Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 500
________________ लक्ष्य-प्रधान काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि ४७५ इस श्लोक में चतुर्थ चरण का पाठ भ्रष्ट है । यहां सदारोहणप्रियः के स्थान पर स्वर्गारोहणप्रियः पाठ होना चाहिये। ___ कात्यायन ने महाकाव्य के अतिरिक्त कोई साहित्य विषयक लक्षणग्रन्थ भी लिखा था। अभिनवगुप्त भरतनाट्य शास्त्र (भाग २, पृष्ठ २४५, २४६) की टीका में लिखता है 'यथोक्तं कात्यायनेनवीरस्य भुजदण्डानां वर्णने स्रग्धरा भवेत् । नायिकावर्णनं कार्य वसन्ततिलकादिकम् । शार्दूललीला प्राच्येषु मन्दाक्रान्ता च दक्षिणे' ॥इति। इसी प्रकार 'शृङ्गारप्रकाश' (पृष्ठ ५३) में भी लिखा है - लाह- . १० 'तथा च कात्यायन - उत्तारणाय जगतः प्रपिततामहेन, तस्मात् पदात् त्वमसि प्रवृत्ता।' प्राचार्य वररुचि के अनेक श्लोक शार्ङ्गधरपद्धति, सदुक्तिकर्णामत और सुभाषितरत्नावली आदि अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध १५ होते हैं। . ४-पतञ्जलि (२००० विक्रम पूर्व) महाभाष्यकार पतञ्जलि ने महानन्द अंथवा महानन्दमय नामक कोई काव्यग्रन्थ भी लिखा था । महाराज समुद्रगुप्त ने कृष्णचरित में मनिकवि वर्णन-प्रसङ्ग में महाभाष्यकार पतञ्जलि का वर्णन करते .. हुए लिखा है 'महानन्दमयं काव्यं योगदर्शनमद्भुतम् । योगव्याख्यानभूतं तद् रचितं चित्तदोषापहम् ॥ • 'सदुक्तिकर्णामृत' में भाष्यकार के नाम से निम्न श्लोक उद्धृत 'यद्यपि स्वच्छभावेन दर्शयत्यम्बुधिर्मणीन् । तथापि जानुदध्नेयमिति चेतसि मा कृथाः ॥ . यहां सम्भवतः जानुदध्नोऽयं पाठ शुद्ध हो, अन्यथा भाष्यकार के मत से अम्बुधि स्त्रीलिङ्ग भी मानना चाहिये।

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