Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 499
________________ ४७४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास 'कमपि भूभुवनाङ्गणकोणम्-इति व्याडिभाषासमावेशः ।' इस उद्धरण से स्पष्ट है कि व्याडि के किसी काव्य में भट्टिकाव्य के १२वें सर्ग के समान भाषासमावेश नामक कोई भाग था । इससे अधिक हम व्याडि के काव्य के विषय में कुछ नहीं ५ जानते। ३-वररुचि कात्यायन (२८०० वि० पूर्व) 'महामुनि पतञ्जलि ने महाभाष्य ४।३।१०१ में वाररुच काव्य का साक्षात् उल्लेख किया हैं । यह वररुचि वार्तिककार कात्यायन वररुचि हो है।' यह पूर्व वार्तिककार के प्रकरण में (अ० ८) में लिख १० चुके हैं। वररुचि का स्वर्गारोहण काव्य-महाराज समुद्रगुप्त ने अपने कृष्णचरित में मुनि कवि वर्णन प्रसंग में लिखा है - यः स्वर्गारोहणं कृत्वा स्वर्गमानीतवान् भुवि । काव्येन रुचिरेणासौ ख्यातो वररुचिः कविः ।। न केवलं व्याकरणं पुपोष दाक्षीसुतस्येरितवातिकर्यः । काव्येऽपि भूयोऽनुचकार तं वै कात्यायनोऽसौ कविकर्मदक्षः॥ ' अर्थात्-जो स्वर्ग में जाकर (श्लेष से स्वर्गारोहणसंज्ञक काव्य बनाकर) स्वर्ग को पृथ्वी पर ले आया, वह वररुचि अपने मनोहर काव्य से विख्यात है। उस महाकवि कात्यायन ने केवल पाणिनीय व्याकरण को ही अपने वार्तिकों से पुष्ट नहीं किया, अपितु काव्य रचना में भी उसी का अनुकरण किया। कात्यायन के स्वर्गारोहण काव्य का उल्लेख जल्हण की 'सूक्तिमुक्तावली' में भी मिलता है । उसमें राजशेखर का निम्न श्लोक उद्धृत है 'यथार्थता कथं नाम्नि माभूद् वररुचेरिह। व्यधत्त कण्ठाभरणं यः सदारोहणप्रियः ॥ २० - १. नागेश के लघुशब्देन्दुशेखर की संख्या वंश्येन' सूत्र व्याख्या से ध्वनित होता है कि कात्यायन पाणिनि का शिष्य था।

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