Book Title: Samaysara Kalash
Author(s): Amrutchandracharya, Rajmal Pandey, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 282
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates (268) विरम किमपरेणाकार्य- | विश्वं ज्ञानमिति प्रतl- | विश्रान्तः परभावभावकलना विश्वाद्विभक्तोऽपि हि वृत्तं कर्मस्वभावेन वृत्तं ज्ञानस्वभावेन वृत्त्यंशभेदतोऽत्यन्तं वेद्यवेदकविभावचलत्वाद् व्यतिरिक्तं परद्रव्यादेवं व्यवहरणनयः स्याद्यद्यपि व्यवहारविमूढदृष्टयः व्याप्यव्यापकता तदात्मनि કલશ | પૃષ્ઠ | इलश 57 34 |38 / सम्यगदृष्टेर्भवति नियतं 136 | 125 249 | 233 | सर्वतः स्वरसनिर्भरभावं 30 | 33 / 258 | 244 | सर्वत्राध्यवसानमेवमखिलं | 173 | 162 | 172 | 161 / सर्वद्रव्यमयं प्रपद्य 253 | 238 | 107 | 92 |सर्वस्यामेव जीवन्त्यां | 117 | 106 106 | 91 सर्वं सदैव नियतं 168 | 159 207 | 195 | सिद्धांतोऽयमुदात्तचित्त 185 | 176 147 | 136 | सन्न्यस्यन्निजबुद्धिपूर्वमनिशं 116 | 104 237 | 222 | संन्यस्तव्यमिदं समस्तमपि 109 94 संपद्यते संवर एष 129 | 118 | 242 | 226 | स्थितेति जीवस्य निरंतराया |65 64 | 49 52 स्थितेत्यविघ्ना खलु पुद्गलस्य | 210 | 199 स्याद्वादकौशलसुनिश्चल- 267 | 253 / / स्याद्वाददीपितलसन्महसि 269 255 215 / 203 | स्वक्षेत्रस्थितये पृथग्विध- 255 / 241 | 216 | 204 | स्वशक्तिसंसूचितवस्तुत्त्वै- | 278 | 264 स्वेच्छासमुच्छलदनल्प- / 90 76 36 / 40 स्वं रुपं किल वस्तुनो- |158 | 148 229 / 217 | 154 | 144 | हेतुस्वभावानुभवाश्रयाणां | 102 87 | 137 / 126 | व्यावहारिकदृशैव केवलं श शुद्धद्रव्यनिरुपणार्पितशुद्धद्रव्यस्वरसभवनात्किं | सकलमपि विहायाह्याय समस्तमित्येवमपास्य कर्म | सम्यग्दृष्टय एव साहसमिदं | सम्यगदृष्टि: स्वयमयमहं Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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