________________
ग्यारहवां परिशिष्ट
१५७ भेज दूंगा। पं० जियालाल जी से आप मिले या नहीं। मिल लें और उत्तर दें। शेष मिलने पर।
[भ०दत्त] (२५) अथ
नई देहली
रात्रि ५.२-४६ बहद्देवता २६५॥ तथा ८६० में शाकटायन को आचार्य लिखा है । वह संभवतः ऋषि नहीं था। विचार की कोई बात सूझे, तो शीर्षक दे दें।
शौनक को भी प्राचार्य कहा है [बृ० दे०] २।१३६॥ यास्क भी १० आचार्य [बृ० दे०] १११३२। कदचित् दोनों पढ़ाने वाले थे। यद् यत्स्याच्छान्दसं मन्त्रे तत्तत्कुर्यात्तु लौकिकम् ॥
बृहदेवता २।१०१॥ शौनक के काल में छान्दस और लोक का कितना भेद था। विचार कर कुछ लिखें। यह भेद कब से चला था।
बृहद्देवता ४१११३॥तस्मै ब्राह्मीं तु सौरों वा नाम्ना वाचं ससर्परीम् ।
यहां ब्राह्मी और सौरी दो वाक्-इन का भेद । क्या सौरी वही है जिसे नाट्य शास्त्र की टीका में देवों की वेदशब्दबहुला लिखा है।
पाणिनो बभ्रवश्चैव ध्यानजप्यास्तथैव च । पार्थिवा देवराताश्च शालङ्कायनसौश्रवाः ॥ हरिवंश ११३२१५७॥ शाकटायन के २३ उपसर्ग, बृहद्देवता २१६४,६५ अवश्य दे दें।
भगवद्दत्त (२६)
नई देहली रात्रि 8 बजे
६-२-४६ धन्यवाद । कार्ड आज मिला। भाषा सम्बन्धी बातें सब सुरक्षित रखें।
२०