Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 509
________________ ४८४ - संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास इन दोनों उद्धरणों में प्रथम का यद्यपि भट्टिकाव्ये पाठान्तर मिलता हैं, तथापि द्वितीय उद्धरण में पाठान्तर न होने से स्पष्ट है कि श्वेतवनवासी भट्टिकाव्य को भर्तृहरि को कृति मानता है। ८-हरिनामामृत व्याकरण के १४६३ वें सूत्र की वृत्ति में ५ लिखा है फलेग्रहिन् हंसि वनस्पतीन् इति भर्तृहरिविप्रः।' . यह पाठ भट्टिकाव्य २।३ में मिलता है । नाम का निर्णय-हमारे विचार में दोनों नामों में मूलतः कोई भेद नहीं है । भट्टि यह नाम भर्तृहरि के एकदेश भर्तृ का ही प्राकृत १० रूप है। अन्य भर्तृहरि नाम के लेखकों से व्यावृत्ति के लिये इस भर्तृहरि के लिये ग्रन्थकारों ने भर्तृ शब्द के प्राकृत भट्टिरूप का व्यवहार किया है। अनेक भर्तृहरि-महाकवि कालिदास के समान भर्तृहरि नाम के भी कई विद्वान हो चके हैं। एक प्रधान वैयाकरण वाक्यपदीय का १५ तथा महाभाष्य-दीपिका का रचयिता भर्तृहरि है । दूसरा-भट्टि काव्य का कर्ता है। तीसरा भागवृत्ति का लेखक है। इन तीनों के नामसादृश्य से उत्पन्न होनेवाले भ्रम को दूर करने के लिये अर्वाचीन वैयाकरणों ने अत्यधिक सावधानता बरती है। वाक्यपदीयकार प्राद्य भर्तृहरि के उद्धरण ग्रन्थकारों ने सर्वत्र हरि अथवा भर्तृहरि के नाम २० से उद्धत किये हैं। भट्टिकाव्य के उद्धरण प्रायः सर्वत्र भट्टि नाम से निर्दिष्ट है (केवल श्वेतनवासी ने भर्तृ काव्य का व्यवहार किया है)। भागवत्ति, के उद्धरण सर्वत्र भागवृत्ति भागवृत्तिकृत अथवा भागवृत्तिकार के नाम से उल्लिखित किये गये हैं। इस प्रकार तीनों भर्तृहरि के उद्धृत उद्धरणों में ग्रन्थकारों ने कहीं पर भी साङ्कर्य २५ नहीं होने दिया। तीनों भर्तृहरि के विषय में हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में पृष्ठ ३९५-४०२ (च० संस्क०) तक विस्तार से लिख चुके हैं, अतः यहां विस्तार नहीं करते। परिचय-प्रसिद्ध जयमङ्गला टीका में महाकवि भट्टि के पिता ३० का नाम श्रीस्वामी लिखा है, परन्तु भट्टिचन्द्रिका के रचयिता विद्या

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