Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 513
________________ ४८८ १० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास - काल-मल्लिनाथ के काल के विषय में हमने इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में पृष्ठ ५६८-५६६ (च० सं०) पर लिखा है। (३) जयमङ्गल भटिटकाव्य पर जयमङ्गल नामक वैयाकरण ने दीपिका अथवा ५ जयमङ्गला नाम्नी व्याख्या लिखी है । इसका हस्तलेख इण्डिया ग्राफिस लन्दन के संग्रह में है। द्र० सूचीपत्र, भाग १, खण्ड २, संख्या १२१ । इस वृत्ति के प्रारम्भ में लिखा है - "तनुते जयमङ्गलः कृती निजनामाभिधभट्टिटिप्पणीम् ।' । अन्त में पाठ है - 'इति भर्तृहरिकाव्यदीपिकायां जयमङ्गलाख्यायां ।' यह जयमङ्गल पूर्वनिर्दिष्ट जटीश्वर जयदेव जयमङ्गल तीन नामवाले व्यक्ति से भिन्न है। .. (४) अज्ञातनामा १५ भट्टिकाव्य पर किसी अज्ञातनामा विद्वान् ने एक व्याख्या लिखी है। इसका नाम व्याख्यासार है। मद्रास राजकीय हस्तलेख संग्रह के सूचोपत्र में यह पुस्तक भट्टिकाव्यस्थूलव्याख्यासार नाम से निर्दिष्ट है। द्र०-भाग ६, पृष्ठ ७६६१, संख्या ५७१० । - इसके प्रारम्भ का निम्न पाठ सूचीपत्र में उद्धृत है२० 'प्रथाशेषविशेषेण बालान् व्युत्पिपादयिषुः श्रीभर्तृहरिकृतस्य रामायणानुयायिभट्टव्याख्याग्रन्थस्थ विषयसंख्याच्छन्दसां प्रकाशन तदनन्यस्य व्याख्यायां कस्यचिज्जनवरस्यातिशयानरागस्समजनि । अनन्तरं च तदभिप्रायविदा केनचिद् विप्रेण तदादिष्टेन च तद्ग्रन्थस्य व्याख्यासाराभिधो ग्रन्थस्समकारि।' ..इससे अधिक इस टीकाकार के विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं। १. इसके सम्बन्ध में तृतीय भाग में 'भाग १, पृष्ठ ५६८-५६९' का संशोधन देखें।

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