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सुसइ व पंकं न वहंति निज्झरा बरहिणो न नञ्चति । तणुयायंति नईओ अत्थामिए पाउसनरिंदे ।। ६५३ ॥ वरिससयं नरयाऊ तस्स वि अद्धण होति राईओ। अद्धस्स य अद्धयरं, हरइ जरा बालभावेण ॥ ६६६ ।। जं चिय विहिणा लिहियं तं चिय परिणमइ सयललोयस्ल । इय जाणिऊण धीरा विहुरे वि न कायरा होति ।। ६७४॥ वरतरुणिनयणपरिसंठियस्स जह कज्जलस्स माहप्पं । दीवसिहरे वि न तहा ठाणेसु गुणा विसटुंति ।। ६८० ॥ जइ नत्थि गुणा ता किं कुलेण गुणिणो कुलेण न हु कजं । कुलमकलंकं गुणवज्जियाण गरुयं चिय कलंकं ॥ ६८५ ।। गुणहीणा जे पुरिसा कुलेण गवं वहति ते मूढा । वंसुप्पन्नो वि धणू गुणरहिए नत्थि टंकारो॥ ६८६ ॥ पासपरिसंठियस्स वि गुणहीणे किं करेइ गुणवंतो । जायंधयस्स दीवो हत्थकओ निष्कलो च्चेव ॥ ६९१ ॥ देसे गामे नयरे रायपहे तियचउक्कमंग्गे वा। जस्स न पसरइ कित्ती धिरत्थु किं तेण जाएण ॥ ७०० ॥ एक्कम्मि कुले एक्कम्मि मंदिरे एककुक्खिसंभूया । एक्को नरसयसामी अन्नो एकस्स असमत्थो ॥ ७०४ ॥ पयडियकोसगुणड्डे तह य कुलीणे सुपत्तपरिवारे । एवंविहे वसंती कमले कमले कयत्था सि ॥ ७०८ ॥ विविहविहंगमनिवहेण मंडियं पेच्छिऊण कमलवणं । मुक्कं माणभरिएहि माणसं रायहंसेहिं ।। ७२१ ॥
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