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यह निरर्थक-सा छोटा अक्षर-संकेत पूरे शब्द के रूप में ग्राह्य होता है। जैसे - 'सम्बत्सर' के लिए 'सं.' 'स', समु. आदि; हेमन्त के लिए 'हे' या 'हेम'; वर्ष के लिए 'व' या 'वा'; अब्दुल के लिए 'अद्द' आदि संकेतों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार पाण्डुलिपि के अध्येता अपने लिए ऐसी संकेताक्षरी शब्दों की सूची बना सकता है।
8. विशिष्टार्थी शब्द : पाण्डुलिपिविज्ञान में विशिष्टार्थी शब्दों का अत्यधिक महत्व है। यह रूपगत नहीं है। विशिष्ट शब्दों का विशिष्ट अर्थ जाने बिना हम यथार्थ अर्थ तक नहीं पहुँच सकते। केवल अभिधार्थ करते हुए अर्थाभास का अनुभव करते हैं। बिना उन शब्दों का अर्थ समझे खींचतान कर अर्थ निकालना होता है । ऐसे विशिष्टार्थी शब्दों के सम्बन्ध में डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने 'कीर्तिलता' के संदर्भ में अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। एक उदाहरण प्रस्तुत है -
__ मषदूम नरावइ दोम जजो हाथ ददस दस नारओ।' इस पंक्ति के सभी शब्द विशिष्टार्थी हैं, उनके यथार्थ अर्थों से अपरिचित व्यक्ति अर्थ निकालने में कई तरह की खींचतान करते हैं; किन्तु डॉ. अग्रवाल का कहना है कि "इस एक पंक्ति में सात शब्द पारिभाषिक प्राकृत और फारसी के हैं।" इनके विशिष्ट अर्थ निम्न प्रकार से बताये गये हैं - 1. मषदूम/मखदूम - भूत-प्रेत साधक मुसलमानी धर्म-गुरु 2. नरावइ - ओसविया - अर्थात् जो नरक के जीवों या प्रेतात्माओं
का अधिपति है। 3. दोष
- यातना देना। 4. हाथ - शीघ्र 5. ददस - हदस (अरबी.) प्रेतात्माओं को अंगूठी के नग में
दिखाने की प्रक्रिया।
- दिखाता है 7. णारओ - नरक के जीव, प्रेतात्माएँ।
6. दस
1. कीर्तिलता : डॉ. वासुदेव अग्रवाल, 2/190, पृ. 108 2. पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 325
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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