Book Title: Samaysara Kalash
Author(s): Amrutchandracharya, Rajmal Pandey, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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૨૧૮
સમયસાર-કલશ
[ ભગવાનશ્રીકુંદકુંદ
કર્મના ઉદયે છે જે સુખ અથવા દુ:ખ, તેનું નામ છે કર્મફળચેતના, તેનાથી ભિન્ન-સ્વરૂપ આત્મા-એમ જાણીને સમ્યગ્દષ્ટિ જીવ અનુભવ કરે છે. ૩૮-૨૩).
(वसन्ततित)
निःशेषकर्मफलसंन्यसनान्ममैवं सर्वक्रियान्तरविहारनिवृत्तवृत्तेः। चैतन्यलक्ष्म भवतो भृशमात्मतत्त्वं कालावलीयमचलस्य वहत्वनन्ता।। ३९-२३१।।
डान्वय सहित अर्थ:- 'मम एवं अनन्ता कालावली वहतु'' (मम) भने ( एवं) उभयतना-भणयेतनाथी रहित५५, शुद्ध शानयेतना सहित जि२४मान५९ ( अनन्ता कालावली वहतु) अनंत 50 सेम ४ ५२ ह.. (भावार्थ मामा छ भयतना-धर्मणयेतना इय, शानयेतना उपाय. यो छु इं? "सर्वक्रियान्तरविहारनिवृत्तवृत्तेः' (सर्व) अनंत मेवी (क्रियान्तर)-शुद्ध
नयेतनाथी अन्य-न। ये अशुद्ध परिणति, तेमi ( विहार) विमा५३५ परिमे छ , तेनाथ (निवृत) रहित अवी छ (वृत्ते:) नयेतनामात्र प्रवृत्ति लेनी, मेवो ७. ॥ ॥२५॥थी मेवो छु? “निःशेषकर्मफलसंन्यसनात्' (निःशेष) समस्त (कर्म)
न॥१२॥हिन (फल) इन। अर्थात् संसा२. संबंधी सु५-६:५न। (संन्यसनात्) स्वामित्व५९॥न। त्यान॥ ॥२४. वणी यो छु? "भृशम् आत्मतत्त्वं भजतः'' (भृशम् ) निरंत२ ( आत्मतत्त्वं ) सात्मतत्पनो अर्थात शुद्ध चैतन्य वस्तुनो (भजतः) अनुभव छ ४ने, मेवो छु. पुंछ मात्मतत्त्व ? 'चैतन्यलक्ष्म' शुद्ध शानस्५३५. छे. वणी यो छु? “अचलस्य'' ॥२॥भी अनंत ण स्प३५थी समिट (-2421) . 3८-२७१.
(सन्तति)
यः पूर्वभावकृतकर्मविषद्रुमाणां भुङ्क्ते फलानि न खलु स्वत एव तृप्तः। आपातकालरमणीयमुदर्करम्यं निष्कर्मशर्ममयमेति दशान्तरं सः।। ४०-२३२।।
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