Book Title: Samyaktva Shalyoddhara Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad View full book textPage 9
________________ आनन्द-वाणी 'शुद्ध मार्ग गवेषक और सम्यक्त्वाभिलाषी प्राणियों का मुख्य लक्षण यही है कि : शुद्ध देव, गुरु और धर्म को पहचान के उनको अंगीकार करना और अशुद्ध देव, गुरु, धर्म का त्याग करना । परन्तु चित्त में दंभ रख के अपना कक्का खरा मान बैठके सत्यासत्य का विचार नहीं करना अथवा विचार करने से सत्य की पहचान होने से अपना ग्रहण किया मार्ग असत्य मालूम होने से भी उसको नहीं छोड़ना और सत्य मार्ग को ग्रहण नहीं करना यह लक्षण सम्यक्त्व प्राप्ति की उत्कंठावाले जीवों का नहीं हैं। और जो ऐसे हो तो हमारा यह प्रयत्न भी निष्फल गिना जावेगा, इस वास्ते प्रत्येक भव्य प्राणी को हठ छोड़ के सत्य मार्ग के धारण करने में उद्यत होना चाहिये ।' (स. श. पृ. नं. १७४) 'चौटे के चोर तो वही हैं जो सूत्रों में कही हुई बातों को उत्थापते है, सूत्रों को उत्थापते हैं अर्थ फिरा लेते हैं, शास्त्रोक्त वेश को छोड़के विपरीत वेश में फिरते हैं । इतना ही नहीं परन्तु शासन के अधिपति श्री जिनराज के भी चोर हैं और इस से इनको निश्चय दंड (अनंत संसार) प्राप्त होनेवाला हैं।' (स. श. पृ. नं. ७६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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