Book Title: Sarvsiddhantpraveshak Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय जैन एवं जैनेतर दोनों परम्पराओं में दर्शन-संग्राहक ग्रन्थों के प्रणयन की एक सुदीर्घ परम्परा रही है। जैनेतर वैदिक परम्परा में 'सर्वसिद्धान्तसंग्रह', 'सर्वदर्शनसंग्रह' 'सर्वदर्शनकौमुदी' 'प्रस्थान-भेद' आदि ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं जिनमें तत्कालीन दार्शनिक प्रवृत्तियों, सम्प्रदायों एवं उनके सिद्धान्तों का सम्यक् विवेचन हुआ है। जैन परम्परा के 'विवेक विलास', षड्दर्शन-निर्णय के अतिरिक्त आचार्य हरिभद्र कृत षड्दर्शनसमुच्चय इसी कड़ी का एक विशिष्ट ग्रन्थ है जिसमें भारतीय दर्शन के सभी प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का निष्पक्ष प्रस्तुतीकरण हुआ है। __प्रस्तुत ग्रन्थ सर्वसिद्धान्तप्रवेशक किसी जैन आचार्य द्वारा प्रणीत हरिभद्र के षड्दर्शनसमुच्चय जैसी प्रतिपादन शैली वाला एक विशिष्ट ग्रंथ है जिसमें न्याय, वैशेषिक, सांख्य, बौद्ध, जैन, मीमांसा और लोकायत दर्शन की प्रमाणों के आधार पर समीक्षा की गयी है। इसका सम्पादन मुनिप्रवर श्री जम्बूविजयजी एवं हिन्दी अनुवाद परम, पूज्य साध्वी रुचिदर्शनाश्री जी ने किया है। ___हम आभारी हैं डॉ. सागरमल जैन के जिन्होंने न केवल यह ग्रंथ प्रकाशन हेतु विद्यापीठ को दिया, अपितु इसकी विद्वतापूर्ण 'भूमिका' भी लिखी। ग्रंथ के प्रकाशन में प्रूफ रीडिंग से लेकर प्रेस तक के सभी कार्यों का सम्पादन डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय, सहनिदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ ने किया है, एतदर्थ हम उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। सुन्दर अक्षर सज्जा हेतु श्री विमल चन्द्र मिश्र तथा सत्वर मुद्रण हेतु 'वर्द्धमान मुद्रणालय' सर्वथा बधाई के पात्र हैं। १८ अप्रैल, ०८ इन्द्रभूति बरड महावीर जयन्ती संयुक्त सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 50