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बहुएसु समं समरे जुज्झइ जो एस लक्खणो हवइ । रामो सीयाएँ समं एसो वि हु चिट्टई रण्णे ॥ ३३ ॥ तं मोत्तूण रणमुहे सीहरवं लक्खणस्स सरसरिसं। सिग्धं हरामि सीया रामस्स वि वंचणं काउं ॥ ३४ ॥ मारिहिइ दो वि एए अवस्स खरदूसणो बलसमग्गो । परिचिंतिऊण एवं सीहरवं कुणइ दहवयणो ॥ ३५ ॥
सुणिऊण सीहनायं लक्खणफुडवियडभासियं रामो। जाओ समाउलमणो अप्फालइ धणुवरं ताहे ॥ ३६ ।।
अच्छसु ताव खणेकं सुंदरि एत्थं जडाउकयरक्खा । लच्छीहरस्स पासं जाव य गंतुं नियत्तेमि ॥ ३७ ॥ भणिऊण एव पउमो वारिज्जंतो वि पावसउणेसु । वेगेण रणमुहं सो पविसइ भडकमुक्कबुक्कारं ॥ ३८ ॥ एत्थंतरम्मि सहसा अवयरिऊणं नहाओ दहवयणो । हक्खुवइ जणयतणया भुयासु नलिणि व्व मत्तगओ ॥३९॥ दह्ण हरिज्जंती सामियघरिणी जडाउणो रुट्रो।' नद्दणंगलेसु पहरइ दसाणणं विउलवच्छयले ।। ४०॥ घारण तेण रुट्ठो दहवयणो पक्खिणं अमरिसेणं । करपहरचुणियंगं पाडेइ लहुं धरणिवढे ॥ ४१ ।। जाव य मुच्छाविहलो पक्खी न उवेइ तत्थ पडिबोहं । ताव य पुप्फविमाणे सीया आणेइ दहवयणो ॥ ४२ ॥
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