Book Title: Samanya Pandulipi Vigyan
Author(s): Mahavirprasad Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 192
________________ 30 से अधिक अलंकारों की चर्चा की है। यदि नाट्यशास्त्र इसी समय के आसपास की रचना होती तो उसमें भी केवल चार ही अलंकारों का जिक्र नहीं होता। इसका अभिप्राय यह हुआ कि नाट्यशास्त्र इससे भी पूर्व की रचना है। अर्थात् नाट्यशास्त्र 300 ई. से बाद की रचना नहीं है।' इससे स्पष्ट है कि विषय-वस्तु के अंश को आधार बनाकर काणे महोदय ने काल-निर्णय में सहायता दी है। इसी प्रकार पाणिनि का काल-निर्धारित करते समय डॉ. वासुदेव अग्रवाल ने भी अनेक वस्तुगत संदर्भो को आधार बनाया है। कहने का अभिप्राय यह है कि अंत:साक्ष्य की वस्तु के अंशों की साहित्यिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक, ज्योतिष आदि के ग्रंथों की सहायता से काल निर्णय किया जा सकता है। (ग) भाषा - अंतरंग-साक्ष्य के अन्तर्गत स्थल-पक्ष के अतिरिक्त प्रथम साक्ष्य भाषा का है। 'भाषा' का इतिहास भी काल-क्रमानुसार रूप-परिवर्तन आदि को प्राप्त कर आगे बढ़ता है। अतः भाषा-पंडित उसकी रूप-रचना और शब्द-कोश तथा व्याकरणात्मक स्थितियों के आधार पर विकास के अनेक चरणों को भिन्न-भिन्न कालों में बाँटकर, काल-निर्णय करने हेतु सहायक के रूप में उसका उपयोग कर सकता है। डॉ. माताप्रसाद गुप्त के 'बसंत-विलास' का काल-निर्णय इसी आधार पर किया था। क्योंकि 'बसन्त-विलास' में कालविषयक कोई संकेत नहीं था। तब तत्कालीन प्रामाणिक-ग्रंथों की भाषा से ही तुलना कर काल संकेत प्राप्त किये जा सकते थे। डॉ. गुप्त ने भी काल-निर्णय में भाषा साक्ष्य के लिए 1330 से लेकर 1500 वि. संवत् तक की कालावधि के मध्य के प्रामाणिक ग्रंथों को लेकर उनसे तुलनापूर्वक बसन्त विलास के कालका निर्धारण किया था। इससे सिद्ध होता है कि भाषा का साक्ष्य काल-निर्धारण में मुख्य भूमिका निभा सकता है। ___3. वैज्ञानिक प्रविधि : वैज्ञानिक प्रविधि से भी काल-निर्णय करने में सहायता ली जाती है। इस विधि का उपयोग तब किया जाता है जब कोई कृति अथवा अभिलेख जमीन में से खोद कर प्राप्त किया जाता है। खोद कर प्राप्त की हुई सामग्री पर सन्-संवत् या तिथि के न होने की परिस्थिति में उस जगह 1. Sahitya Darpan (Introduction) P. XI 2. पाण्डुलिपिविज्ञान, डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 299 काल-निर्णय 175 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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