Book Title: Sarth Dashvaikalik Sutram
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 6
________________ मूल, उनका शब्दार्थ और भावार्थ सुगम हिन्दी भाषा में दर्ज किया है; जो कि संस्कृत - टीका और टब्बा आदि के आधार से इतना सरल बना दिया गया है कि अभ्यास करनेवाले साधु साध्वियों को इनका रहस्य समझ लेने में तनिक भी संदिग्धता नहीं रह सकती। यह सूत्र साध्वाचार मूलक है, अतएव साधु साध्वियों को इसका अभ्यास कर लेना आवश्यक है। क्योंकि- समस्त गच्छों की मर्यादा के अनुसार इस ग्रन्थ का अभ्यास किये बिना साधु साध्वी बड़ी दीक्षा के योग्य नहीं समझे जाते । अस्तु, यदि इस अनुवाद को साधु साध्वियों ने अपनाया तो आगे के अध्ययनों का भी अनुवाद इसी प्रकार तैयार करके यथावकाश प्रकाशित करने का उद्योग किया जायगा। अन्त में भूल चूक का मिच्छामि दुक्कडं देकर विराम लिया जाता है । इति श वसंतपंचमी ( आचार्यदेव श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ) राजगढ (मालवा) ****** "विशेष" पूज्यपाद आचार्य देव ं श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की 'भावनानुसार दूसरे छह अध्ययन एवं दो चूलिका के शब्दार्थ, भावार्थ तैयार कर मुनिभगवंतों के करकमलों में समर्पित किया है। पं. श्री भद्रंकर .. विजयजी कृत संस्कृत छाया एवं श्री हेमप्रभसूरिजी द्वारा संपादित एवं मुनि नथमलजी द्वारा संपादित श्री दशवैकालिक सूत्र के शब्दार्थ भावार्थ का सहयोग लिया है अतः उनका हार्दिक आभार मानता हूँ। जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ लिखा गया हो तो मिच्छा मि दुक्कडं । श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 3 - जयानंद

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