Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

View full book text
Previous | Next

Page 505
________________ ४८० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास हैं। उनमें से एक मद्रास राजकीय हस्तलेख संग्रह में है। यह हस्तलेख वासुदेवकृत टीका सहित है। द्र० -सूचीपत्र भाग ४, खण्ड १A, पृष्ठ ४२८१, संख्या २६५४ । द्वितीय हस्तलेख लन्दन के इण्डिया ग्राफिस पुस्तकालय में है। द्र०-सूचीपत्र भाग २, खण्ड २, संख्या (लिखनी ५ रह गई) । - इन दोनों हस्तलेखों के प्राधार पर इस ग्रन्थ का पुनः सम्पादन होना चाहिए। ग्रन्थकार की ऐतिहासिक भूल-भट्ट भूम ने अष्टाध्यायी २।४।३ के प्रसङ्ग में महाभाष्य में उद्धृत किसी प्राचीन काव्यशास्त्र के दो १० चरणों का समावेश इस ग्रन्थ में भी कर दिया है 'उदगात् कठकालापं प्रत्यष्ठात् कठकौथुमम् । येषां यज्ञे द्विजातीनां तद्विघातिभिरन्वितम् ॥ ७॥४॥ परन्तु यह सन्निवेश ऐतिहासिक दृष्टि से भ्रान्तिपूर्ण है। कठकलाप-कौथुम आदि. चरणों का प्रवचन द्वापर के अन्त में वेदव्यास १५ तथा उनके शिष्यों ने किया था। कार्तवीर्य अर्जुन का काल इससे बहुत पूर्ववर्ती है। वह द्वापर के मध्य अथवा तृतीय चरण में हुआ था। . भद्रि और रावणार्जुनीय में अन्तर-यद्यपि दोनों काव्य व्या करणप्रधान हैं, परन्तु इन दोनों में एक मौलिक अन्तर है । भट्टिकाव्य में जहां व्याकरण के प्रकरण-विशेषों को ध्यान में रखकर विशिष्ट पदावली का संग्रथन है, वहां रावणार्जुनीय में अष्टाध्यायी के सूत्रपाठ क्रम से निर्दिष्ट विशिष्ट सूत्रोदाहरणों का संकलन है। इस १. वाल्मीकीय रामायण अयोध्या काण्ड ३२।१८ में कठ, तैत्तिरीय प्रादि का निर्देश उपलब्ध होता है, परन्तु वह अंश प्रक्षिप्त है । क्योंकि कठ तित्तिरि आदि ज्ञाखा प्रवक्ता द्वापर के अन्त में कृष्ण द्वैपायन व्यास के वैशम्पायन नामा शिष्य के अन्तेवासी थे, जब कि रामायण की रचना त्रेता के अन्त में हुई। रामायण में यह मिलावट किसी कृष्णयजुर्वेदी की अपनी शाखायों की प्राचीनता सिद्ध करने के लिये की है। यह भारतीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट रूप से जाना जा सकता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522