Book Title: Samanya Pandulipi Vigyan
Author(s): Mahavirprasad Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 207
________________ एक अन्य उदाहरण 'संदेश-रासक' में प्रयुक्त 'आरद्द' शब्द है। डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं कि 'आरद्द' शब्द का यह अर्थ (अर्थात् जुलाहा) अज्ञातपूर्व अवश्य है; क्योंकि कोषों में कहीं भी 'आरद्द' का अर्थ जुलाहा नहीं मिलता। अतः "किसी शब्द के अन्य ग्रंथों में न मिलने मात्र से उसके अर्थ के विषय में शंका उठाना उचित नहीं है। सम्भव है किसी अधिक जानकार को वह शब्द अन्यत्र मिल भी जाए।"। अत: कहा जा सकता है कि आरद्द' शब्द पूर्णतः अपरिचित शब्द है। (3) व्याकरणिक दृष्टि से अर्थ-समस्या : कई बार पाण्डुलिपिवैज्ञानिक के व्याकरण पर ध्यान नहीं देने के कारण भी अर्थ-समस्या जटिल हो जाती है । उदाहरण के लिए 'संदेश-रासक' में ही अन्यत्र 'मीरसेणस्स' शब्द का प्रयोग हुआ है, जिसकी टीकाकारों ने 'मीरसेनाख्य' रूप में व्याख्या की है। इस संबंध में डॉ. द्विवेदी कहते हैं - " 'आरद्दो मीरसेणस्स' का अर्थ 'आरद्दो मीरसेनाख्य' नहीं हो सकता। 'मीरसेणस्स' षष्टयन्त पद है, उसकी व्याख्या 'मीर सेनाख्यः' प्रथमांत पद के रूप में नहीं होनी चाहिए।'' इससे स्पष्ट है टीकाकारों के व्याकरणरूप पर ध्यान नहीं देने के कारण यह अर्थ की समस्या खड़ी हुई। अतः अर्थ की दृष्टि से व्याकरण के प्रयोगों पर ध्यान देना चाहिए। (4) भाषाविज्ञान की दृष्टि से अर्थ-समस्या : व्याकरणिक अर्थ-समस्या की तरह भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी अर्थ की समस्या उठती है; क्योंकि शब्द के जिस रूप को अर्थ हेतु स्वीकार किया गया है वह व्याकरणसम्मत होने के साथ भाषाविज्ञान द्वारा भी सम्मत होना चाहिए, तभी ठीक अर्थ मिल सकता है। 'संदेश-रासक' का एक शब्द है 'अद्धड्डीणउ'। टिप्पणकार ने इसे 'अोद्विग्न' (आधा उद्विग्न) तथा अवचूरिकाकार ने अध्वोद्विग्न' (रास्ता चलने से उद्विग्न) मान कर अर्थ किया है ; किन्तु डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि 'उद्विग्न' का रूपान्तर 'उव्विन्न' होता है 'उड्डीण' नहीं। उड्डीण भाषाविज्ञान की दृष्टि से 'उद्विग्न' का रूपान्तर नहीं हो सकता। 'उड्डीण' का अर्थ 'उड़ता हुआ' होता है। अतः भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी अर्थ-समस्या पर विचार करना चाहिए। 1. संदेश-रासक, पृ. 11 2. संदेश-रासक, पृ. 12 3. संदेश-रासक, पृ. 21 190 सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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