Book Title: Selections in Arddhamagadhi For SSC Examinations
Author(s): Venus Book Stall
Publisher: Venus Book Stall

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दारिद्दय तुज्झ नमो जस्स पसाएण एरिसी रिद्धी । पेच्छामि सयललोए ते मह लोया न पेच्छति ।। १३९ ॥ जे जे गुणिणो जे जे वि माणिणो जे वियडसंमाणा । दालिद्द रे वियक्खण ताण तुमं साणुराओ सि ।। १४० ॥ संकुयइ संकुयंते वियसइ वियसंतयम्मि सूरम्मि। सिसिरे रोरकुटुंबं पंकयलीलं समुन्वहइ ।। १४६ ।। फणसेण समं महिमंडलम्मि का तरुवराण समसीसी । करिकुंभसच्छहं मग्गणाण जो देइ फलनिवहं ।। १५६ ॥ वरिसिहिसि तुमं जलहर भरिहिसि भुवणंतराइ नीसेसं । तण्हासुसियसरीरे मुयम्मि वप्पीहयकुटुंबे ॥ १५७ ॥ सव्वो छुहिओ सोहइ मढदेउलमंदिरं च चञ्चरयं । नरणाह मह कुटुंबं छुहछुहियं दुब्बलं होइ ॥ ११ ॥ एक दंतम्मि पयं बीयं कुंभम्मि तइयमलहंतो । बलिबंधविलसियं महुमहस्स आलंबए सुहडो ॥ १७२।। सम्भावे पहुहियए जीए सग्गे जसे जए सयले । ठविए रणम्मि सीसे कयकज्जो नच्चिओ सुहडो ॥१७५॥ मा झिज्जसु अणुदियहं करिणिविओएण मूढकरिणाह । सोक्खं न होइ कस्स वि निरंतरं एत्थ संसारे ॥१९३॥ तह नीससियं जूहाहिवेण चिरविलसियं भरतेण । करगहियं तिणकवलं हरियं जह झत्ति पज्जलियं ॥१९॥ कि करइ कुरंगी बहुसुएहि ववसायमाणरहिएहिं । एकेण वि गयघडदारणेण सिंही सुहं सुवइ ॥२०॥ For Private And Personal Use Only

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