Book Title: Sazzayamala
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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.. ॥ महालब्धिनिधानेवः श्री गौतमगुरुन्योनमः ।। ॥अथ श्रीसम्यक्त्वना सडसठ बोलनी सद्याय प्रारंन्नः॥
॥दोहा॥ सुकृतवल्लि कादंबिनी, समरी सरसति मात ॥ समकित सड सठ बोलनी, कहिशुं मधुरी वात ॥१॥ समकित दायक गुरुतगो, पचवयार न याय ॥ नव कोडाकोडे करी, करतां सर्व नपाय ॥२॥ दानादिक किरि या न दियें, समकित विण शिवशर्म । तेमाटे समकित वडूं, जाणो प्रवच न मर्म ॥ ३॥ दर्शन मोह विनाशश्री, जे निर्मल गुणगण ॥ ते निश्चय समकित कयो, तेहनां ए अहिगण ॥ ५ ॥ ढाल ॥ दे दे दरिलण आपणुं । ए देशी॥ चन सदहणा तिलिंग बे, दशविध विनय विचारो रे ॥ त्रिण शुदिपण दूषण, आठ प्रनाविक धारो रे ॥ ५ ॥ त्रुटक ॥ प्रनाविक अड पंच जूषण, पंच लक्षण जागिय ॥ षट जयण षट आगार ना वन, बबिहा मन आगिये ॥ षट वाण समकित तणा सडसम, नेद एह नदार ए ।। एहनो तत्वविचार करतां, लहीजे नवपार ए ॥६॥ ढाल ।। चहु विह सदहणा तिहां, जीवादिक परमबो रे ॥ प्रवचनमा जे जाषिया, लीजे तेहनो अन्डो रे ॥ ७॥ त्रुटक ॥ तेहनो अर्थ विचार करीयें, प्रथम सदहणा खरी ॥ बीजी सदहणा तेहना जे, जाण मुनि गुण जवहरी ॥ संवेग रंग तरंग कीले, मार्ग शुई कहे बुधा । तेहनी सेवा कीजिये जिम, पीजिये समता सुधा ॥७॥ ढाल ॥ समकेत जेणे ग्रही वमिळं, निन्हव ने अहबंदो रे ॥ पासवाने कुशीलिया, वेषविडंबक मंदा रे ॥एं॥ त्रुटक ॥ मंदा अनाणी दूर मो, त्रीजी सद्दहणा ग्रही ॥ परदर्शनीनो संग तजि ये, चोश्री सद्दहणा कही ॥ हीणातणो जे संग न तजे, तेहनो गुण नवि रहे ॥ ज्यू जलधि जलमां नब्यूं गंगा, नीर लूणपणूं लहे ॥ १० ॥ ढाल ।। कपूर होवे अति ऊजलो रे ।। ए देशी ॥त्रण लिंग समकित तणां रे, पहि लो श्रुतअनिलाष ।। जेहश्री श्रोता रस लहे रे, जेको साकर ाख रे॥ प्रा णी धरिये समकित रंग, जिम लहिये सुख अन्नंग रे॥ प्राणी ए टेक ॥ ॥११॥ तरुण सुखी स्त्री परिवख्यो रे, चतुर सुणे सुरगीत ॥ तेहश्री रागे अति घणो रे, धर्म सुण्यानी रीत रे ।। प्राणी ॥१२॥ नूख्यो अटवी
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