Book Title: Samaysara Anushilan Part 01
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 3
________________ प्रकाशकीय (द्वितीय संस्करण ) डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल कृत 'समयसार अनुशीलन' भाग - 1 ( गाथा 1 से 68 तक) का यह द्वितीय संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। यह तो आप सबको विदित ही है कि 'समयसार ' जैसे दुरूह विषय को सरल व सरस भाषा में 'समयसार अनुशीलन' के नाम से पाँच भागों में जन-जन तक पहुँचाने का श्रेय तत्त्ववेत्ता : डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल को जाता है। उनके द्वारा जैसे-जैसे यह कृति तैयार होती गई वीतराग-विज्ञान हिन्दी व मराठी में तो सम्पादकीय के रूप में प्रकाशित हुई ही प्रत्येक भाग के पूर्वार्द्ध व उत्तरार्द्ध भी पाँच-पाँच हजार की संख्या में प्रकाशित किये गये । बाद में उन्हें सम्पूर्ण रूप से पाँच भागों में भी पाँच-पाँच हजार की संख्या में प्रकाशित किया गया। प्रातःस्मरणीय आचार्य कुन्दकुन्द के पंचपरमागमों में 'समयसार' सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। इस ग्रंथ के पठन-पाठन ने अनेक पामर जीवों का कल्याण किया है । कविवर बनारसीदास, श्रीमद्राजचन्द्र तथा पूज्य कानजीस्वामी जैसे अनेक महापुरुष हैं, जिनकी जीवनधारा परिवर्तित करने में इस ग्रंथ का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इस शताब्दी में आध्यात्मिकसत्पुरुष पूज्य श्रीकानजीस्वामी की प्रेरणा से 'समयसार' का जितना प्रचार-प्रसार हुआ है, वह ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्त्व रखता है। मुमुक्षु समाज में तो इस ग्रंथ का नियमित पठन-पाठन होता ही है, गैर मुमुक्षुओं में भी यह ऐनकेन-प्रकारेण चर्चित रहा है। यही कारण है कि आचार्य अमृतचन्द्र, आचार्य जयसेन जैसे पूर्ववर्ती दिग्गज आचार्यों ने तो इसकी टीकायें की ही हैं, वर्तमान में क्षु. गणेशप्रसादजी वर्णी, क्षु. मनोहरलालजी वर्णी आदि ने भी इसकी टीकायें लिखी हैं। पूज्य कानजी स्वामी के भी प्रवचनरत्नाकर 11 भागों में उपलब्ध हैं, जो समयसार के मर्म को खोलने में पूर्णत: समर्थ है; पर वे प्रवचनों के संकलन हैं। प्रवचनों के संकलन और व्यवस्थित लेखन में जो अन्तर होता है, वह इनमें भी विद्यमान है। इसप्रकार समयसार पठन-पाठन की वस्तु तो बन गया है, पर आधे-अधूरे अध्ययन और विविध प्रकार की महत्त्वाकांक्षाओं ने आज कुछ ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न कर दी हैं कि अब उसके सर्वांग अनुशीलन की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। आज पूज्य स्वामीजी हमारे बीच में नहीं हैं और उन्हीं के प्रतिपादन को आधार बनाकर अनेक विसंगतियाँ उत्पन्न की जा रही हैं। अतः वातावरण की शुद्धि के लिए आज समयसार के सम्यक् अनुशीलन की महती आवश्यकता है। यह काम डॉ. भारिल्ल जैसे (iii)

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