Book Title: Sanskrit Praveshika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Tara Book Agency

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Page 4
________________ 'वररुचि' है / इन्होंने अष्टाध्यायी पर लगभग 5000 बार्तिकों की रचना की है। पतञ्जलि ( भाष्यकार-२०० ई० पू० के करीय)-इन्होंने सरल एवं प्रवाहमयी शैली में अष्टाध्यायी पर 'महाभाष्य' लिखा है जो सभी प्रकार की शङ्काओं के निवारण करने के लिए आदर्शभूत है। इनके बाद विविध टीकात्रों और पद्धतियों की परम्परा चली। उस परम्परा में अष्टाध्यायी पर जवादित्य और वामन (870 ई.)-कृत 'काशिका', महाभाष्य पर कैय्यटकृत प्रदीप और प्रदीप पर नागेशकृत 'उद्योत' प्रसिद्ध है। भर्तृहरिकृत (७००ई०) 'वाक्यपदीय' बहुत विश्रुत है। प्रक्रियाक्रम में भट्ठोजिदीक्षित 1630 ई.) ने प्रौढ़ मनोरमा टीका के साथ-"सिद्धान्तकौमुदी' की रचना की / पश्चात् वरदाचार्य ने सिद्धान्तकौमुदी को संक्षिप्त कर लघुसिद्धान्तकौमुदी और मध्यसिद्धान्तकौमुदी की रचना की। इनके अलावा पूज्यपाद देवनन्दिकृत (छठी शता० ) जैनेन्द्रव्याकरण, शाकटायनकृत (8 वीं पता०) शब्द नुशासन, हेमचन्द्र कृत ( 12 वीं शता० ) शब्दानुशासन, बोपदेवकृत मुग्धबोध, अनुभूतिस्वरूपाचार्यात सारस्वत-व्याकरण आदि प्राचीन पद्धति से लिखे गए व्याकरणग्रन्थ हैं। आधुनिक पद्धति से लिखे गए विभिन्न व्याकरण ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं परन्तु जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु इस पुस्तक को लिखा गया है उस उद्देश्य की पूर्ति अब तक प्रकाशित पुस्तकों से नहीं होती। इसके लिखने का उद्देश्य है-'सामान्य जिज्ञासुओं और विशेष जिज्ञासुओं दोनों के लिए एक साथ उपयोगी होना। इसलिए प्रायः प्रत्येक पेज को दो या तीन भागों में विभक्त किया गया है। ऊपर का भाग सामान्य-जिज्ञासुओं के लिए है और शेष दो भाग विशेष, जिज्ञासुओं के लिए / सर्वत्र सरलता और प्रामाणिकता का ध्यान रखा गया है। बाक्य रचना में सन्धि और समास का प्रयोग अल किया गया है। अंग्रेजी शब्दों और चाटों से विषय स्पष्ट किया गया है। सुबोधार्य व्याकरण, अनुवाद और निबन्ध को पृथक पूर्वक लिखा गया है / शुभाशंसा संस्कृत-प्रवेशिका पाश्चात्य व्याकरण पद्धति से लिखी गयी उपयोगी पुस्तक है / संस्कृत वाक्य-विन्यास, पद-विन्यास और वर्ण-विन्यास को सुगम ढंग से समझाने का प्रयत्न किया गया है। मुझे विश्वास है कि यह संस्कृत अध्येताओं के बड़े काम की पुस्तक होगी। कुलपति, काशी विद्यापीठ, वाराणसी डॉ० विद्या निवास मिश्र विद्वान् ग्रंथकार ने अध्यापक के रूप में विद्यार्थियों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए संस्कृत-व्याकरण के दुरूह तत्त्वों का सुबोध प्रतिपादन किया है। संस्कृत-प्रवेशिका का यह चतुर्थ संस्करण इसकी व्यापक उपयोगिता को सप्रमाण करता है। अध्यक्ष, संस्कृत विभाग डॉ. विश्वनाथ भट्राचार्य काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी डॉ. सुदर्शनजैन महोदयविरचिता संस्कृत-प्रवेशिका तावदद्यावधिप्रकाशितेषु व्याकरणानुवादनियन्धग्रन्थेषु प्रवरा कृतिविभाति या खल पक्षाणां कोविदानां च नूनमुपकारिका सेत्स्यतीति बाढ़ प्रत्येति / निदेशक, अनुसन्धान संस्थान डॉ० भगीरथप्रसादत्रिपाठी 'वागीशशास्त्री' सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी मैंने डॉ. जैन की संस्कृत-प्रवेशिका को पढ़ा है। पुस्तक छात्रों के लिए परम उपयोगी है, पठनीय है तथा संग्रहणीय है। प्रोफेसर, संस्कृत विभाग डॉ० सुरेश चन्द्र पाण्डेय इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद डॉ० जैन ने संस्कृत भाषा को सीखने और सिखाने के उद्देश्य मे बहुत ही अच्छी पुस्तक लिखी है। इससे छात्रों और अध्यापकों को बड़ी सुविधा होगी। अध्यक्ष, संस्कृत विभाग डॉ० हरिनारायण दीक्षित कुमायू विश्वविद्यालय, नैनीताल डॉ० जैन अनुभवी विद्वान हैं उनकी यह रचना नि:संदेह बहुत अच्छी है। स्नातक छात्रों के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी प्रमाणित होगी। प्रोफेसर, संस्कृत विभाग डॉ० कृष्णकान्त चतुर्वेदी जबलपुर विश्वविद्यालय, जबलपुर मैंने संस्कृत-प्रवेशिका का भली-भांति अबलोकन किया है। इसमें संस्कृत व्याकरण के सभी अङ्गों का सुबोध शैली में प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत है। अध्यक्ष, संस्कृत विभाग डॉ० सत्यप्रकाश सिंह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ श्रद्धेय गुरुवर्य प्रो० डॉ. वीरेन्द्र कुमार वर्मा तथा सभी शुभाशंसकों ( अगले पृष्ठ पर मुद्रित ) का अत्यधिक आभारी हूँ जिन्होंने अपने बहुमुल्य क्षण मुझे प्रवानपर अनुग्रहीत किया। बहुमूल्य सुझावों के लिए श्री ब्रह्मानन्द चतुर्वेदी तथा डा. श्री नारायण मिश्र का भी विशेष आभारी हूँ। मुद्र कद्वप भी धन्यवादाह हैं। -सुदर्शनलाल जैन

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