Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 507
________________ ४८२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास - ७-भट्टिकाव्यकार (सं० ६००-६५० वि०) - साहित्य तथा व्याकरण के वाङ्मय में भटि नामक महाकाव्य अत्यन्त प्रसिद्ध है। लक्षण ग्रन्थों के अध्ययन से ग्लानि करने वाले अथवा भयभीत संस्कृत-अध्ययनार्थी चिरकाल से भट्टि काव्य के माश्रय से संस्कृत का अध्ययन करते रहे हैं । भट्टिकाव्य पर विविध व्याकरण शास्त्रों की दृष्टि से लिखे गये बहुविध टीका ग्रन्थों से यह स्पष्ट हैं कि इस काव्य का संस्कृत-शिक्षण की दृष्टि से सम्पूर्ण भारत में व्यापक प्रचार रहा हैं । इस दृष्टि से भट्टिकाव्य का काव्य-शास्त्रों में अथवा लक्ष्यप्रधान काव्यों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। १० भट्टिकार का नाम-भटिकाव्य के रचयिता का वास्तविक नाम क्या है, इस विषय में कुछ मतभेद है । जटीश्वर जयदेव जयमंगल इन तीन नामों से व्यवहृत होने वाले जयमङ्गला टीका के रचयिता ने स्वटीका के प्रारम्भ में इस प्रकार लिखा है 'लक्ष्यं लक्षणं चोभयमेकत्र प्रदर्शयितु श्रीस्वामिसूनुः कविर्भट्टि१५ नामा रामकथाश्रयमहाकाव्यं चकार ।' ... ... ऐसा ही इस टीकाकार ने स्वव्याख्या के अन्त में भी लिखा है। तदनुसार कवि का नाम भट्टि, और उसके पिता का नाम श्रीस्वामी ___ अन्य प्रायः सभी टीकाकार भट्टिकाव्य के रचयिता का नाम २० भर्तृहरि लिखते हैं । यथा । १-भर्तृहरि काव्य-दीपिका का कर्ता जयमङ्गल' ग्रन्थ के प्रारम्भ में लिखता है 'कविकुलकृतिकैरवकरहाटः श्रीभृतृहरिः कविर्भट्टिकाव्यं चिकीर्षुः। २५ , पुनः ग्रन्थ के अन्त में लिखता है । १. यह जयमङ्गल पूर्वनिर्दिष्ट जयमङ्गल से भिन्न व्यक्ति है। २. इण्डिया आफिस लायब्ररी सूत्रीपत्र, भाग १ खण्ड २ संख्या ६२१, ६२२।

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