइ दहवयणो ॥ ३५ ॥ सुणिऊण सीहनायं लक्खणफुडवियडभासियं रामो। जाओ समाउलमणो अप्फालइ धणुवरं ताहे ॥ ३६ ।। अच्छसु ताव खणेकं सुंदरि एत्थं जडाउकयरक्खा । लच्छीहरस्स पासं जाव य गंतुं नियत्तेमि ॥ ३७ ॥ भणिऊण एव पउमो वारिज्जंतो वि पावसउणेसु । वेगेण रणमुहं सो पविसइ भडकमुक्कबुक्कारं ॥ ३८ ॥ एत्थंतरम्मि सहसा अवयरिऊणं नहाओ दहवयणो । हक्खुवइ जणयतणया भुयासु नलिणि व्व मत्तगओ ॥३९॥ दह्ण हरिज्जंती सामियघरिणी जडाउणो रुट्रो।' नद्दणंगलेसु पहरइ दसाणणं विउलवच्छयले ।। ४०॥ घारण तेण रुट्ठो दहवयणो पक्खिणं अमरिसेणं । करपहरचुणियंगं पाडेइ लहुं धरणिवढे ॥ ४१ ।। जाव य मुच्छाविहलो पक्खी न उवेइ तत्थ पडिबोहं । ताव य पुप्फविमाणे सीया आणेइ दहवयणो ॥ ४२ ॥ For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ३२ ... सा तत्थ विमाणस्था हीरंतं जाणिऊण अप्पाणं । घणसोगवसीभूया कुणइ पलावं जणयधूया ॥ ४३ ।। -विमलसूरिकए पउमचरिए चउत्तालीसं पव्वं । -पउमचरिय ४४. ३. चत्तारि पुत्ता। इह आसेि कत्थ वि पुरे निवमंतीसेट्ठिसत्थवाहाण । पुत्ता पवित्तचित्ता चत्तारि कलाकलावविऊ ॥ १ ॥ अन्नोन्नदढप्पणया पत्ता तरुणत्तणं जणमणुण्णं । खणमेत्तं पि न विरहं सहति तत्तिं चिय वहति ॥ २॥ पभणति अन्नया ते परोप्परं एकमाणसा होउं । किं सो वि नरो गणणं लहेइ जणमज्झयारम्मि ॥ ३ ॥ जेण न अप्पा देसंतरम्मि गंतूण तोलिओ होइ । को मे कज्जारूढस्स अस्थि सामथसंजोगो ॥ ४ ॥ नियसामत्थपरिक्खाहेउं चलिया पभायसमयम्मि । नियतणुमेत्तसहाया एगं देसंतरं सव्वे ॥ ५ ॥ पत्ता दिणद्धसमए एगम्मि पुरे अणायकुलसीला । ओइण्णा कत्थइ देवभवणट्ठाणे अइपहाणे ॥ ६ ॥ कह अज्ज भोयणं होहि त्ति भणिराण सत्थवाहसुओ। अज्ज मए भो भोयणमुप्पाइय देयमिइ भणइ ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ३३ ... ठावित्तु तिणि वि तर्हि ठाणे नगरंतरं अहेगागी । पत्तो पुराणवणियस्स आवणे समुवइट्ठो य ॥ ८॥ . तम्मि दिणे किल कस्सइ देवस्स महूसवो अह पयट्टो । लग्गो धूवविले वणवासाईणं विणिमओ य ॥ ९ ॥ जाहे सो पुडियाणं बंधं काउं न पारए वणिओ। ताहे सत्थाहसुओ साहेज्ज काउमाढत्तो ॥ १० ॥ पत्ते भोयणकाले भणिओ वणिएण पाहुणो होहि । पडिभणियं तेण कहं एगागी होमि जं मज्झ ॥ ११ ॥ अन्ने तिण्णि वयंसा संति बहिं तो भणाइ वाणियओ। आकारेज्जंतु लहुं ते वि य ते निविसेसा मे ॥ १२ ॥ दिण्णं तेर्सि भोयणमइगउरवसारमायरं काउं। लग्गं च पंचरूवगमेसि किल भोयणवयम्मि ।। १३ ।। बीयदिणे सेट्रिसुओ भोयणदाणे पइण्णमह काउं। निज्जाओ सोहग्गियजणेसु सिररयणसारिच्छो ॥ १४ ॥ पत्तो गणियावाडगमज्झट्टियपवरदेवकुलमेगं । उवविट्ठो तत्थ तया पेच्छणगखणो महं आसि ॥ १५ ॥ एगाए गणियाए धूया नवजोवणुब्भडा पुरिसं। कं पि न इच्छइ रमिउं नियसुभगत्तणमउम्मत्ता ॥ १६ ॥ सा तं दटुं अक्खित्तमाणसा पेच्छिउं समाढत्ता। सकडक्खखेवमइनिद्धमुद्धदिट्ठी पुणो पुण वि ॥ १७ ॥ मुणिओ एस वइयरो गणियाए तो सतोसचित्ता सा। आमंतिय नियगेहं नेइ पणामइ य सा धूयं ॥ १८ ॥ For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ...३४ ... विहिओ चउण्ह वि तओ भोयणतंबोलवत्थमाईओ। रूवगसयमोल्लो ऽ किवणभावकलियाइ उवयारो ॥ १९ ॥ तइयदिणेऽमञ्चसुओ बुद्धिपहाणो गओ निवघरम्मि । जत्थ विवाया वटंति बहुविहा भूरिकाला य ॥ २० ॥ तत्थ य दो महिलाओ एगं पुत्तं उवट्ठिया घेत्तुं । भाणिओ ताहिं अमञ्चो भो सामिय सुणसु विण्णत्तिं ॥२१॥ एत्थागयाणमम्हं दूरा देसंतराउ पइमरणं । संजायं दविणमिमं पुत्तो य इमो समत्थि त्ति ॥ २२ ॥ ता जीइ एस पुत्तो दविणं पि हु तीइ निच्छयं होइ । लग्गो य बहू कालो अम्हे तुम्हं सरंतीणं ॥ २३ ॥ ता जह अज्ज विवाओ एसो परिछिज्जई तहा कुणसु । पुत्तं धणं च दाऊण भासियं तो अमच्चेण ॥ २४ ॥ अव्वो एस अउयो कहँ छिजिस्सइ विवाओ त्ति । इय भणिरम्मि अमच्चे भणियमहामञ्चपुत्तेण ।। २५ ॥ जइ तुम्हाणमणुण्णा विवायमेयं अहं खु छिंदामि । अणुमन्निएण तेणं भणिया महिलाउ ता दो वि ॥ २६॥ एत्थमुट्ठवह धणं पुत्तं च तओ कए ताहि । उवणीयं करवत्तं धणस्स भागा य दो वि कया ।। २७ ॥ पुत्तस्स नाभिदेसे करवत्तं जा दुभागकरणाय । आरोवियं न अन्नह छिज्जइ एसो विवाओ त्ति ॥ २८ ॥ ता सुयजणणी निकित्तिमेण नेहेण लंधिया भणइ । दिज्जउ पुत्तो वित्तं इमाए मा होउ सुयमरणं ।। २९ ।। For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ३५ ... नायममच्चसुएणं जह एस सुओ इमाइ न इमाए । निग्धाडिया तओ सा पुत्तो य धणं च इयराए ॥ ३० ॥ एत्तो नीओ नियमंदिरम्मि तो तीइ सो अमञ्चसुओ। दीणाराण सहस्सं कयण्णुयत्तेण से दिण्णं ।। ३१ ।। पत्ते चउत्थदिवसे रायसुओ निग्गओ नयरमज्झे । भणियं च संति जइ मज्झ रज्जसंपत्तिषुण्णाई ॥ ३२ ॥ तो उग्यहंतु बाढं अह तप्पुण्णोदएण तत्थ खणे । तप्पुरराया अनिमित्तमेव जाओ मरणप्लरणो ।। ३३ ॥ अप्पुत्तो य पउत्ता गवेसगा रज्जजोग्गपुरिसस्स । नेमित्तिओवट्ठो ठविओ सो तस्ल रज्जम्मि ॥ ३४॥ चत्तारि वि तो मिलिया पमति परोप्परं पहिट्ठमणा । सामत्थयेत्थ कित्तियमम्हाणं तो भणंतेवं ॥ ३५ ॥ दक्खत्तणयं पुरिसस्स पंचगं सइयमाहु सुंदेरं । बुद्धी सहस्समुल्ला सयसाहस्लाई पुण्णाई ।। ३६ ।। सत्याहसुओ दक्खत्तणेण सेट्ठीसुओ य रूवेण । युद्धीइ अमञ्चसुओ जीवइ पुण्णेहिं रायसुओ ॥ ३७ ॥ -~~~-उपदेशपद, मुनिचन्द्रवृत्ति (बडोदा १९२३), पृ. ६५-६६. - - For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ३६ ... ४. सिलामेह-विवाहो। अस्थि तिसमुद्दपुहईविक्खायजसो अखंडियपयावो । नामेण सिलामहो सिंहलदीवाहिवनरिंदो ॥ १ ॥ सो एकम्मि सुदियहे पारद्धिविनिग्गओ महारणे । रमिऊण चिरं रण्णाउ पडिनियत्तो पुराहुत्तं ॥२॥ तो तत्थ एक पाइक्कतुरयगयसाहणेण संचलिओ। सहस त्ति वियडदाढो पुरओ कोलो समुच्छलिओ ॥ ३ ॥ तो एकहयसहाओ तस्स वराहस्स मग्गसंलग्गो । नरनाहो ताव गओ जा तरुविडवाउलं रणं ॥ ४॥ ता तत्थ कुररकारंडचककलहसकंकसंकिण्णं । भमरभरोणयपंकयरयरंजियपोच्चपेरंतं ॥ ५॥ एवविहं सो भयवइ कमलसरं राइणो नियंतस्स । सहस त्ति संपइट्ठो अस्थाहजलं महाकोलो ॥ ६॥ ता गंभीरसरोवरपवेसविसमं गए वराहम्मि । सच्छरिओ स विलक्खो मुहुत्तमेत्तं ठिओ राया ॥७॥ तो परिसुढियतुरंगो सो सहसा विम्हयावाहियहियो । आसन्नमसोयवणं सिसिरच्छायं समल्लीणो ॥ ८॥ ता तत्थ उभयकरगहियकुसुममाला मणोहरावयवा । एकसरियाइ पहुणो पुरओ परिसंठिया बाला ॥ ९ ॥ राएण तओ भणिया कासि तुमं एरिसे महारणे । सच्छंदा वरमालं अप्पसि मह केण कज्जण ॥१०॥ For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ... ३७ .. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ु भणियं च तीऍ नरवई किं इमिणा पुच्छिएण तुह ताव । परिणेसु मं निसंको जाणिहिसि गएहि दियहेहिं ॥। ११ ॥ "तं तह सोऊण नराहिवेण सा बालिया पुणो भणिया । सुंदरि नराहिवाणं एसो मग्गो च्चिय न होइ ||१२|| अपरिग्गहा कुमारी अमुणियगोत्तक्कमा अट्ठसुया । कह परिणीयासे बाले कहसु तुमं चेय मह एयं ||१३|| भणियं च तीऍ नरवइ एसो च्चिय सुपुरिसाण सद्धम्मो । ता साहेमि निसामेसु कुलहरं जं म्ह एत्ताहे ||१४|| अस्थि कणयायलुच्छंगसंगया तियसलोयविक्खाया । सुलसा नामेण पुरी अचंतमणोहरा रम्मा || १५|| तत्थ विज्जाहरिंदो हंसो नामेण तियसविक्खाओ । तस्सम्हे हि नराहिव दो च्चिय धूयाओं जायाओ || ११ || एक्काऍ वसंतसिरी मज्झ महल्लाऍ नाम नरनाह । वाहिता सरयसिरी अहं पि नियगुरुयणेण तर्हि ||१७|| एवं णे दो वि पहायसमयसंगीययप्पसंगेण । देवीहराण पुरओ केलासगिरिं पवन्नाओ || १८॥ तत्थम्हेहि नराहिव हरिसवसुप्फुल्ललोयणो दिट्ठो । गोरीहराण पुरओ पणच्चमाणो गणाहिवई ||१९|| अह सो मए गणेसो चिरपरिचयविम्हयाएँ सामि तर्हि । उवहसओ तेणाहं पक्खित्ता मच्चलोयम्मि ||२०|| एसो मह तेणं चिय सूयरवेसो दयालुणा दिण्णो । नियदूओ जेण तुमं अणुग्गहत्थं म्ह उवणीओ ।। २१ ।। For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ३८ ... ता तेणं चिय दिण्णो तं सि वरो भयवया गणेसेण । परिणेसु में नराहिव उहयाण वि उहयलोयसुहं ॥२२॥ एवं सोऊण नराहिवेण परिओसवियसियमुहेण । तकालोइयविहिणा परिणीया तेण सा तत्थ ॥२३॥ -लीलावई (बंबई १९४९), गा. ७८८-८१०. ५. पाइय-भासा। अमियं पाइयकव्वं पढिउं सोउं च जे न याणंति । कामस्स तत्ततंतिं कुणंति ते कह न लज्जति ।। -गाहाकोसो १-२. नवमत्थदसणं संनिवेससिसिराओ बंधरिद्धीओ। अविरलमिणमो आभुवणबंधमिह नवर पययम्मि ।। सयलाओ इमं वाया विसंति एत्तो य नेति वायाओ। एंति समुदं चिय नेति सायराओ चिय जलाई। हरिसविसेसो वियसावओ य मउलावओ य अच्छीणं । इह बहिहुत्तो अंतोमुहो य हिययस्स विप्फुरइ ।। For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उम्मिल्लइ लायण्णं पययच्छायाएँ सक्कयवयाणं । सक्कयसकारुकरिसणेण पययस्स वि पहावो । -गउडवहो ९२-९४, ६५. फरुसो सकयवंधो पाइयबंधो वि होइ सुउमारो । पुरिसमहिलाण जेत्तियमिहंतरं तेत्तियामिमाणं ।। -कप्पूरमंजरी १-७. गूढत्थदेसिरहियं सुललियवण्णेहि गंथियं रम्मं । पाइयकव्वं लोए कस्स न हिययं सुहावे ॥ -नाणपंचमीकहा १-४. पाइयकन्वुल्लावे पडिवयणं सक्कएण जो देइ । सो कुसुमसत्थरं पत्थरेणं अबुहो विणासेइ ।। -~-अण्णायकविणो. देसियसदपलोडं महुरक्खरछंदसंठियं ललियं । फुडवियडपायडत्थं पाइयकचं पढेयव्वं ।। पाइयकन्यम्मि रसो जो जायइ तह व छेयभणिएहिं । उययस्स व वासियसीयलस्स तित्ति न वच्चामो ॥ ललिए महुरक्खरए जुबईमणवलहे ससिंगारे । संते पाइयकन्वे को सकइ सकयं पढिउं ॥ For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ...४७ ... पाइयकबस्स नमो पाइयकवं च निम्मियं जेण । ताणं चिय पणमामो पढिऊण य जे वियाणति ।। -वज्जालग्गं. २८, २१, २९, ३१ ६. सुभासियाई। सीलं वरं कुलाओ दालिदं भव्वयं च रोगाओ। विज्जा रज्जाउ वरं खमा वरं सुछ वि तवाओ ।। ८५ ।। सीलं वरं कुलाओ कुलेण किं होइ विगयसीलेण । कमलाइ कद्दमे संभवंति न दु होति मलिणाई ॥ ८६ ।। छणवंचणेण वरिसो नासइ दिवसो कुभोयणे भुत्ते। कुकलत्तेण य जम्मो नासइ धम्मो अधम्मेण ।। ८९ ॥ साहसमवलंबंतो पावइ हियइच्छियं न संदेहो । जेणुत्तमंगमेत्तेण राहुणा कवलिओ चंदो ।। १०७ ।। फलसंपत्तीऍ समोणयाइ तुंगाइ फलविपत्तीए । हिययाइ सुपुरिसाणं महातरूणं व सिहराइं ॥ ११४ ॥ तिणतूलं पि हु लहुयं दीणं दइवेण निम्मियं भुवणे । वाएण किं न नीयं अप्पाणं पत्थणभएण ॥ १३५ ।। किसणिज्जति लयंता उदहिजलं जलहरा पयत्तेण | धवलीहोति हु देता देतलयंतंतरं पेच्छ ।। १३७ ।। For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दारिद्दय तुज्झ नमो जस्स पसाएण एरिसी रिद्धी । पेच्छामि सयललोए ते मह लोया न पेच्छति ।। १३९ ॥ जे जे गुणिणो जे जे वि माणिणो जे वियडसंमाणा । दालिद्द रे वियक्खण ताण तुमं साणुराओ सि ।। १४० ॥ संकुयइ संकुयंते वियसइ वियसंतयम्मि सूरम्मि। सिसिरे रोरकुटुंबं पंकयलीलं समुन्वहइ ।। १४६ ।। फणसेण समं महिमंडलम्मि का तरुवराण समसीसी । करिकुंभसच्छहं मग्गणाण जो देइ फलनिवहं ।। १५६ ॥ वरिसिहिसि तुमं जलहर भरिहिसि भुवणंतराइ नीसेसं । तण्हासुसियसरीरे मुयम्मि वप्पीहयकुटुंबे ॥ १५७ ॥ सव्वो छुहिओ सोहइ मढदेउलमंदिरं च चञ्चरयं । नरणाह मह कुटुंबं छुहछुहियं दुब्बलं होइ ॥ ११ ॥ एक दंतम्मि पयं बीयं कुंभम्मि तइयमलहंतो । बलिबंधविलसियं महुमहस्स आलंबए सुहडो ॥ १७२।। सम्भावे पहुहियए जीए सग्गे जसे जए सयले । ठविए रणम्मि सीसे कयकज्जो नच्चिओ सुहडो ॥१७५॥ मा झिज्जसु अणुदियहं करिणिविओएण मूढकरिणाह । सोक्खं न होइ कस्स वि निरंतरं एत्थ संसारे ॥१९३॥ तह नीससियं जूहाहिवेण चिरविलसियं भरतेण । करगहियं तिणकवलं हरियं जह झत्ति पज्जलियं ॥१९॥ कि करइ कुरंगी बहुसुएहि ववसायमाणरहिएहिं । एकेण वि गयघडदारणेण सिंही सुहं सुवइ ॥२०॥ For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ... ४२ . ... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक्केण विसरउ सरेण वाह किं बीयएण गहिएण । एक पि वसइ जीयं हयास दोहिं पिय सरीरे ॥ २१७ || कलियामिसेण उम्मेवि अंगुलिं मालईऍ महमहियं |. धरहु जुधरणसमत्थो मह एंतो महुयरजुवाणो ||२३४ || कत्थ वि दलं न गंधं कत्थ वि गंधो न पउरमयरंदो । एक्ककुसुमम्मि महुयर बे तिण्णि गुणा न लब्भंति || २३७|| वसिऊण सग्गलोए गंधं गहिऊण पारिजायस्स । रे भसल किं न लज्जसि चुंबतो इयरकुसुमाई || २५३ || हंसो मसाणमज्झे काओ जइ वसई पंकयवणम्मि | तह विह हंसो हंसो काओ काओ च्चिय वराओ || २५८ || माणस सररहियाणं जह न सुहं होइ रायहंसाणं । तह तस्स वि तेहि विणा तीरुच्छंगा न सोहंति || २६३ || सव्वायरेण रक्खह तं पुरिसं जत्थ जयसिरी वसइ । अत्थमिऍ चंदबिंबे ताराहि न कीरए जोण्हा || २६४|| चंदस्स खओ न हु तारयाण रिद्धी वि तस्स न हु ताणं । गरुयाण चडणपडणं इयरा उण निच्चपडियाय ॥ २६७ ॥ नयरं न होइ अट्टालएहि पायारतुंगसिहरेहिं | गाविह यरं जत्थ छइल्लो जणो वसई || २७० || अन्नं धरति हियए अन्नं वायाऍ कीरए अन्नं । छेयाण पत्थिवाण य खलाण मग्गो च्चिय अउव्व || २७४ || करिणो हरिनहरवियारियस्स दीसंति मोत्तिया कुंभे । किविणाण नवरि मरणे पयड च्चिय होंति भंडारा ।। १८१ ॥ For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ४३ ... सुसइ व पंकं न वहंति निज्झरा बरहिणो न नञ्चति । तणुयायंति नईओ अत्थामिए पाउसनरिंदे ।। ६५३ ॥ वरिससयं नरयाऊ तस्स वि अद्धण होति राईओ। अद्धस्स य अद्धयरं, हरइ जरा बालभावेण ॥ ६६६ ।। जं चिय विहिणा लिहियं तं चिय परिणमइ सयललोयस्ल । इय जाणिऊण धीरा विहुरे वि न कायरा होति ।। ६७४॥ वरतरुणिनयणपरिसंठियस्स जह कज्जलस्स माहप्पं । दीवसिहरे वि न तहा ठाणेसु गुणा विसटुंति ।। ६८० ॥ जइ नत्थि गुणा ता किं कुलेण गुणिणो कुलेण न हु कजं । कुलमकलंकं गुणवज्जियाण गरुयं चिय कलंकं ॥ ६८५ ।। गुणहीणा जे पुरिसा कुलेण गवं वहति ते मूढा । वंसुप्पन्नो वि धणू गुणरहिए नत्थि टंकारो॥ ६८६ ॥ पासपरिसंठियस्स वि गुणहीणे किं करेइ गुणवंतो । जायंधयस्स दीवो हत्थकओ निष्कलो च्चेव ॥ ६९१ ॥ देसे गामे नयरे रायपहे तियचउक्कमंग्गे वा। जस्स न पसरइ कित्ती धिरत्थु किं तेण जाएण ॥ ७०० ॥ एक्कम्मि कुले एक्कम्मि मंदिरे एककुक्खिसंभूया । एक्को नरसयसामी अन्नो एकस्स असमत्थो ॥ ७०४ ॥ पयडियकोसगुणड्डे तह य कुलीणे सुपत्तपरिवारे । एवंविहे वसंती कमले कमले कयत्था सि ॥ ७०८ ॥ विविहविहंगमनिवहेण मंडियं पेच्छिऊण कमलवणं । मुक्कं माणभरिएहि माणसं रायहंसेहिं ।। ७२१ ॥ For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ४४... बहुतरुवराण मज्झे चंदणविडवो भुयंगदोसेण । छिज्जइ निरावराहो साहु व्व असाहुसंगेण ॥ ७३२ ॥ किं ताल तुज्झ तुंगत्तणेण गयणद्धरुद्धमग्गेण । छुहजलणताविएहि वि उवहेप्पसि जं न पहिएहिं ॥७३६। जलणडहणेण न तहा पत्थरघसणेण खंडणे तह य । गुंजाहलसमतुलणे जं दुक्खं होइ कणयस्स ॥ ७६८ ॥ जोइक्खो गिलइ तमं तं चिय उग्गिलइ कज्जलमिसेण । अहवा सुद्धसहावा हियए कलुसं न धारेति ॥ ७७६ ॥ -वज्जालग्गं. For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only