Book Title: Sarth Dashvaikalik Sutram
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 5
________________ पहले अध्ययन में - धर्म प्रशंसा और माधुकरी वृत्ति का स्वरूप | दूसरे अध्ययन में - संयम में अधृति न रखने का और रहनेमि के दृष्टान्त से वान्तभोगों को छोड़ने का उपदेश । तीसरे अध्ययन में - अनाचारों को न आचरने का उपदेश । चौथे अध्ययन में - षड्जीवनिकाय की जयणा, रात्रिभोजनविरमण सहित पंचमहाव्रत पालन करने का और जीवदया से उत्तरोत्तर फल मिलने का उपदेश । पांचवें अध्ययन में - गोचरी जाने की विधि, भिक्षाग्रहण में कल्पा कल्प विभाग और सदोष आहार आदि के लेने का निषेध । छट्टे अध्ययन में - राजा, प्रधान, कोतवाल, ब्राह्मण, क्षत्रिय, सेट, साहुकार आदि के पूछने पर साध्वाचार की प्ररूपणा, अठारह स्थानों के सेवन से साधुत्व की भ्रष्टता और साध्वाचार पालन का फल। सातवें अध्ययन में - सावद्य निर्वद्य भाषा का स्वरूप सावद्य भाषाओं के छोड़ने का उपदेश, निर्वद्य भाषा के आचरण का फल और वाक् शुद्धि रखने की आवश्यकता। आठवें अध्ययन में - साधुओं का आचार विचार, षट्कायिक जीव्रों की रक्षा धर्म का उपाय, कषायों को जीतने का तरीका, गुरु की आशात्ना न करने का उपदेश, निर्वद्य - भाषण और साध्वाचार पालन का फल | नौंवें अध्ययन में - अबहुश्रुत (न्यूनगुणवाले) आचार्य की भी आशातना न करने का उपदेश, और विनयसमाधि, श्रुतसमाधि स्थानों का स्वरूप। दर्शवें अध्ययन में - तथारूप साधु का स्वरूप और भिक्षुभाव का फल दिखलाया गया है। इनके अलावा दशवैकालिक सूत्र में दो चूलिकाएँ भी हैं; जो कि भगवान् श्रीसीमन्धर स्वामी से उपलब्ध हुई हैं ऐसा टीकाकार और नियुक्तिकारों का कथन है। पहली चूलिका में - आत्मा को संयम में स्थिर रखने के लिये अठारह स्थानों से संसार की विचित्रता का वर्णन और साधु धर्म की उत्तमता का वर्णन किया गया. है और दूसरी चूलिका में - आसक्ति रहितं विहार का स्वरूप, अनियतवास रूप चर्या के गुण तथा साधुओं का उपदेश, विहार, काल, आदि दिखलाया गया है। इस सूत्र के ऊपर श्री हरिभद्राचार्यकृत - शिष्यबोधिनी, नामक बड़ी टीका M व अवचूरी, समयसुन्दरकृत - शब्दार्थवृत्ति नामक दीपिका आदि संस्कृत टीकाएँ भी बनी हुई हैं। संस्कृत टीकाओं के सिवाय अनेक टब्बा और भाषान्तर भी उपलब्ध हैं परंतु वे सभी प्राचीन अर्वाचीन गुजराती भाषा में हैं; इसलिए वे गुजराती भाषा जाननेवाले साधु साध्वियों के लिए ही उपयोगी हो सकते हैं, दूसरों के लिये नहीं । इस त्रुटी को पूर्ण करने के लिए अब तक दशवैकालिक सूत्र का ऐसा कोई हिन्दी अनुवाद किसी की तरफ से प्रकाशित नहीं हुआ, जो सर्व-साधारण को समझने में और अध्ययन करने में सुगम, सरस तथा उपयुक्त हो । प्रस्तुत अध्ययनचतुष्ट्य नामक ) पुस्तक में श्री दशवैकालिक सूत्र के आदिम 'दुमपुफिया १, सामणपुब्विया २, खुल्लयायारकहा ३, छज्जीवणिया ४, इन चार अध्ययनों का श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 2

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