Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 4
________________ ( ७ ) मुनि, आर्यिका श्रावक श्राविका इस चर्तुविध संघ अथवा चतुर्वर्ण को तीर्थ माना है. इनमें गणधरों और उनमें भी मुख्य गणधर को मुख्य तीर्थकर्त्ता माना । तीर्थो का माहात्म्य 1 संसार में प्रत्येक क्षेत्र स्थान समान है किन्तु द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का प्रभाव हर स्थान को दूसरे स्थान से पृथक् कर देता है। द्रव्यगत विशेषता क्षेत्रकृत प्रभाव और कालकृत परिवर्तन हम नित्य देखते हैं। इससे भी अधिक व्यक्ति के भावों और विचारों का चारों ओर के वातावरण पर प्रभाव पड़ता है। जिनकी आत्मा में विशुद्ध शुद्ध भावों की स्फुरणा होती है उनमें से शुभ तरंगें निकलकर आसपास के सम्पूर्ण वातावरण को व्याप्त कर लेती हैं। उस वातावरण में शुचिता, शान्ति, निर्वैरता और निर्भयता व्याप्त हो जाती हैं । ये तरंगें जितने वातावरण को घेरती हैं इसीलिए यही कहा जा सकता है, कि उन भावों में उस व्यक्ति की शुचिता आदि में जितनी प्रबलता और वेग होगा उतने वातावरण में वे तरंगें फैल जाती हैंसी प्रकार और विषयों की लालसा होगी, उतने परिमाण में वह अपनी शक्ति द्वारा सारे वातावरण के कारण दूषित हो जाता हैं । उसके अशुद्ध विचारों और अशुद्ध शरीर से अशुद्ध परमाणुओं की तरंगें निकलती रहती हैं जिससे वहाँ के वातावरण में फैलकर वे परमाणु दूसरे के विचारों को भी प्रभावित करते हैं । स्वर्वत्यागी निर्ग्रन्थ दिगम्बर जैन मुनि आत्मकल्याण के मार्ग के राही एकान्त शान्ति की इच्छा से वनों में गिरी - कन्दराओं में सुरम्य नदी तटों पर आत्मध्यान लगाया करते थे ऐसे तपस्वी साधु जनों के शुभ परमाणु उस सारे बातावरण में फैलकर उसे पवित्र कर देते थे । वहाँ जाति विरोधी जीव आते तो न जाने उनके मन का भय और संहार की भावना कहाँ तिरोहित हो जाती। वे उन तपस्वी मुनि की पुण्य भावना की स्निग्ध छाया में परस्पर किल्लोल करते और निर्भय विहार करते थे । जब तपस्वी और ऋद्धिधारी मुनियों का इतना प्रभाव होता है, तो तीन लोक के स्वामी तीर्थंकर भगवान् के प्रभाव का तो कहना ही क्या है। उनका प्रभाव अचिंत्य है, अलौकिक है, तीर्थंकर प्रकृतियों का अनुभाग सुखरूप परिणत हो जाता है। तीर्थंकर प्रकृति की पुण्य वर्गणाएँ इतनी तेजस्वी और बलवती होती हैं कि तीर्थकर जब माता के गर्भ में आते हैं उससे छह माह पूर्व ही वे देवियाँ और इन्द्रों को तीर्थकरों के चरणों का विनम्र सेवक बना देते हैं । सिद्धक्षेत्र महातीर्थे पुराण पुरुषाधिते । कल्याण कलि पुण्ये ध्यानसिद्धिः प्रजापते ।। सिद्धक्षेत्र महान् तीर्थ होते हैं, यहाँ पर महापुरुष का निर्वाण हुआ है, यह क्षेत्र कल्याणदायक हैं तथा पुण्यवर्द्धक होता है। यहाँ आकर यदि ध्यान किया जाय तो ध्यान की सिद्धि हो जाती है। जिसको ध्यान की सिद्धि हो गई, उसे आत्मसिद्धि होने में विलम्ब नहीं

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