Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

View full book text
Previous | Next

Page 478
________________ व्याकरण के दार्शनिक ग्रन्थकार ४५३ परिचय-भरतमिश्र ने अपना कुछ भी परिचय अपने ग्रन्थ में नहीं दिया। न अन्य स्थान से इसके देश-काल आदि पर कोई प्रकाश पड़ता है। . . . ...... ___पं० गणपति शर्मा ने जिस मूल पुस्तक पर से इस ग्रन्थ को छापा था, वह अनुमानतः दो तीन सौ वर्ष प्राचीन है, ऐसा उन्होंने भूमिका ५ पृष्ठ ३ पर लिखा है। ___ 'स्फोटसिद्धि' का एक हस्तलेख मद्रास राजकीय हस्तलेख संग्रह के सूचीपत्र भाग ५, खण्ड ११३ पृष्ठ ६४२६ संख्या ४३७६८ पर निर्दिष्ट है। ट्रिवेण्ड्रम् से सन् १९१७ में प्रकाशित अज्ञातकर्तृक 'स्फोटसिद्धि- १० न्यायविचार के प्रारम्भ में मण्डन के पश्चात् भरत का निर्देश किया है 'प्रणिपत्य गणाधीशं गिरा देवीं गरूनपि। मण्डनं भरतं चापि मुनित्रयमनुहरिम् ॥' : ग्रन्थ परिचय-भरतमिश्र की स्फोटसिद्धि में निम्न तीन परिच्छेद १ प्रत्यक्ष परिच्छेद । २-अर्थ परिच्छेद । ३-पागम परिच्छेद । इस ग्रन्थ में मूल कारिका भाग और उसकी व्याख्या दोनों ही भरतमिश्रप्रणीत हैं। विशिष्ट स्थल- इस स्फोटसिद्धि के निम्न स्थल विशेष ध्यान देने योग्य है १-भगवदौदुम्बरायणाद्युपदिष्टाखण्डभावमपि व्यञ्जकारोपितनान्तरीयकभेदक्रमविच्छेदादिनिविष्टः परैरेकाकारनिर्भासम् अन्यथा सिद्धिकृत्यार्थधीहेतुतां चान्यत्र संचार्य भगवदौदुम्बरायणादीनपि भगवदुपवर्षादिभिनिमायापलपितम् । पृष्ठ १।। __ अर्थात्-भगवान् औदुम्बरायण आदि द्वारा उपदिष्ट एक अखण्ड- २५ भाव से प्रतीयमान स्फोट को व्यञ्जक (ध्वनि) में आरोपित आवश्यक भेद ऋम और विच्छेदादि में निविष्टबुद्धि होकर अन्यों ने अन्य प्रकार से सिद्धि करके अर्थज्ञान कारण को अन्यत्र संचारित करके भगवान् औदुम्बरायणादि मुनियों की भी प्रतिद्वन्द्वता में भगवान् उपवर्ष आदि को उपस्थित करके अपलाप किया है। . ३०

Loading...

Page Navigation
1 ... 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522