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ठावित्तु तिणि वि तर्हि ठाणे नगरंतरं अहेगागी । पत्तो पुराणवणियस्स आवणे समुवइट्ठो य ॥ ८॥ . तम्मि दिणे किल कस्सइ देवस्स महूसवो अह पयट्टो । लग्गो धूवविले वणवासाईणं विणिमओ य ॥ ९ ॥ जाहे सो पुडियाणं बंधं काउं न पारए वणिओ। ताहे सत्थाहसुओ साहेज्ज काउमाढत्तो ॥ १० ॥ पत्ते भोयणकाले भणिओ वणिएण पाहुणो होहि । पडिभणियं तेण कहं एगागी होमि जं मज्झ ॥ ११ ॥ अन्ने तिण्णि वयंसा संति बहिं तो भणाइ वाणियओ। आकारेज्जंतु लहुं ते वि य ते निविसेसा मे ॥ १२ ॥ दिण्णं तेर्सि भोयणमइगउरवसारमायरं काउं। लग्गं च पंचरूवगमेसि किल भोयणवयम्मि ।। १३ ।।
बीयदिणे सेट्रिसुओ भोयणदाणे पइण्णमह काउं। निज्जाओ सोहग्गियजणेसु सिररयणसारिच्छो ॥ १४ ॥ पत्तो गणियावाडगमज्झट्टियपवरदेवकुलमेगं । उवविट्ठो तत्थ तया पेच्छणगखणो महं आसि ॥ १५ ॥ एगाए गणियाए धूया नवजोवणुब्भडा पुरिसं। कं पि न इच्छइ रमिउं नियसुभगत्तणमउम्मत्ता ॥ १६ ॥ सा तं दटुं अक्खित्तमाणसा पेच्छिउं समाढत्ता। सकडक्खखेवमइनिद्धमुद्धदिट्ठी पुणो पुण वि ॥ १७ ॥ मुणिओ एस वइयरो गणियाए तो सतोसचित्ता सा। आमंतिय नियगेहं नेइ पणामइ य सा धूयं ॥ १८ ॥
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