Book Title: Samaysara Kalash
Author(s): Amrutchandracharya, Rajmal Pandey, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 280
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates (२६७) | खश | पृष्ठ | કલશ | પૃષ્ઠ ज्ञानी जानन्नपीमां | २०६ | १९४ | ज्ञेयाकारकलङ्कमेचकचिति |२५१ | २३५ क्षणिकमिदामिहैक: ध धृतकुंभामिधानेऽपि २६१ | १६१ | २४८ | १५१ । १३४ शल १६६ चिच्छक्तिव्याप्तसर्वस्वचित्पिंडचंडिमविलासिविकासचित्रात्मशक्तिसमुदायमयो | चित्स्वभावभरभावितभावा- चिरमिति नवत्त्वचैद्रप्यं जडरुपतां च १०० | १९१ १५३ | १२३ | १५७ | ८५ १८१ | १४३ २२ | २२ | २३९ जयति सहजतेजः जानाति यः स न करोति जीवाजीवविवेकपुष्कलदशा जीवादजीवमिति जीवः करोति यदि पुद्गलकर्म १६ | २२३ । १८ | १९ १७ | ४० ४३ टङ्कोत्कीर्णविशुद्धबोधविसरा- | टवोत्कीर्णस्वररसनिचित३४ | ३९ २६८ | २५४ | तज्ज्ञानस्यैव सामर्थ्य २७० | २५६ | तथापि न निरर्गलं | ९२ ७८ | तदथ कर्म शुभाशुभभेदतो त्यक्त्वाऽशुद्धिविधायि १२६ | ११६ । त्यक्तं येन फलं स कर्म त्यजतु जगदिदानी २७५ | २६१ | १६७ | १५८ | दर्शनशानचारित्रत्रयात्मा | ३३ |३७ | दर्शनशानचारित्रैस्त्रित्वा | दर्शनशानचारित्रैस्त्रिभिः ६३ ६३ दूरं भूरिविकल्पजालगहने द्रव्यलिङ्गगममकारमीलितै९७ ८२ | द्विद्याकृत्य प्रज्ञाक्रकच ध १४९ | १३८ ।धीरोदारमहिम्न्यनादिनिधने २२४ | २१२ । ६० ६१ न कर्मबहुलं जगन्न ५९ ६० न जातु रागादि१५१ | १४० । ननु परिणाम एव किल १४८ | १३७ नम: समयसाराय ६७ ६५ । न हि विदधति बद्ध| १९८ | १८७ | नाश्नुते विषयसेवनेऽपि | नास्ति सर्वोऽपि सम्बन्धः ९४ २४३ १८० २२६ | १६९ १२३ | ११२ १६४ १५४ ज्ञप्तिः करोतौ न हि ज्ञानमय एव भावः ज्ञानवान स्वरसतोऽपि ज्ञानस्य संचेतनयैव नित्यं ज्ञानादेव ज्वलनपयसोज्ञानाद्विवेचकतया तु ज्ञानिन् कर्म न जातु ज्ञानिनो न हि परिग्रहभावं ज्ञानीनो ज्ञाननिर्वृत्ताः ज्ञानी करोति न १७५ | १६४ २११ । | २०० ११ | १३५ |२०० १३ | १२४ | १८८ | Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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