Book Title: Sammedshikhar Mahatmya Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 3
________________ (६) बालक, युवा सभी तीर्थभक्त सम्मेदशिखर जैसे दुःखहपर्वतीय क्षेत्रों की वंदना भगवान् का नाम स्मरण करते हुए ऊँचे पर्वतों पर चढ़ जाते हैं । तीर्थ मंगल J तीर्थ शब्द क्षेत्र या क्षेत्र मंगल के अर्थ में बहु प्रचलित एवं रूढ़ है। तीर्थक्षेत्र न कहकर केवल तीर्थ शब्द कहा जाय तो उससे भी प्रायः तीर्थक्षेत्र या तीर्थस्थान का आशय लिया जाता है। जिन स्थानों पर तीर्थंकरों के गर्भ जन्म, तप, केवलज्ञान और निर्वाण कल्याणकों में से कोई कल्याणक हुआ हो अथवा किसी निर्ग्रन्थ वीतरागी तपस्वी मुनि को केवलज्ञान या निर्वाण प्राप्त हुआ हो वह स्थान वीतरागी साधुओं के संसर्ग से पवित्र हो जाता है इसलिए पूज्य भी बन जाते हैं । पावनानि हि आयन्ते स्थानान्यपि सदाश्रयात् । अर्थात् महापुरुषों के संसर्ग से स्थान पवित्र हो जाते हैं । मूलत: पृथ्वी पूज्य या अपूज्य नहीं होती। उसमें पूज्यता महापुरुषों के संसर्ग के कारण आती है। पूज्य तो वस्तुतः महापुरुषों के गुण होते हैं किन्तु वे गुण जिस ( आत्मा ) शरीर में रहते हैं वह शरीर भी पूज्य बन जाता है। संसार उस शरीर की पूजा करके ही गुणों की पूजा करता है I तीर्थ तीर्थ शब्द तृ धातु से निष्पन्न हुआ है। व्याकरण की दृष्टि से तीर्थन्ते अनेन वा तृ प्लवन तरणयोः इति थक तृ धातु के साथ धाक् प्रत्यय लगाकर तीर्थ शब्द की निष्पत्ति की जिसके द्वारा अथवा आधार से तिरा जाये । संसाराब्धे र परस्य तरणे तीर्थ मिष्येत 1 चेष्ठितं जिननाथानां तस्यकिस्तार्थ संकथा ।। जो इस अपार संसार-समुद्र से पार करें उसे तीर्थ कहते हैं, ऐसा तीर्थ जिनेन्द्र भगवान् का चरित्र ही हो सकता है। आचार्य समन्तभद्र ने भगवान् जिनेन्द्र देव के शासन को सर्वोदय तीर्थ बताया है। सर्वोदयं तीर्थमिदं तदैव सब का कल्याण करने वाला ही सर्वोदय तीर्थ कहलाता है। आचार्य पुष्पदन्त भूतबली स्वामी ने धवला में तीर्थंकर को धर्मतीर्थ कर्त्ता बताया । आदिपुराण में राजा श्रेयांस को दान तीर्थ का कर्त्ता बताया । मोक्ष प्राप्ति के उपाय भूत सम्यक्दर्शन, ज्ञान, चारित्र को भी तीर्थ की संज्ञा दी ।Page Navigation
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