Book Title: Samvayangasutram
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 273
________________ 425% ROCCARO SCHUSALMANASACRECIRG य, से किं तं अरूवी अजीवरासी?, अरूविअजीवरासी दसविहा पन्नत्ता, तंजहा-धम्मत्थिकाए जाव अद्धासमए, रूवीअजीवरासी अणेगविहा०प० जाव से किं तं अणुत्तरोववाइआ ?, अत्तणुरोववाइआ पंचविहा पन्नत्ता, तंजहा-विजयवेजयंतजयंतअपराजितसव्वद्वसिद्धिआ, सेत्तं अणुतरोववाइआ, सेत्तं पंचिंदियसंसारसमावण्णजीवरासी, दुविहा णेरइया पन्नत्ता, तंजहा-पजत्ता य अपज्जत्ता य, एवं दंडओ भाणियब्वो जाव वेमाणियत्ति, इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए केवइयं खेत्तं ओगाहेत्ता केवइया णिरयावासा पण्णता ?, गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वजेत्ता मज्झे अट्ठसत्तरि जोयणसयसहस्से एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं तीसं णिरयावाससयसहस्सा भवंतीतिमक्खाया, ते णं णिरयावासा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा जाव असुभा णिरया असुभाओ णिरएसु वेयणाओ, एवं सत्तवि भाणियव्वाओ जं जासु जुज्जइ-'आसीयं बत्तीसं अट्ठावीसं तहेव वीसं च । अट्ठारस सोलसगं अहुत्तरमेव बाहलं ॥१॥ तीसा य पण्णवीसा पन्नरस दसेव सयसहस्साई । तिण्णेगं पंचूणं पंचेव अणुत्तरा नरगा ॥२॥ चउसही असुराणं चउरासीइं च होइ नागाणं । बावत्तरि सुवन्नाण वाउकुमाराण छण्णउइ ॥३॥ दीवदिसाउदहीणं विजकुमारिंदथणियमग्गीणं । छण्हंपि जुवलयाणं बावत्तरिमो य सयसहसा ॥४॥ बत्तीसट्ठावीसा बारस अड चउरो य सयसहस्सा। पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥५॥ आणयपाणयकप्पे चत्तारि सयाऽऽरणचुए तिन्नि । सत्त विमाणसयाई चउसुवि एएसु कप्पेसु ॥६॥ एक्कारसुत्तरं हेडिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए । सयमेगं उवरिमए पंचेव अणुत्तरविमाणा ॥७॥ दोचाए णं पुढवीए तचाए णं पुढवीए चउत्थीए पुढवीए पंचमीए पुढवीए छट्ठीए पुढवीए सत्तमीए पुढवीए गाहाहिं भाणियब्वा, सत्तमाए पुढवीए पुच्छा, गोयमा ! सत्तमाए HASKARN945%AA%. Jain Education in For Personal & Private Use Only elibrary.org

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