Book Title: Samanya Pandulipi Vigyan
Author(s): Mahavirprasad Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 212
________________ 7000 खरड़े (rolls) या कुण्डली ग्रंथ वहाँ के पुजारी से खरीद कर उन्होंने ब्रिटिश म्यूजियम को भेज दिये।'' इसी क्रम में फ्रेंक फ्रेंसिस कहते हैं - __'He (Stein) purchased more than 7,000 paper rolls and sent them, back to the British Museum. Among them are 380 pieces bearing dates between A.D. 406 and 995. The most celebrated single item is a well preserved copy of the Diamond Sutra, printed from wooden blocks, with a date corresponding to 11 may, A.D. 868. This Scroll has been acclaimed as 'The world's oldest printed book', and it is indeed the earliest printed text complete with date known to exist"2 दुनिया की सबसे प्राचीन छपी पुस्तक का रहस्य इस प्रकार खुला। इस प्रकार पुस्तकों की सुरक्षा करने में लोग काफी रुचि दिखाते थे। मुनि पुण्यविजयजी' पुस्तकों और ज्ञान-भण्डारों के रक्षण की आवश्यकता के चार कारण मानते हैं (क) राजकीय उथल-पुथल (ख) वाचक की लापरवाही (ग) चूहे, कंसारी आदि जीव-जन्तु के आक्रमण (घ) बाह्य प्राकृतिक वातावरण। (क) बाह्य आक्रमणों या आंतरिक राजकीय उथल-पुथल के कारण ग्रंथ भण्डारों को सुरक्षित रखने के लिए मन्दिरों में भूगर्भ स्थित गुप्त स्थान बनाये जाते थे। यद्यपि आशय तो आपातकाल में बड़ी मूर्तियों को सुरक्षित रखना ही था, किन्तु उनके साथ महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों को भी सुरक्षित रख दिया जाता था। (ख) वाचक की लापरवाही से बचने के लिए उसे सुसंस्कारित किया जाता था, ताकि वह पुस्तकों के साथ प्रमाद न कर सके। इसके लिए उसमें ग्रंथ के प्रति पूज्यभाव एवं श्रद्धा के संस्कार का होना आवश्यक माना जाता था। यही कारण था कि लिखने-पढ़ने की किसी भी वस्तु को यदि वह कहीं अवांछित जगह गिरी हुई है तो उठा कर सिर से लगाकर पुनः सुरक्षित भाव से स्थापित किया जाता था या रखा जाता था। इसमें भी उस सामग्री की रक्षा की भावना ही 1. पाण्डुलिपि विज्ञान, पृ. 337 2. Treasurer of the British Museum, PP. 251 3. भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखन कला, पृ. 109 पाण्डुलिपि-संरक्षण ( रख रखाव) 195 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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