Book Title: Sarva Darshan Sangraha Author(s): Umashankar Sharma Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan View full book textPage 4
________________ कार्य बहुत ही व्यापक है । विभिन्न प्रकार की दार्शनिक धारायें हैं । सबों का अधिकारपूर्वक रूपान्तरण और स्पष्टीकरण साधारण श्रम का कार्य नहीं । ऐसे बीहड़ क्षेत्र में संचरण करता हुआ बौद्धिक यात्री कभी भटक जाय तो यह सहज संभव है । लेकिन इस प्रकार की भी स्थितियां क्वाचित्क ही हैं। ___ आधुनिक ढंग के पाठकों को ध्यान में अधिक रखा गया है जो सामयिक और समुचित भी है। इसीलिए संस्कृत की पारिभाषिक पदावलियों के समानान्तर अंग्रेजी में प्रचलित प्रयोग भी रख दिये गये हैं। उनकी प्रामाणिकता के लिए रूपान्तरकार स्वयम् उत्तरदायी है । आधुनिक पाठकों की रुचि और आधुनिक शैली पर भी ध्यान होने के कारण बीच-बीच में किसी-किसी दर्शन की संक्षिप्त ऐतिहासिक रूपरेखा भी प्रस्तुत कर दी गई है । परन्तु ऐसे प्रसंगों में भी कहीं-कहीं अनवधानता है। उदाहरणार्थ पृ० सं० २७५ पर शैवागमों के बीच अहिर्बुध्न्य-संहिता को लिया गया है-यह कहां तक ठीक है ? अहिर्बुध्न्य-संहिता पाञ्चरात्रागम के अन्तर्गत है। अन्तिम बात जो पुस्तक की उपादेयता के संबन्ध में कही जाने की है, वह यह कि ग्रंथ के अन्त में दार्शनिक पुस्तकों की एक बृहत् सूची संलग्न की गई है । आधुनिक शोध-छात्रों की दृष्टि से ऐसी सूचियों का बड़ा महत्व होता है ! सूची एक सामान्य रूप में प्रस्तुत कर दी गई हो, ऐसी बात नहीं है। उसमें पुस्तक और उसके रचयिता का नाम तो है ही, महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय बात यह है कि उसमें जो पुस्तक जिस दर्शन की है, उस दर्शन का भी सामने उल्लेख है । इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात है कि आज का शोध-छात्र मूल ग्रन्थकार का प्रामाणिक काल-ज्ञान चाहता है । रूपान्तरकार ने प्रत्येक कृति के सामने उस कृति का रचना-काल भी दिया है । भारतीय मनीषियों की अन्तर्मुखी प्रवृत्ति तथा अपना परिचय देने की ओर से निरन्तर तटस्थता दिखाने का भाव उनके इतिवृत्त के ज्ञान में सदा बाधक रहा है। आधुनिक गवेषकों ने नये सिरे से इस पक्ष पर प्रकाश डाला है। उन सबों में सभी ग्रन्थकारों को लेकर सर्वत्र मतैक्य नहीं है। रूपान्तरकार ने यदि यह बात ध्यान में रखकर किसी प्रामाणिक इतिहासकार की सहायता काल-निर्धारण में ली है तो तदर्थ वे प्रशंसा के पात्र हैं।Page Navigation
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