Book Title: Samanya Pandulipi Vigyan
Author(s): Mahavirprasad Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 180
________________ (5) कुषाण (कनिष्क ) संवत् : इस संवत् को सम्राट कनिष्क ने सन् 120 ई. में प्रचलित किया था, जो लगभग 100 साल तक प्रचलित रहा। (6) विक्रम (कृत, मालव) संवत् : कृत, मालव या विक्रम सं. राजस्थान और मध्य प्रदेश में संवत् 282 से प्रचलित हुआ। पहले यह 'कृत' संवत् कहलाया, फिर मालव और उसके बाद यही 'विक्रम संवत्' कहलाया। यह संवत् 57 ई. पू. में प्रारम्भ हआ था। इसमें 135 जोड देने से शक संवत् बन जाता है। वि.सं. चैत्र, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। __(7) गुप्त संवत् : इसका प्रचलन चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा 319 ई. में हुआ। यह चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही प्रारंभ होता है । इसका उल्लेख 'गत वर्ष' के रूप में होता है । जहाँ वर्तमान' वर्ष का उल्लेख होता है, वहाँ एक वर्ष अधिक गिनना होता है। (8) वलभी संवत् : गुप्त संवत् ही वलभी संवत् के रूप में प्रचलित हुआ। क्योंकि वलभी (सौराष्ट्र) के शासकों ने गुप्त संवत् को ही अपना लिया था। अत: गुप्त और वलभी में कोई अन्तर नहीं है। (9) हर्ष संवत् : भारत के सम्राट हर्षवर्धन द्वारा 599 ई. में प्रारंभ किया गया। यह संवत् लगभग 300 वर्ष तक उत्तर भारत और नेपाल में प्रचलित रहा। अल्बरूनी के अनुसार सम्राट श्रीहर्ष, सम्राट विक्रमादित्य के 664 वर्ष बाद हुए थे। इन प्रमुख सन्-संवतों के अलावा और भी अनेक गौण संवत हैं, जिनका ज्ञान एक पाण्डुलिपि वैज्ञानिक के लिए अपेक्षित माना जाता है। ऐसे कुछ संवतों की सूची निम्न प्रकार है - ___ 1. सप्तर्षि संवत् : इसे कश्मीरी संवत्, लौकिक काल, लौकिक संवत्, शास्त्र संवत्, पहाड़ संवत् या कच्चा संवत् भी कहते हैं । इस संवत् को लिखते समय 100 वर्ष पूर्ण होने पर शताब्दी के अंक को छोड़ देते हैं, फिर एक से आरम्भ कर देते हैं । इसका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। और विक्रम संवत् की तरह इसके महीने पूर्णिमांत होते हैं । इसका प्रचलन कश्मीर और पंजाब में रहा है । अन्य संवतों से इसका संबंध इस प्रकार है - शक से शताब्दी के अंक रहित सप्तर्षि संवत् में 46 जोड़ने से शताब्दी के अंक रहित शक (गत) संवत् प्राप्त काल-निर्णय 163 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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