Book Title: Samaysara Anushilan Part 01 Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 4
________________ मनीषी विद्वान के ही वश की बात थी; क्योंकि पहले जब भी किसी विषय को लेकर सामाजिक वातावरण दूषित हुआ; तब डॉ. भारिल्ल ने उन विषयों पर जो सर्वांग अनशीलन प्रस्तुत किया; उससे व्यवस्थित वस्तुस्वरूप तो सामने आया ही, सामाजिक वातावरण भी लगभग शान्त हो गया। क्रमबद्धपर्याय, परमभावप्रकाशक नयचक्र एवं निमित्तोपादान जैसी कृतियाँ इसका सशक्त प्रमाण हैं। आज ये विषय विवाद की वस्तु नहीं रहे; अतः अब तो विरोध केवल विरोध के लिए होता है और उसमें व्यक्तिगत बातें ही अधिक होती हैं, तात्त्विक बातें न के बराबर समझिये । पूज्य गुरुदेवश्री का तो अनन्त उपकार हम सब पर है ही; क्योंकि उन्होंने न केवल हमको विस्तार से सबकुछ समझाया है, अपितु जिनवाणी का मर्म समझने की दृष्टि भी दी है। डॉ. भारिल्लजी की सूक्ष्म पकड़ की तो स्वामीजी भी प्रशंसा किया करते थे, पर उन्हें इसके लेखन में अथक श्रम करते मैंने अपनी आँखों से देखा है, क्योंकि इसे लिखे जाने का मैं प्रत्यक्ष साक्षी हूँ। उन्होंने जिसप्रकार प्रत्येक गाथा के मर्म को सहज बोधगम्य बनाया है, सप्रमाण प्रस्तुत किया है, सयुक्ति और सोदाहरण समझाया है; वह अपने आप में अपूर्व है । मुझे पूरा-पूरा विश्वास है कि इससे अध्यात्मप्रेमी समाज को बहुत लाभ होगा, मेरे विश्वास को उन पत्रों से बल मिला है। जो समय-समय पर हमें प्राप्त होते रहे हैं। 'समयसार अनुशीलन' के विषय में अधिक क्या कहूँ, जब आप इनका स्वाध्याय करेंगे तो इसके महत्त्व को स्वमेव जान जायेंगे। मेरा तो पूर्ण विश्वास है कि इन भागों के माध्यम से आप समयसार का हार्द समझकर निश्चय ही अपने जीवन की दिशा बदल देंगे। हमारा प्रयास है कि समयसार अनुशीलन के इन पाँच भागों को शीघ्र ही सम्पूर्ण रूप से एक ग्रंथरूप शास्त्राकार में प्रकाशित किया जाये। इस दिशा में हम प्रयत्नशील हैं, आशा है शीघ्र ही आप के हाथों में सम्पूर्ण ग्रन्थ पहुँचेगा। जिन महानुभावों ने हमें अपने अमूल्य सुझाव भेजें हैं, उन्हें दृष्टिगत रखते हुए हम प्रथम भाग में काफी कुछ परिमार्जन किया गया है और लगभग 40 पृष्ठों का समावेश किया गया है, आशा है पाठक लाभान्वित होंगे। प्रस्तुत प्रकाशन को आकर्षक कलेवर में मुद्रित कराकर उसे आप तक पहुँचाने का श्रेय प्रकाशन विभाग के प्रभारी अखिल बंसल को जाता है। इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। जिन महानुभावों ने प्रकाशन की कीमत कम करने में आर्थिक सहयोग प्रदान किया है, उनकी सूची पृथक से प्रकाशित की गई है। सभी सहयोगियों का हम हृदय से आभार मानते हैं। आप सभी समयसार के मर्म को समझकर अपना आत्मकल्याण करें - इसी भावना के साथ - - नेमीचन्द पाटनी 1 जनवरी, 2003 महामंत्री (iv)Page Navigation
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