Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01 Author(s): Kamtaprasad Jain Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 5
________________ ( ४ ) इस खण्डको श्रद्धेय ब. सीतलप्रसादनीने देखकर हमें उचित परामर्श दिया है. इसके लिये उनको धन्यवाद है। इम्पीरियल मयबेरी कलाना हमे यथेष्ट साहित्य-सहायता मिली है; एतदर्ष उसका भाभार स्वीकृत है। साथ ही प्रिय मित्र कापड़ियानीका भी बामार स्वीकार कर लेना हम उचित समझते हैं जिन्होंने न केवल साहित्य प्रस्तुत करके इसका संकलन कार्य सुगम किया है, वरन् इसको प्रकाश में लाकर उन्होंने इसका प्रचार व्यापक और सुगम बना दिया है । इति शम् । विनीतअलीगंज (एस) कामताप्रसाद जैन, 11-२-१९३९। संपादक "वीर" ==- Sरर र धन्यवाद। प्रसिद्ध लेखक व इतिहासज्ञ श्री. बाबू कामताप्रसादजी जैनअलीगंजने अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थ रचे है, उनमें "संक्षिप्त जैन इतिहास' भी एक है, जिसका प्रथम भाग हमने ६ वर्ष हुए प्रकट किया था और यह दृपग भाग प्रथम ) भी आज प्रकट किया जाता है । आपने इस ग्रन्थका कलन अंग्रेजी, हिंदी व संस्कृत भाषाकी छोटी बड़ी करीब १०० पुस्ताका वाचन व मनन करके किया है, जिसके लिये माप अनेक.: धन्यवादके पात्र है। ऐसे ऐतिहासिक प्रन्योका सुलभ प्रचार करने के लिये जिस प्रकार इसका प्रथम भाग " दिगम्बर जैन" के १९ वर्षके प्राहकोको भेट देनेके लिये प्रकट किया था उसी प्रकार यह दूसग भाग (प्र. खंड) भी 'दिगम्बर जैन' के २५वें वर्षके ग्राहकों को भेट देनेके लिये जो उसके ग्राहक नहीं हैं उनके लिये विक्रयार्थ भी निकाला गया है । भाशा है कि इसका अच्छा लाभ उठाया जाएगा । प्रकाशक। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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